यरुशलम। जलाल अल-मसरी और उनकी पत्नी ने प्रजनन उपचार पर अपनी आठ साल की बचत को खर्च कर दिया। उनकी एक बिटिया फातमा हुई। जब दिसंबर में दंपत्ति को उसके जन्मजात हृदय दोष का पता चला, तो उन्होंने उसे इलाज के लिए गाजा पट्टी के बाहर ले जाने की इजराइल की अनुमति के लिए तीन महीने तक इंतजार किया। लेकिन वह परमिट कभी नहीं आया और 19 महीने की बच्ची ने 25 मार्च को दम तोड़ दिया।
बच्ची के पिता अल मसरी ने कांपती हुई आवाज में कहा, ‘‘जब मैंने अपनी बेटी को खो दिया, तो मुझे लगा कि गाजा में अब कोई जीवन नहीं है। मेरी बेटी की कहानी बार-बार दोहराई जाएगी।’’ अपनी बेटी की मृत्यु के दस दिन बाद, उन्हें इजराइल से एक और संदेश मिला जिसमें लिखा था, आवेदन अभी भी लंबित है।
दरअसल, गाजा पट्टी के फलस्तीनियों को जीवन-रक्षक उपचार के लिए इजराइल अनुमति देता है। गाजा पट्टी में 2007 से इस्लामी उग्रवादी गुट हमास के सत्ता पर आने के बाद से यह व्यवस्था लड़खड़ा गई है। अल मसरी ने कहा कि परिवारों को एक अपारदर्शी और अनिश्चित नौकरशाही प्रक्रिया पर बातचीत करनी चाहिए। उन्होंने कहा ‘‘हमारे आवेदन फलस्तीनी प्राधिकरण के माध्यम से प्रस्तुत किए जाते हैं। रिपोर्ट पर मुहर लगाई जाती है, कागजी कार्रवाई शुरू होती है और अंत में, सभी अल-मस्रियों को इजराइली सेना से एक संदेश आता है कि आवेदन की जांच की जा रही है।’’
इजराइली सैन्य निकाय 'कोगाट' परमिट प्रणाली की देखरेख करता है। उसने कई अनुरोधों का जवाब तक नहीं दिया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार, 2021 में गाजा से 15,000 से अधिक रोगी परमिट आवेदनों में से 37 प्रतिशत आवेदन या तो विलंबित या अस्वीकार किए गए थे। अल-मस्रियों और अन्य परिवारों की मदद करने वाले, गाजा स्थित एक समूह अल-मेजान का दावा है कि 25 महिलाओं और नौ बच्चों सहित कम से कम 71 फलस्तीनी नागरिक 2011 के बाद से आवेदन अस्वीकार करने या विलंबित होने के बाद अपनी जान गंवा चुके हैं।
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