Mining on Moon: धरती की कोख हो रही रत्नों से खाली अब चांद पर होगा खनन, जानें किन देशों को होगा अधिकार
Mining on Moon: धरती की कोख में सोना, चांदी से लेकर, हीरे-मोती, लोहा, कीमत पत्थर, कोयला, बालू समेत असंख्य रत्न हैं। मगर अब दुनिया भर में तेजी से हो रहे खनन के चलते धीरे-धीरे धरती की कोख खाली होने लगी है। ऐसे में अब इंसानों ने चांद पर खनन करने का रास्ता तैयार किया है।
Highlights
- चंद्रमा की चट्टानों के खनन से निकाली जाएगी आक्सीजन
- जो अंतरिक्ष में जहां पहले पहुंचा उस देश का अधिकार
- आर्टेमिस समझौते से तय होंगे महत्वपूर्ण प्रावधान
Mining on Moon: धरती की कोख में सोना, चांदी से लेकर, हीरे-मोती, लोहा, कीमत पत्थर, कोयला, बालू समेत असंख्य रत्न हैं। मगर अब दुनिया भर में तेजी से हो रहे खनन के चलते धीरे-धीरे धरती की कोख खाली होने लगी है। ऐसे में अब इंसानों ने चांद पर खनन करने का रास्ता तैयार किया है। चांद पर यह खनन कैसे होगा, वहां किन-किन देशों को इसका अधिकार होगा। इसको लेकर एक अंतरराष्ट्रीय कानून बनाया गया है। इसी के तहत अब वैज्ञानिक मिशनों के समर्थन में चंद्रमा पर खनन की अनुमति के लिए ‘आर्टेमिस समझौतों’ के प्रभाव में आने से अंतरराष्ट्रीय कानून में नया अध्याय जुड़ा है।
हाल में हुए अंतरराष्ट्रीय समझौतों के बाद अमीर देश कानूनी तरीके से चंद्रमा पर और अंतरिक्ष में अन्य पिंडों पर अपने वैज्ञानिक मिशनों के समर्थन में खनन कर सकते हैं। अमेरिका ने अपने अपोलो मिशन के करीब 50 वर्ष बाद 2020 में चंद्रमा पर मनुष्य को भेजने की योजना की घोषणा की थी। पौराणिक मान्यता के अनुसार अपोलो की जुड़वां बहन के नाम वाली आर्टेमिस योजना चंद्रमा पर और चंद्रमा की परिक्रमा करते स्टेशन ‘गेटवे’ पर मनुष्य की स्थायी मौजूदगी से जुड़ी है। चंद्रमा पर आर्टेमिस मिशन मंगल और उससे परे पहले मानव मिशन के लिए परीक्षण आधार के रूप में काम करेंगे और मनुष्य की अंतरिक्ष उड़ान में एक नये युग की शुरुआत करेंगे।
चंद्रमा की चट्टानों के खनन से निकाली जाएगी आक्सीजन
दीर्घकालिक मानवीय मिशनों की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए आर्टेमिस में अंतरिक्ष के संसाधनों के उपयोग की परिकल्पना है। उदाहरण के लिए ऑक्सीजन तथा हाइड्रोजन के लिए चंद्रमा की चट्टानों और मिट्टी में खनन। ऑक्सीजन सांस लेने में कारगर हो सकती है और हाइड्रोजन पेयजल तथा रेडियेशन शील्ड के लिहाज से उपयोगी हो सकती है। ऑक्सीजन और हाइड्रोजन अंतरिक्ष यात्रा के लिए आवश्यक प्रणोदक (प्रपलेंट) के भी मौलिक तत्व हैं। मौजूदा अंतरिक्ष संधियां अंतरिक्ष के संसाधनों के उपयोग का विनियमन नहीं करतीं और ना ही वे इस पर रोक लगाती हैं। अमेरिका की 1967 की बाहरी अंतरिक्ष संधि को सबसे व्यापक रूप से अपनाया गया है। इसके अनुसार विभिन्न देश अंतरिक्ष में चंद्रमा या अन्य चीजों के हिस्सों पर स्वामित्व का दावा नहीं कर सकते। आर्टेमिस में मिशन के समर्थन में अंतरिक्ष के संसाधनों के उपयोग के लिए कानूनी आधार स्पष्ट किया गया है।
जो अंतरिक्ष में जहां पहले पहुंचा उस देश का अधिकार
कानूनी तौर पर कहें तो समझौते को संधि नहीं कहा जा सकता। उनमें अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत बाध्यता नहीं होती। ये समझौते केवल अमेरिका और उन अन्य देशों पर लागू होते हैं तो आर्टेमिस के विभिन्न मिशन में भाग लेना चाहते हैं। हालांकि आर्टेमिस समझौतों की कानूनी अहमियत जरूर है। आर्टेमिस समझौतों में कुछ प्रावधान अंतरिक्ष संधि की व्याख्या करते हैं और इस तरह निष्पक्षता की बात आती है। समझौतों के अनुसार जो देश चंद्रमा के संसाधनों का दोहन कर रहे हैं या खनन कर रहे हैं, उनका उन संसाधनों पर कोई संपत्ति संबंधी अधिकार नहीं होता। इस रूप में देखें तो आर्टेमिस समझौते राष्ट्रीय विनियोग और उपयोग के संदर्भ में बाहरी अतरिक्ष संधि के प्रावधानों के दायरे में आते हैं। व्यावहारिक रूप से देखें तो अंतरिक्ष संसाधनों का उपयोग कौन और किन परिस्थितियों में कर सकता है, इसे तय करने के लिए कोई नियामक रूपरेखा नहीं होने पर आर्टेमिस समझौते पहले आओ, पहले पाओ के आधार पर अंतरिक्ष के संसाधनों के उपयोग का समर्थन करते हैं। परिणाम स्वरूप वित्तीय और प्रौद्योगिकीय रूप से संपन्न देशों को इससे लाभ होगा, वहीं अल्प विकसित या अंतरिक्ष के लिहाज से उभरते देशों को इससे लाभ नहीं होगा या कहें तो कम से कम सीधा लाभ नहीं होगा।
आर्टेमिस समझौते से तय होंगे महत्वपूर्ण प्रावधान
आर्टेमिस समझौते का एक और प्रावधान बाहरी अंतरिक्ष संधि के पाठ के ब्योरे से संबंधित है। इसके अनुसार चंद्रमा पर गतिविधियां संचालित करने वाले देशों को एक ‘सुरक्षित क्षेत्र’ बनाना होगा ताकि अन्य देशों की गतिविधियों के साथ किसी तरह के नुकसानदेह हस्तक्षेप से बचा जा सके। अंतरिक्ष संधि में सुरक्षित क्षेत्र का उल्लेख नहीं है। इसमें केवल यह प्रावधान है कि देशों को अंतरिक्ष में गतिविधियां चला रहे अन्य देशों का सम्मान करते हुए अपने क्रियाकलाप करने होंगे। आर्टेमिस समझौतों में नयी अवधारणाएं भी हैं। उदाहरण के लिए धारा 9 एक सुरक्षित क्षेत्र बनाकर बाहरी अंतरिक्ष धरोहरों को सुरक्षित रखने से संबंधित है। पृथ्वी पर ऐतिहासिक स्थलों का संरक्षण निर्विवाद होता है, वहीं बाहरी अंतरिक्ष में किसी ऐतिहासिक स्थल का निर्धारण करने का कोई पूर्व उदाहरण नहीं है। यदि कोई देश एकपक्षीय तरीके से चंद्रमा के किसी क्षेत्र को ऐतिहासिक मूल्य वाला घोषित करता है तो यह गैर-विनियोग के सिद्धांत का उल्लंघन हो सकता है। मसलन अमेरिका अपोलो 11 के उतरने के स्थान और नील आर्मस्ट्रांग के जूतों के निशान को ऐतिहासिक महत्व का घोषित कर सकता है और उसके आसपास सुरक्षित क्षेत्र बना सकता है।
हालांकि इस तरह की कार्रवाई चंद्रमा पर एक क्षेत्र के वस्तुत: उपयोग के समान हो सकती है। इस लिहाज से आर्टेमिस समझौते इस जटिल स्थिति का पूर्वाभास करते नजर आते हैं जिसमें बाहरी अंतरिक्ष में ऐतिहासिक महत्व के स्थान के संरक्षण के लिए नियम बनाने के वास्ते बहुपक्षीय प्रयासों की जरूरत रेखांकित की गयी है। यदि आर्टेमिस समझौतों का समर्थन करने वाले देशों की संख्या बढ़ती है, तो व्यापक रूप से साझा मानक तैयार होंगे। बाहरी अंतरिक्ष में गतिविधियों के लिए इन समझौतों पर भरोसा करने वाले देशों की संख्या बढ़ने से यह धारणा मजबूत होगी कि ये अंतरिक्ष खनन, सुरक्षित क्षेत्रों और ऐतिहासिक संरक्षण के लिहाज से उपयोगी कानून है। आर्टेमिस समझौते अंतरराष्ट्रीय कानून नहीं हैं, लेकिन उनमें अंतरराष्ट्रीय कानून में अगली प्रचलित प्रथा बनने की क्षमता है।