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Hindi News पश्चिम बंगाल पश्चिम बंगाल की हथकरघा साड़ियों ने किया कमाल, 3 किस्मों को मिला GI टैग; जानें क्या हैं विशेषताएं?

पश्चिम बंगाल की हथकरघा साड़ियों ने किया कमाल, 3 किस्मों को मिला GI टैग; जानें क्या हैं विशेषताएं?

पश्चिम बंगाल की तीन साड़ियों को जीआई टैग मिला है। इन तीनों साड़ियों की खास बात यह है कि ये सभी हथकरघा की साड़ियां हैं। साथ ही ये पश्चिम बंगाल के खास क्षेत्र से जुड़ी हुई हैं।

हथकरघा साड़ियों की 3 किस्मों को मिला GI टैग।- India TV Hindi Image Source : PTI हथकरघा साड़ियों की 3 किस्मों को मिला GI टैग।

कोलकाता: पश्चिम बंगाल की हथकरघा साड़ियों ने कमाल कर दिया है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जानकारी देते हुए बताया है कि पश्चिम बंगाल की हथकरघा साड़ियों की तीन किस्मों- तंगेल, कोरियल और गारद को भौगोलिक संकेतक (GI) का दर्जा मिला है। सीएम ममता बनर्जी ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म ‘एक्स’ पर पोस्ट करके इसकी जानकारी दी है। उन्होंने लिखा है कि ‘‘पश्चिम बंगाल की तीन हथकरघा साड़ियों नादिया और पुरबा बर्धमान की तंगेल, मुर्शिदाबाद और बीरभूम की कोरियल और गारद को जीआई उत्पादों के रूप में पंजीकृत और मान्यता दी गई है।’’ उन्होंने कारीगरों को बधाई देते हुए कहा कि यह उपलब्धि उनकी कड़ी मेहनत का नतीजा है। उन्होंने लिखा है कि ‘‘मैं कारीगरों को उनके कौशल और उपलब्धियों के लिए बधाई देती हूं। हमें उन पर गर्व है। उन्हें हमारी बधाई।’’ 

क्या है साड़ियों की खासियत

यहां बता दें कि तंगेल साड़ियां नादिया और पूर्व बर्धमान जिलों में बुनी जाती हैं। इसके अलावा कोरियल और गारद मुर्शिदाबाद और बीरभूम में बुनी जाती हैं। बेहद लोकप्रिय तंगेल सूती साड़ियों की संख्या अधिक होती है और इन्हें रंगीन धागों का उपयोग करके अतिरिक्त ताना-बाना डिजाइनों से सजाया जाता है। यह जामदानी सूती साड़ी का सरलीकरण है, लेकिन साड़ी के मुख्य हिस्से में न्यूनतम डिजाइन के साथ होता है। वहीं कोरियल साड़ियां सफेद या क्रीम बेस में भव्य रेशम की होती हैं और बॉर्डर और पल्लू में बनारसी साड़ियों की विशेष भारी सोने और चांदी सी सजावट होती है, जो आम तौर पर कंधे पर पहनी जाने वाली साड़ी का सजावटी सिरा होता है। इसके साथ ही गारद रेशम साड़ियों की विशेषता सादा सफेद या मटमैले सफेद, एक असामान्य रंग का बार्डर वाला और एक धारीदार पल्लू है और इसे पहले पूजा करने के लिए पहना जाता था। पसंद में बदलाव के साथ, विभिन्न रंग और बुने हुए पैटर्न पेश किए गए हैं।

GI टैग मिलना क्यों होता है खास

बता दें कि भौगोलिक संकेतक यानी Geographical Indication (GI Tag) मुख्य रूप से किसी उत्पाद को उसके मूल क्षेत्र से जोड़ने के लिए दिया जाता है। GI टैग मिलने के बाद उस उत्पाद की विशेषता बढ़ जाती है। आसान शब्दों में कहा जाए तो जीआई टैग किसी ऐसे उत्पाद को दिया जाता है जो सिर्फ किसी खास स्थान पर ही बनाए जाते हों और वह वस्तु क्षेत्रीय विशेषता के साथ जुड़ी हो। वहीं GI टैग मिलने के बाद इन उत्पादों को कानून से संरक्षण भी प्रदान कराया जाता है। इसका मतलब मार्केट में उसी नाम से दूसरा प्रोडक्ट नहीं लाया जा सकता। इसके साथ ही GI टैग का मतलब उस क्षेत्र की गुणवत्ता भी अच्छी होना बताता है। इन GI टैग वाले उत्पादों को वैश्विक बाजार भी उपलब्ध कराए जाते हैं।

(इनपुट- भाषा)

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