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Hindi News विदेश अन्य देश UNSC membership: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार पर सभी सहमत, फिर भी क्यों नहीं हो पा रहा फैसला?

UNSC membership: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार पर सभी सहमत, फिर भी क्यों नहीं हो पा रहा फैसला?

UNSC membership: वैसे तो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में सुधार पर लगभग सभी देश सहमत हैं, लेकिन सवल यह है कि इसके बावजूद अब तक इस पर कोई फैसला क्यों नहीं हो पा रहा है। संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के करीब आठ दशक बीत चुके हैं।

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Highlights

  • भारत, जापान और जर्मनी हैं स्थायी सदस्यता के प्रमुख दावेदार
  • स्थाई सदस्य नहीं ले पा रहे विस्तार पर कोई फैसला
  • 80 साल बाद भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में नहीं हो सका सुधार

UNSC membership: वैसे तो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में सुधार पर लगभग सभी देश सहमत हैं, लेकिन सवल यह है कि इसके बावजूद अब तक इस पर कोई फैसला क्यों नहीं हो पा रहा है। संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के करीब आठ दशक बीत चुके हैं। लगभग सभी प्रमुख देश इस बात पर सहमत हैं कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का विस्तार किए जाने की आवश्यकता है और इसे अधिक समावेशी बनाया जाए। सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि शक्तिशाली सुरक्षा परिषद का विस्तार कैसे होगा? इसके लिए यूएनएसी के सदस्य आगे क्यों नहीं बढ़ रहे हैं

द्वितीय विश्व युद्ध के खत्म होने पर प्रमुख शक्तियों के रूप में उभरे पांच देशों का संयुक्त राष्ट्र और इसकी सबसे अहम संस्था यानी सुरक्षा परिषद पर प्रभुत्व है। करीब चार दशक से कई देशों की मांग है कि उन्हें भी सुरक्षा परिषद में शामिल किया जाए और यह 21वीं सदी के परिवर्तित विश्व का प्रदर्शन करे। इसके बावजूद परिषद अभी तक अपने मौजूद स्वरूप में ही कायम है। परिषद यूक्रेन पर रूस के हमले को लेकर कुछ नहीं कर पाई है, इस महीने संयुक्त राष्ट्र महासभा में विश्व नेताओं ने इसे रेखांकित किया। राष्ट्रीय हितों और क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता के कारण, संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों ने सुरक्षा परिषद में विस्तार नहीं होने दिया जिसके पास अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने का दायित्व है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जब संयुक्त राष्ट्र की स्थापना की गई थी तो उसके चार्टर के शुरुआती शब्द थे, “ आगे आने वाली पीढ़ियों को युद्ध के दंश से बचाना है।

80 साल बाद भी नहीं हुआ सुधार
सुधार की वकालत करने वालों ने कहा है कि परिषद में सुधार करके इसमें और सदस्यों को शामिल करना चाहिए। किंतु असहमति इस बात को लेकर है कि परिषद को फिर से गठित करने पर शक्तियों का आकार और संरचना कैसी होगी। इस वजह से संयुक्त राष्ट्र राजनयिकों की कई पीढ़ियां यह सवाल पूछती रही हैं कि क्या परिषद में कभी बदलाव हो पाएंगे भी या नहीं। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने 2020 में कहा था, “ सात दशक से अधिक समय पहले शीर्ष पर आए राष्ट्रों ने अंतरराष्ट्रीय संस्थानों में शक्ति संबंधों को बदलने के लिए जरूरी सुधारों पर विचार करने से इनकार कर दिया है।” उन्होंने कहा था, “ असमानता शीर्ष-वैश्विक संस्थानों में शुरू होती है। असमानता को दूर करने के लिए उनमें सुधार करने चाहिए। लेकिन यह अब तक नहीं हुआ है। सुरक्षा परिषद में 15 सदस्य होते हैं। इनमें से 10 अस्थायी और पांच स्थायी सदस्य होते हैं। अस्थायी सदस्यों को दुनिया के सभी क्षेत्रों से दो-दो साल के कार्यकाल के लिए उनका चुनाव किया जाता है और इनके पास वीटो की शक्ति नहीं होती है।

पांच देशों के पास है वीटो पॉवर
यूएनएससी में वीटो की शक्ति से लैस पांच सदस्य अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन और फ्रांस हैं। रूस ने कहा था कि यूक्रेन में जंग को लेकर सुरक्षा परिषद अगर कोई कार्रवाई करेगी तो वह वीटो का इस्तेमाल करेगा। सुरक्षा परिषद में पांच में से कोई सदस्य किसी प्रस्ताव पर वीटो का इस्तेमाल कर देता है तो परिषद उस प्रस्ताव को पारित नहीं कर सकती है। इस बात की झलक महासभा में विश्व नेताओं के बयानों में भी दिखी। सबसे ज्यादा अप्रसन्न अफ्रीका, लातिन अमेरिका और कैरिबियाई देशों की सरकारें दिखीं, क्योंकि उनके क्षेत्रों से कोई स्थायी सदस्य नहीं है। क्या यह बदलाव आ सकते हैं? अमेरिका राष्ट्रपति जो बाइडन का मानना है कि यह होना चाहिए। बाइडन ने पिछले सप्ताह महासभा में कहा, “ इस संस्था को और अधिक समावेशी बनने का समय आ गया है ताकि यह आज की दुनिया की जरूरतों के हिसाब से बेहतर प्रतिक्रिया दे सके।” उन्होंने स्थायी और अस्थायी सदस्यों की संख्या बढ़ाने पर जोर दिया और अफ्रीका, लातिन अमेरिका तथा कैरिबियाई देशों के लिए स्थायी सदस्यता की पैरवी की। अ

भारत, जर्मनी, जापान और ब्राजील का दावा मजबूत
मेरिका ने स्थायी सीट के लिए जर्मनी, जापान और भारत की दावेदारी का भी समर्थन किया। फ्रांस के राष्ट्रपति एमैनुएल मैक्रों ने कहा कि शांति के लिए अंतरराष्ट्रीय सर्वसम्मति की जरूरत है। उन्होंने कहा, “ इसलिए मुझे उम्मीद है कि हम सुरक्षा परिषद में सुधार की प्रतिबद्धता ज़ाहिर कर सकते हैं ताकि इसमें और प्रतिनिधित्व हो, नए सदस्यों का स्वागत कर सकें तथा सामूहिक अपराधों में वीटो अधिकारों को समिति कर पूर्ण भूमिका निभाने के लिए सक्षम हों सकें।” रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने शनिवार को महासभा को संबोधित करते हुए अधिक लोकतांत्रिक परिषद की वकालत की जिसमें अफ्रीका, एशिया और लातिन अमेरिका का प्रतिनिधित्व हो और उसमें भारत तथा ब्राजील शामिल हों। बाद में संवाददाता सम्मेलन में, उन्होंने कहा कि जापान और जर्मनी जैसे "शत्रुतापूर्ण" पश्चिमी देशों को शामिल करने से परिषद में कुछ भी नया नहीं होगा। उनके मुताबिक, "वे सभी अमेरिका के आदेशों का पालन कर रहे हैं।" सुधार कैसे काम कर सकते हैं परिषद में सुधार करने की कोशिश 1979 में शुरू हुई थी।

परिषद में 25 सदस्य रखे जाने की मांग
2005 में विश्व नेताओं ने परिषद में अधिक व्यापक प्रतिनिधित्व, इसेप्रभावी और पारदर्शी बनाने का आह्वान किया था। उस साल महासभा ने परिषद में सदस्यता विस्तार के तीन प्रतिद्वंद्वी प्रस्तावों को स्थगित कर दिया था जो गहरे विभाजन को दर्शाता है और यह आज भी जारी है। जर्मनी, जापान, ब्राजील और भारत के प्रस्ताव में कहा गया था कि 25 सदस्यीय परिषद में उन्हें वीटो की शक्ति के बिना स्थायी सदस्यता दी जाए। दूसरे समूह जिसमें इटली और पाकिस्तान शामिल थे, ने कहा था कि 25 सदस्य परिषद में 10 नई अस्थायी सीटें हों। 55 सदस्यीय अफ्रीकी संघ चाहता है कि परिषद में 11 नई सीटें हों जिनमें से छह स्थायी हों और दो सीटें अफ्रीकी देशों को दी जाएं तथा उन्हें वीटो की शक्ति भी दी जाए और पांच अस्थायी सदस्य हों।

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