Coca-Cola: स्प्राइट का मतलब रास्ता क्लियर है। इस लाइन से चलाए गए विज्ञापन को आपने अक्सर टीवी पर देखा होगा। गर्मी के दिन आते ही हम सबको सॉफ्ट ड्रिंक की तलब लग जाती है। कई लोग तो कोल्ड ड्रिंक के आदि भी होते हैं। स्प्राइट पीने वाले लोगों के लिए ये खास खबर है। स्प्राइट अपनी बोतल का रंग क्यों बदलने जा रहा है? इसके बारे में विस्तार पूर्वक चर्चा करेंगे।
स्प्राइट ने अपनी बोतल का रंग बदलने का फैसला किया है। हरे रंग में दिखने वाली बोतल अब सफेद रंग में दिखेगी। स्प्राइट को कोका-कोला बनाती है। आज से ठीक 60 साल पहले अमेरिकी कंपनी कोका-कोला ने स्प्राइट को हरे रंग की बोतल में लॉन्च किया था।
आखिर कोका-कोला ने ये कदम क्यों उठाया?
1 अगस्त से दुनियाभर के बाजारों में स्प्राइट हरे रंग की जगह अब सफेद रंग में दिखने लगेगी। कोका-कोला ने बताया कि यह फैसला पर्यावरण की बेहतरी के लिए लिया गया है। हालांकि कोका-कोला ने ये फैसला फिलीपींस समेत यूरोपीय देशों में पहले ही ले लिया था। फिलीपींस में 2019 से ही सफेद कलर की बोतल में स्प्राइट बिक रही है। कंपनी नॉर्थ अमेरिका से इसकी शुरुआत करेगी और फिर पूरी दुनिया में हरे रंग की बोतलों को रिप्लेस करेगी। कंपनी को हरे रंग से क्या दिक्कत हो रही थी और इसमें एनवायरमेंट का क्या लॉजिक है? आइए विस्तार से समझते हैं। वर्तमान में स्प्राइट की बोतल जिस प्लास्टिक से बनाई जाती है उस प्लास्टिक का नाम 'टेरेफ्लेथेट' है। इस प्लास्टिक को रिसाइकिल तो कर सकते हैं लेकिन फिर से नई बोतल के रूप में नहीं ढाल सकते हैं। रंगीन बोतल को रिसाइकिल करना आसान नहीं होता है रंगीन बोतलें प्रदूषण का कारण बनती हैं। इनसे कपड़े और कारपेट बनाए जा सकते हैं। कपंनी इन प्लास्टिक की बोतलों को बेचकर उतना मुनाफा नहीं कमा सकती है, जिससे कि लागत निकल सके।
प्लास्टिक पर्यावरण के लिए एक खतरा
दुनिया भर से क्लाइमेट चेंजिंग और ग्लोबल वार्मिंग से जुड़ी खबरें प्रतिदिन आ रही हैं। ऐसे में कोका-कोला का ये फैसला लेना एक सकारात्मक पहल मानी जा सकती है। आपको बता दें, कंपनी एक साल में लगभग 30 लाख टन से अधिक प्लास्टिक का प्रयोग करती है। आमतौर पर देखा जाता है कि कोल्ड ड्रिंक पीने के बाद लोग इसे कचरे में फेंक देते हैं, जो नालों और नदियों से होते हुए संमुद्र में जा मिलते हैं। अगर आप कभी समुद्र के किनारे गए होंगे तो देखा होगा कि कैसे किनारों पर इस प्रकार की बोतलें पड़ी हुई होती हैं। ये प्लास्टिक समुद्र में रहने वाले जीव-जतुंओं के लिए जहर का काम करती है।
क्या है Coca-Cola का इतिहास?
ऐसा कहा जाता है कि कोका-कोला गलती से बन गया था। आप ये सुनकर हैरान होंगे लेकिन यही सच है। एक समय की बात है जब जॉन पेम्बर्टन स्टाइथ सिर-दर्द से परेशान थे। तभी उनको किसी ने कोला नट और कोला की पत्तियों का मिश्रण कर उसका सेवन करने को कहा था। लेकिन लैब के एक कर्मचारी ने दोनों को कार्बोंनेटेड वॉटर से मिला दिया। जब उसे टेस्ट किया गया तो उसका स्वाद बेहतर लग रहा था, जो बाद में कोका-कोला बना। जिसकी स्थापना 18 मई 1886 को की गई थी।
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