बुंदेलखण्ड से आए दीपक सोनी ने बताया कि वह यहां 25-30 वर्षो से आ रहे हैं। दीपक ने कहा, "कोई साल ऐसा नहीं गया, जब बाबा के चमत्कार का साक्षात अनुभव नहीं हुआ।"
इसी तरह अनूप मोदी कहते हैं, "परिवार और मित्रों से जुड़े कई मामले हैं जब दिल्ली की दवाई हार गई, लेकिन यहां आते ही चमत्कारिक रूप से लोग ठीक हो गए।"
मेंहदीपुर बालाजी धाम इसलिए भी अनोखा है, क्योंकि यहां अन्य मंदिरों की तरह न तो प्रसाद चढ़ाया जाता है और न ही श्रद्धालु किसी तरह का प्रसाद अपने घर ले जा सकते हैं। हाजिरी या दरख्वास्त लगाने के नाम पर पांच रुपये में मिलने वाले छोटे-छोटे लड्डू जरूर चढ़ाए जाते हैं, हालांकि कोई भी श्रद्धालु उन्हें खुद अपने हाथ से किसी मूर्ति पर कुछ नहीं चढ़ा सकता।
मंदिर से जुड़ा एक विशेष नियम यह भी है कि यहां से वापसी में अपने साथ खाने-पीने की कोई भी वस्तु घर नहीं ले जा सकते हैं। दरबार से जल या भभूति व कोई पढ़ा हुआ सामान ले जाने का ही नियम है।
दरअसल आस्था के आगे न तर्क काम आते हैं न विज्ञान की दलील। मेंहदीपुर बालाजी मंदिर देश में आज भी व्याप्त अंधविश्वास की जीती-जागती बानगी पेश करता है।
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