China & Tibet: वर्ष 1954 में भारत का अहम हिस्सा रहे तिब्बत पर कब्जा करने के बाद से चीन लगातार वहां सड़कों का जाल बिछाता आ रहा है। चीन ने तिब्बत से लेकर आक्साईचिन और देश के दूसरे इलाकों में सड़कों और इंफ्रास्ट्रक्चर की झड़ी लगा दी है। दरअसल चीन इस बहाने तिब्बत और आक्साईचिन से लगे भारतीय भूभागों में अपनी पहुंच को और अधिक मजबूत करना चाहता है। 25 दिसंबर, 1954 को सछ्वान-तिब्बत राजमार्ग और छिंगहाई-तिब्बत राजमार्ग जो उस समय दुनिया के दो सबसे ऊंचे राजमार्ग थे को एक ही दिन यातायात के लिए खोला गया था।
ये दो राजमार्ग क्रमश: याआन और गोलमुड से पहाड़ों से होते हुए ल्हासा तक पहुंचे। इन दो राजमार्गों के खुलने से सड़क और कारों के बिना तिब्बत के हजारों वर्षों के इतिहास का अंत हो गया। गौरतलब है कि सछ्वान-तिब्बत राजमार्ग और छिंगहाई-तिब्बत राजमार्ग के पूरा होने से तिब्बत की दीर्घकालिक बंद की स्थिति बदल गई है। इसके बाद पूरे देश से निर्माण सामग्री और लोगों की रोजमर्रा की जरूरत की चीजें लगातार तिब्बत के बर्फ से ढके पठार तक पहुंचाई जाती हैं। इसी समय तिब्बत और चीन के विभिन्न क्षेत्रों के बीच संपर्क भी काफी हद तक बढ़ गया, जिसने तिब्बत में आधुनिक परिवहन के विकास के दरवाजे खोले, और तिब्बत के विकास और निर्माण को गति दी।
10 वर्षों में दो गुना बिछा दी सड़कें
चीन ने पिछले करीब 10 वर्षों में तिब्बत में सड़कों की कुल लंबाई को लगभग दो गुना कर दिया है। विशेष रूप से चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की 18वीं राष्ट्रीय कांग्रेस के बाद तिब्बत के यातायात ने तेजी से विकास के युग में प्रवेश किया। पिछले दस वर्षों में तिब्बत राजमार्गों का कुल माइलेज 2012 के अंत में 65,200 किमी से बढ़कर जुलाई 2022 में 120,700 किमी हो गया है। हाई-ग्रेड (हाई-स्पीड) राजमार्गों का माइलेज 38 किमी से बढ़कर 1,105 किमी हो गया है और टाउनशिप और प्रशासनिक गांवों की सुचारू यातायात दर क्रमश: 94.4 प्रतिशत और 77.89 प्रतिशत तक पहुंच गई।
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