लंदन: बीते 10 सालों में दुनिया भर में 700 से अधिक पत्रकारों की हत्याएं हुई हैं। लेकिन इन सभी मामलों में सिर्फ एक में ही दोषी को सजा हुई। शैफील्ड विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग के संयुक्त प्रमुख जैकी हैरिसन के मुताबिक संवाददाताओं को चुनकर निशाना बनाना एक नई बात है। उन्होंने प्रेस की सुरक्षा और प्रेस पर हमला करने वालों को मिली छूट पर सवाल उठाए।
हैरिसन ने कहा, "दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में पत्रकारिता को देखने का नजरिया बदल गया है। पत्रकारों को पहले अधिक सुरक्षा मिलती थी। लेकिन, अब उन्हें चुनकर निशाना बनाया जा रहा है और यह सिर्फ सूचना के प्रवाह को रोकने के लिए किया जा रहा है।"
हैरिसन ने कहा, "आप गलत समय में गलत जगह पर हो सकते हैं। लेकिन, जो नई बात है वह पत्रकारों को अलग से निशाना बनाना है। यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और जनता के जानने के अधिकार पर हमला है।"
संयुक्त राष्ट्र ने पत्रकारों की सुरक्षा और हमलावरों के छूट जाने के मामले में कार्ययोजना बनाई है। लेकिन, प्रोफेसर हैरिसन कहते हैं कि चिंता की बात यह है कि ये कार्ययोजनाएं तभी सफल हो सकती हैं जब समाचार संगठन और लोगों को इनके बारे में पता हो।
हैरिसन ने अपने अध्ययन के लिए पाकिस्तान, मैक्सिको, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक आफ कांगो, तुर्की, भारत और बुलगारिया को चुना और इन देशों में वरिष्ठ पत्रकारों से बात की। उन्होंने बताया, "इन देशों को चुनने की वजह प्रेस के स्वतंत्रता सूचकांक 2014 में इनकी निचली स्थिति थी। इस सूचकांक में 180 देशों में पत्रकारों और पत्रकारिता की स्थिति का मूल्यांकन होता है।" इन छह देशों में पाकिस्तान का स्थान सबसे नीचे, 158वां था।
शैफील्ड विश्वविद्यालय के सेंटर फार द फ्रीडम आफ द मीडिया (सीएफओएम) के इस अध्ययन को 11 नवंबर को होने वाले 'पत्रकारिता खतरे में' कार्यक्रम में पेश किया जाएगा।
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