West Bengal News: पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के विधायक इदरिस अली के घर पर उनकी ही पार्टी के कार्यकर्ताओं ने तोड़फोड़ की है। टीएमसी कार्यकर्ताओं ने ये आरोप लगाया है कि पार्टी के स्थानीय संगठन में पदों के बंटवारे के लिए पैसा लिया गया। वहीं पूर्व लोकसभा सांसद अली ने इन आरोपों को निराधार बताया है और ये दावा किया है कि टीएमसी के कुछ स्थानीय नेता संदिग्ध पृष्ठभूमि वाले लोगों को पार्टी के ब्लॉक-स्तरीय संगठन में लाने की कोशिश कर रहे हैं।
अली ने कहा कि टीएमसी के कुछ स्थानीय नेताओं ने मेरी कार और मेरे घर के निचले तल में तोड़फोड़ की। पार्टी पदों के आवंटन के बदले वित्तीय अनियमितताओं का आरोप निराधार है और मुझे बदनाम करने के लिए राजनीति से प्रेरित है।
अली ने कहा कि कुछ स्थानीय नेता इस तरह के सौदों में शामिल हैं और ब्लॉक स्तर के संगठन में ऐसे लोगों का प्रवेश सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहे हैं। तोड़फोड़ के बाद भगोबंगोला क्षेत्र में बड़ी संख्या में पुलिस बल की तैनाती की गई है।
पार्थ चटर्जी की वजह से भी TMC की छवि हो चुकी है खराब
शिक्षक भर्ती घोटाले में फंसे पार्थ चटर्जी की वजह से भी ममता बनर्जी और उनकी पार्टी TMC विपक्ष के निशाने पर रह चुकी है। हालही में खबरें आईं थीं कि पश्चिम बंगाल सरकार ने चटर्जी के करीबी माने जाने वाले नौकरशाहों पर प्रशासनिक कार्रवाई शुरू कर दी है। इनमें से दो नौकरशाहों को राज्य के कार्मिक और प्रशासनिक सुधार विभाग द्वारा अनिश्चित काल के लिए छुट्टी पर भेज दिया गया है। ये विभाग मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के सीधे नियंत्रण में हैं।
इन दोनों अधिकारियों में से एक पश्चिम बंगाल सिविल सेवा (कार्यकारी कार्यालय) सुकांत आचार्य हैं, (जो राज्य के शिक्षा मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान और साथ ही जब वह वाणिज्य और उद्योग मंत्री थे) तब चटर्जी के निजी सहायक रहे थे। 2016 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में आचार्य बेहाला (पश्चिम) निर्वाचन क्षेत्र के लिए रिटर्निग ऑफिसर भी थे, जहां चटर्जी 2001 से तृणमूल कांग्रेस के पांच बार विधायक रहे।
दूसरे नौकरशाह प्रबीर बंद्योपाध्याय हैं, जो राज्य संसदीय मामलों के विभाग के विशेष कर्तव्य अधिकारी हैं (जो 2011 से चटर्जी के नियंत्रण में थे), वह तब से चटर्जी के करीबी हैं, जब तृणमूल पहली बार पश्चिम बंगाल में 34 साल लंबे वाम मोर्चा शासन को हटाकर सत्ता में आई थी। आचार्य प्रवर्तन निदेशालय (ED) की जांच के दायरे में थे, क्योंकि केंद्रीय एजेंसी ने करोड़ों रुपये के पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोग (WBSSC) भर्ती अनियमितताओं की जांच का जिम्मा संभाला था।