Sri Lanka Crisis: श्रीलंका की स्थिति बेहद नाजुक दौर में है, वहां लगातार स्थिति खराब होती जा रही है। जनता उग्र हो रही है और प्रदर्शनकारियों का प्रदर्शन भी तेज हो रहा है। अब सवाल उठ रहा है कि ऐसे में अगर प्रदर्शनकारियों पर कार्रवाई की गई तो कहीं उसका नतीजा और भयावह ना हो जाए। इस मामले पर विशेषज्ञ क्या कहते हैं, ये जानना जरूरी है। समाचार एजेंसी पीटीआई से बात करते हुए साल 2009 से 2013 तक श्रीलंका में भारतीय उच्चायोग रहे अशोक के कंठ इस मामले पर कहते हैं कि इस समय श्रीलंका की स्थिति बेहद नाजुक है, इस वजह से इस समय सबसे महत्वपूर्ण यह है कि राजनीतिक अराजकता से बचा जाए। हालांकि इस दौरान हमें इस बात का भी खास ख्याल रखना होगा कि कहीं सेना और पुलिस की कार्रवाई से मामला और ना बिगड़ जाए।
भारत में शरणार्थी संकट के आसार
अशोक कंठ का कहना है कि इस वक्त श्रीलंका में सबसे जरूरी आवश्यकता है संविधान की सीमा में एक प्रकार की राजनीतिक स्थिरता की। ताकि चीजें पहले स्थिर हो सकें। जबकी भारत में शरणार्थी संकट को लेकर विदेश मंत्रालय के पूर्व सचिव अनिल वाधवा का कहना है कि स्थिति अब नियंत्रण में है। हालांकि, शरणार्थी संकट पर उन्होंने कहा कि हमारे हित में तो यही होगा कि शरणार्थी भारत ना आएं। क्योंकि अगर ऐसा होता है तो देश में दूसरे तरह के संकट पैदा हो जाएंगे।
श्रीलंका को जल्द एक नई सरकार चाहिए
अनिल वाधवा का कहना है कि श्रीलंका के लिए तत्काल प्रभाव से राहत पैकेज दिए जाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि इस वक्त सबसे बड़ी राहत की बात तब होगी जब श्रीलंका में एक नई सरकार बन जाए। क्योंकि एक सरकार ही वहां के प्रमुख मुद्दों का समाधान कर सकती है।
नए सिरे से शुरू हुए प्रदर्शन
श्रीलंका में पिछले कुछ महीनों से मचे हुए बवाल के हाल फिलहाल में थमने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं। पूर्व राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के देश से भागने के बाद आंदोलन के खत्म होने की उम्मीद थी, लेकिन प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को कार्यवाहक राष्ट्रपति बनाए जाने के बाद नए सिरे से प्रदर्शन शुरू हो गए। देश की राजधानी कोलंबो में गुस्साए हुए प्रदर्शनकारियों ने बुधवार को प्रधानमंत्री कार्यालय पर धावा बोल दिया, वहीं देश में आपातकाल की घोषणा कर दी गयी। इससे कुछ घंटे पहले राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे देश के भयावह आर्थिक संकट के बीच सेना के विमान से मालदीव भाग निकले।
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