कश्मीर के इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता अदालत ले गया पाकिस्तान, भारत के जवाब से आया चक्कर
बेशर्म पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे को किसी भी मंच पर उठाने पहुंच जाता है। इस बार वह कश्मीर से जुड़े किशनगंगा और रतले परियोजना को लेकर हेग की मध्यस्थता अदालत पहुंच गया। अदालत को पाकिस्तान की याचिका सुनने में रुचि पैदा हो गई। मगर भारत ने इस कार्यवाही को अवैध बताते हुए इसमें शामिल होने से ही इनकार कर दिया। इससे पाक चकरा गया।
अपनी बचकाना हरकतों से कभी बाज नहीं वाले पाकिस्तान को भारत ने फिर शर्मिंदा कर दिया है। भारत का जवाब सुन उसे चक्कर आ गया है। बता दें कि बड़ी उम्मीद से पाकिस्तान ने कश्मीर से जुड़े एक मुद्दे को हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता अदालत ले गया था। हैरानी की बात है कि मध्यस्थता अदालत भी पाकिस्तान की इस याचिका पर रुचि दिखाने लगा और इस पर सुनवाई करना अपना अधिकार बताने लगा। मगर नए भारत की ताकत का अंदाजा न तो पाकिस्तान को था और न ही मध्यस्थता अदालत को। भारत ने मध्यस्थता अदालत में शुरू होने वाली इस कार्यवाही को अवैध बताते हुए इसमें भाग लेने से ही इनकार कर दिया। इससे पाकिस्तान को चक्कर आ गया। साथ ही मध्यस्थता अदालत भी भारत के जवाब से भौचक्का रह गई। शायद किसी को ये उम्मीद भी नहीं रही होगी की भारत इस मसले पर इतना खरा जवाब दे सकता है।
भारत ने बृहस्पतिवार को कहा कि कश्मीर में किशनगंगा और रतले पनबिजली परियोजनाओं को लेकर स्थायी मध्यस्थता अदालत में ‘अवैध’ कार्यवाही में हिस्सा लेने के लिए उसे मजबूर नहीं किया जा सकता है। दरअसल, हेग स्थित मध्यस्थता अदालत ने फैसला दिया है कि उसके पास पनबिजली के मामले पर नई दिल्ली और इस्लामाबाद के बीच विवाद पर विचार करने का ‘अधिकार’ है। भारत का कहना रहा है कि वह स्थायी मध्यस्थता अदालत में पाकिस्तान द्वारा शुरू की गई कार्यवाही में शामिल नहीं होगा, क्योंकि सिंधु जल संधि की रूपरेखा के तहत विवाद का पहले से ही एक निष्पक्ष विशेषज्ञ परीक्षण कर रहे हैं।
भारत को कार्यवाही में हिस्सा लेने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि भारत को अवैध और समान्तर कार्यवाहियों को मानने या उनमें हिस्सा लेने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है जो संधि में उल्लेखित नहीं हैं। भारत ने संधि के विवाद निवारण तंत्र का पालन करने से पाकिस्तान के इनकार के मद्देनजर इस्लामाबाद को जनवरी में नोटिस जारी कर सिंधु जल संधि की समीक्षा और उसमें संशोधन की मांग की थी। यह संधि 1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता में सीमा-पार नदियों के संबंध में दोनों देशों के बीच हुई थी। बागची ने कहा कि भारत की लगातार और सैद्धांतिक स्थिति यह रही है कि तथाकथित मध्यस्थता अदालत का गठन सिंधु जल संधि के प्रावधानों का उल्लंघन है, क्योंकि संधि एक जैसे मुद्दे के लिए समान्तर कार्यवाही की इजाजत नहीं देती है। उन्होंने अपनी साप्ताहिक मीडिया ब्रीफिंग में कहा कि एक निष्पक्ष विशेषज्ञ किशनगंगा और रतले परियोजनाओं से संबंधित विवाद को देख रहे हैं तथा भारत ‘संधि-संगत’ निष्पक्ष विशेषज्ञ की कार्यवाही में हिस्सा ले रहा है। निष्पक्ष विशेषज्ञ की आखिरी बैठक 27 और 28 फरवरी को हेग में हुई थी तथा अगली बैठक सितंबर में होनी है।
भारत के जवाब से बौखलाई हेग अदालत
बागची ने कहा कि भारत सरकार संधि के अनुच्छेद 12 (3) के तहत सिंधु जल संधि में संशोधन के संबंध में पाकिस्तान की हुकूमत से बातचीत कर रही है। स्थायी मध्यस्थता अदालत ने एक बयान में कहा कि विश्व बैंक के साथ पत्राचार के जरिए भारत द्वारा अदालत के अधिकार क्षेत्र पर की गई आपत्तियों पर उसने विचार किया है। हेग स्थित अदालत ने एक बयान में कहा कि अदालत ने भारत की हर आपत्ति को खारिज किया है और तय किया है कि अदालत के पास पाकिस्तान की मध्यस्थता के आग्रह में उल्लेखित विवाद पर विचार करने और उसे तय करने का अधिकार है। बयान में यह भी कहा गया है कि यह फैसला सर्वसम्मति से किया गया है जो पक्षों के लिए बाध्यकारी है तथा इसके खिलाफ अपील नहीं की जा सकती है। सिंधु जल संधि पर विश्व बैंक ने भी हस्ताक्षर किए हैं। मगर भारत ने कार्यवाही में हिस्सा लेने से साफ इनकार कर दिया है। (भाषा)