1990 में कुवैत में इराक़ी घुसपैठ के वक़्त तारिक़ अज़ीज़ देश के अंतरराष्ट्रीय प्रवक्ता थे। घुसपैठ को सही ठहराते हुए उन्होंने कहा था कि कुवैत तेल का बहुत ज़्यादा उत्पादन कर रहा है जिससे इराक़ को नुकसान हो रहा है। उन्होंने मध्य पारव में "अमेरिका की दादागीरी" के आगे घुटने टेकने के लिए अरब देशों की आलोचना भी की।
अज़ीज़ ने 1991 में कुवैत पर इराक़ी कब्ज़े के समाधान के लिए हुए जिनीवा शांति सम्मेलन में भी भाग लिया था।
24 अप्रैल 2003 को अज़ीज़ ने अमरिकी फ़ौज के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। उन्हें पहले अमेरिका फिर बाद में इराक़ी सरकार ने जेल में बंद कर दिया और उन पर मुक़दमा चलने लगा। 1 मार्च 2009 को उन्हें कुछ आरोपों से बरी कर दिया गया लेकिन 11 मार्च 2009 को उन्हें मुनाफ़ाख़ोरी के 42 आरोपी व्यापारियों को फ़ांसी देने और कुर्द को दूसरी जगह बसाने के आरोप में कुल 22 साल की सज़ा हो गई।
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