मेलबर्न: ऑस्ट्रेलिया की क्वींसलैंड यूनिवर्सिटी द्वारा विकसित की जा रही कोरोना वायरस की वैक्सीन की टेस्टिंग चल रही है। इस वैक्सीन के क्लीनिकल पूर्व परीक्षणों में कोरोना वायरस के विरूद्ध ‘सकारात्मक परिणाम’ रहा है। यूनिवर्सिटी ने कहा है कि टेस्टिंग में मिले नतीजों से उसकी संभावित प्रभाव क्षमता एवं बड़े पैमान पर उत्पादन की उम्मीद जगी है। इस वैक्सीन की टेस्टिंग अभी जानवरों पर हुई है और यह देखने में आया है कि इससे वायरस को बढ़ने से रोकने में कामयाबी मिली है।
‘वैक्सीन से फेफड़े की परेशानियां कम हुईं’
यूनिवर्सिटी द्वारा किए गए टेस्ट के नतीजों के मुताबिक, सिकायरस एमएफ 59 के साथ यह वैक्सीन देने पर संबंधित संक्रमित जानवर को इस वायरस की वृद्धि से सुरक्षा मिली और उसके फेफड़े की परेशानियां कम हुई। ये निष्कर्ष अभी प्रकाशित नहीं हुए हैं। एक बयान के अनुसार इस परियोजना के सहप्रमुख एसोसिएट प्रोफेसर कीथ चैपल ने नीदरलैंड के वायरोक्लीनिक्स-डीडीएल द्वारा पशुओं पर किए गए परीक्षण का आंकड़ा इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर वैक्सीन के सामने रखा।
‘एंटीबॉडीज का बेहतर स्तर देखने को मिला’
कीथ चैपल ने कहा, ‘पशु मॉडल में हमारे आणविक टीके की निष्प्रभावी करने संबंधी प्रतिरोधक प्रतिक्रिया उन मरीजों में मौजूद एंटीबॉडीज के औसत स्तर से बेहतर है जो कोविड-19 से उबरे हैं। वह मजबूत टी सेल्स रिऐक्शन भी पैदा करता है। जहां तक बड़े पैमाने पर उसके उत्पादन संबंधी आंकड़े की बात है तो इस मोर्चे पर भी ठोस नतीजे सामने आए हैं।’ अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि टीकों के विकास में बड़ी चुनौतियों में एक व्यापक स्तर पर उपयोग के लिए बड़े पैमाने पर उनके उत्पादन की क्षमता भी है।
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