इजरायली बमबमारी से गाजा की गगनचुंबी इमारतें खंडहर हो चुकी हैं। बड़े-बड़े भवन बमों और मिसाइलों की मार से मलबे में तब्दील हो चुके हैं। इसी मलबे में दबी हैं हजारों लाशें। इन लाशों के बीच कुछ के जीवित होने की उम्मीदें भी जिंदा हैं। इन्हीं उम्मीदों को लेकर मलबे और खंडहरों में लोग अपनों की बेसब्री से तलाश कर रहे हैं। अगर किसी के शरीर में जरा हरकत दिखती है या बेहश दिखता है अथवा सांसें चलती दिखती हैं तो अपने उन्हें अस्पताल की ओर लेकर भागते हैं। गाजा का खान यूनिस शहर भी इजरायली बमबारी में तबाह हो चुका है। यहां भी मलबे में लोग अपनों के जिंदा होने की तलाश में सर्च ऑपरेशन चला रहे हैं।
अगर कोई जीवित महसूस होता है तो मानों उन्हें जिंदगी ने बहुत कुछ बख्श दिया, मगर जिन बॉडी में कोई हरकत नहीं दिखती, उन्हें देखते ही अपनों के सीने पर मानों इजरायल ने एक बम और गिरा दिया हो। लोग शवों के पास पहुंचते ही सदमे के शिकार हो रहे हैं। चीख-पुखार और हाहाकार के बीच फिर भी मलबे में जीवित बचे लोगों की तलाश जारी है। ऐसी तस्वीरें किसी के भी दिल को चीर सकती हैं। तस्वीरों में साफ देखा जा सकता है कि बमबारी में भवनों के ऐसे परखच्चे उड़ गए हैं, मानों वह कागज के बनाए गए थे। इन विशालकाय इमारतों को ताश के पत्तों की तरह बमबारी में बिखरा हुआ देखा जा सकता है।
खाने-पाने और दवा के लिए तरश रहे लोग
बमबारी में जो लोग बच भी गए या घायल हुए वह सभी दवा और खाने-पीने की वस्तुएं के लिए तरस रहे हैं। पीने को पानी है न खाने को भोजन। अस्पतालों में न तो डॉक्टर हैं, न बेड और न ही दवाएं और कोई इलाज। लिहाजा घायलों को लोग खुद से उनके खून और घावों को साफ कर कपड़े की पट्टी कर रहे हैं। बाद में उन्हें उम्मीद भरी नजरों से अस्पताल की ओर लेकर भाग रहे हैं। गाजा में दर्जनों अस्पताल भी बमबारी में खंडहर हो गए हैं या फिर उनका ढांचा आधे से अधिक क्षतिग्रस्त हो चुका है। 2 दर्जन से ज्यादा अस्पताल बंद हैं। बाकियों में पर्याप्त दवाएं और उपकरण नहीं रह गए हैं। इससे घायलों और मलबे के ढेर से जीवित निकलने वाले लोगों की जिंदगी को बचा पाना मुश्किल हो रहा है।
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