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ऑस्ट्रेलियाई PM बोले, ब्रैग्जिट समस्या से निपटने को आप मुझे चुने

ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री मैलकम टर्नबुल ने ब्रिटेन में ब्रेक्जिट के पक्ष में फैसला आने के बाद वैश्विक स्तर पर खड़ी आर्थिक चिंताओं के मद्देनजर ने स्थिरता और मजबूत आर्थिक नीति का वादा किया है।

मैलकम टर्नबुल- India TV Hindi मैलकम टर्नबुल

सिडनी: ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री मैलकम टर्नबुल ने ब्रिटेन में ब्रेक्जिट के पक्ष में फैसला आने के बाद वैश्विक स्तर पर खड़ी आर्थिक चिंताओं के मद्देनजर ने स्थिरता और मजबूत आर्थिक नीति का वादा किया है। यहां अगले सप्ताह आम चुनाव हो रहे हैं। ब्रेग्जिट का वैश्विक शेयर बाजारों पर काफी असर देखा गया है।

टर्नबुल ने मतदाताओं से आग्रह किया कि वे दो जुलाई को उनकी गठबंधन सरकार को फिर से चुनें। वैसे इस चुनाव में विपक्षी लेबर पार्टी के साथ उनके गठबंधन का कड़ा मुकाबला माना जा रहा है। उन्होंने कहा, यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के अलग होने के पक्ष में मतदान होने के बाद वैश्विक बाजारों में अनिश्चितता को देखते हुए हमारी आर्थिक योजना स्पष्ट है। शांत दिमाग, मजबूत हाथ और ठोस आर्थिक योजना आस्ट्रेलिया के लिए महत्वपूर्ण है।

क्या है BREXIT (ब्रैग्जिट): द ग्रेट ब्रिटेन के EU से एग्जिट को ही ब्रैग्जिट कहा जा रहा है। यानी कभी दुनिया पर राज करने वाले ब्रिटेन अब ईयू की शर्तों पर नहीं बल्कि अपनी शर्तों पर चलना चाहता है और वह अपनी खोई हुई वह संप्रभुता को वापस पाना चाहता है, जिसके खोने की वह दलील देकर यूनियन से बाहर होने का तर्क दे रहा है। इसी मुद्दे पर लोग दो धड़ों में बंट चुके हैं।

क्या है ब्रिमेन (BREMAIN): ये वो लोग हैं जो चाहते हैं कि ब्रिटेन पहले की तरह ईयू का हिस्सा बना रहे क्योंकि ऐसा आर्थिक लिहाज से बेहतर रहेगा।

अब जानिए क्या है ईयू:  दरअसल ईयू 28 देशों का एक ग्रुप है। जो कि इन देशों के बीच मुक्त व्यापार, अर्थव्यवस्था, तकनीक, विवाद और अन्य विषयों पर इनके बीच आपसी समन्वय कराने वाले एक नियामक के तौर पर काम करता है। इसकी अपनी एक कोर्ट और संसद है। साल 1975 में छह देशों की रोम संधि के जरिए यूरोपियन कम्युनिटी की शुरूआत हुई थी जिसमें बाद में कई यूरोपीय देश जुड़ते चले गए और यह यूरोपियन यूनियन बन गया।

ब्रिटेन की समस्या: वैसे तो ब्रिटेन ईयू का मेंबर होकर भी एक तरह से उससे अलग है, या यूं कहें कि उसे एक अलग स्टेटस मिला हुआ है। मसलन जब पूरे यूरोपियन यूनियन में यूरोप्रचलन में है तब ब्रिटेन द ग्रेट ब्रिटेन पाउंड (GBP) में लेन-देन करता है।

दुनिया के सबसे बड़े वित्तीय क्रेंद ब्रिटेन के लिए यूरोप ही सबसे अहम बाजार है। अगर वह ईयू से अलग होने का फैसला करता है को उसे वित्तीय केंद्र वाले स्टेटस को बड़ा धक्का लग सकता है। इस वजह से देश की आर्थिक स्थिति डांवाडोल हो सकती है और देश में बेरोजगारी में भी भारी इजाफा हो सकता है।

ब्रिटेन को करीब 9 अरब डॉलर ईयू के लिए देने पड़ते हैं जिसकी वजह से उसे तकलीफ हो रही है। ब्रिटेन ईयू से अलग होकर अपनी खोई हुई संप्रभुता और रूतबा हासिल करना चाहता है। साथ ही वह ईयू से अलग होकर उन तमाम शर्तों और नियमों से मुक्ति पा जाएगा जो ईयू ने लगा रखी हैं।

ब्रिटेन को फायदे और नुकसान:

फायदे:
1. अगर ब्रिटेन ईयू से बाहर आता है तो उसे करीब 9 अरब डॉलर जो ब्रिटेन को देने पड़ते है उससे उसे निजात मिल जाएगी।
2. ब्रिटेन अपनी खोई हुई संप्रभुता और रूतबा हासिल कर पाएगा।
3. ब्रिटेन को ईयू के उन तमाम नियमों से निजात मिल जाएगी जिससे उसको परेशानी हो रही है।
4. ब्रिटेन को प्रवासियों की संख्या से भी निजात मिल सकती है।

नुकसान:
1. ऐसा होने से ब्रिटेन में होने वाला व्यापार प्रभावित होता जो अर्थव्यवस्था को डांवाडोल स्थिति में पहुंचा सकता है।
2. अर्थव्यवस्था पर पडे़गा बुरा असर और बढ़ सकती है बेरोजगारी।
3. ब्रिटेन के ईयू से बाहर जाने से देश में होने वाला व्यापार अब पूरी तरह से ब्रिटेन और ईयू के रिश्तों पर निर्भर होगा। साथ एफडीआई के आकर्षण पर भी असर पड़ सकता है।
4. इस समय जर्मनी यूरोपियन यूनियन का सबसे ताकतवर मुल्क है, अगर ब्रिटेन बाहर जाता है तो जर्मनी की ताकत में और इजाफा होगा।

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