Indian model of Islam: भारतीय इस्लाम पर संयुक्त अरब अमीरात ( UAE)के विश्व मुस्लिम समुदाय परिषद ने एक किताब 'धर्मशास्त्र, न्यायशास्त्र और समकालिक परंपरा: इस्लाम का भारतीयकरण' प्रकाशित की है। किताब में इस्लाम के क्षेत्रीय स्वरूपों पर जोर देने और इस्लाम के एक रूप को ना मानने की बात कही गई है। किताब में इस्लाम को सच्चे प्रतिनिधित्व के रूप में पेश किए जा रहे धर्म के 'अरबीकरण' पर चर्चा की गई है।
डॉ सेबेस्टियन आर प्रांज ने इस किताब में 'मॉनसून इस्लाम' शब्द इजाद किया है। यह शब्द इस्लाम धर्म की विविधता को प्रदर्शित करता है। उन्होंने यह शब्द अरब व्यापारियों को ध्यान में रखते हुए इजाद किया है, जो मॉनसून हवाओं की दिशा के बाद दक्षिण एशिया की यात्रा करते थे। इस्लाम को बढ़ावा देने वाले वो सामान्य अरब व्यापारी न तो किसी सरकार के प्रतिनिधी थे और न ही मान्यता प्राप्त धार्मिक अधिकारी थे। उन व्यापारियों ने मुस्लिम गढ़ों को बाहर इस्लाम को विकसित किया जो स्थानीय संस्कृति को आत्मसात किए हुए था। प्रांज का कहना है कि मालाबार तट के किनारे की मस्जिदें हिंदू और मुस्लिम वास्तुकला के मेल का जीवंत उदाहरण हैं। उन्होंने किताब में दक्षिण भारत के कुछ मंदिरों में हिंदुओं और मुसलमानों दोनों के द्वारा पूजा किए जाने का जिक्र किया है।
किताब में ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय, वैंकूवर के डॉ. सेबेस्टिन आर प्रांज, ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के डॉ. मोइन अहमद निजामी और नालसर यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ, हैदराबाद के डॉ. फैजान मुस्तफा के लेख शामिल हैं।
डॉ. मुस्तफा ने लिखा है कि कुछ मुस्लिम शासकों ने अपने सिक्कों पर देवी लक्ष्मी और भगवान शिव के बैल की आकृतियां भी उकेरी हैं। मुस्तफा ने लिखा है कि ऐतिहासिक किताब 'चचनामा' के अनुसार मुसलमानों ने ईसाइयों और यहूदियों की तरह ही हिंदुओं को भी अपनाया'। वहीं अबू धाबी स्थित मुस्लिम परिषद का मानना है कि भारतीय इस्लाम मॉडल 'दुनिया भर में कई मुस्लिम समुदायों के लिए एक अच्छे उदाहरण के रूप में काम करता है।'
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