कोलकाता: पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में टीएमसी के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने बेशक ममता को फिर से सत्ता में वापसी कराने में कामयाबी हासिल की हो लेकिन उत्तर बंगाल में उनकी रणनीति फेल हो गई, यहाँ पर केंद्रीय मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल 42 विधानसभा के प्रभारी थे, जिनमें से 25 सीटों पर शानदार जीत हासिल हुई है। दरअसल बंगाल विधानसभा चुनावों को लेकर दीदी की चिंता 2019 में ही शुरु हो गई थी जब लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन किया. बीजेपी ने 18 सीटों पर कब्जा किया। नार्थ बंगाल की कुल 8 लोकसभा सीटों में से 7 पर बीजेपी ने विजय हासिल की थी।
बीजेपी की इतनी बड़ी जीत के बाद से ही दीदी को चिंता सताने लगी थी, सिर्फ तृणमूल ही नहीं वामदलों को भी अविश्वसनीय झटका लगा था। भविष्य के खतरे को भांपते हुए और इस क्षेत्र में पार्टी की पकड़ मजबूत बनाने के लिए ममता ने इसकी जिम्मेदारी सियासी रणनीतिकार प्रशांत किशोर को सौंपी थी। बीजेपी की जीत में जनजाति बहुल इलाकों के वोटरों की अहम भूमिका रही थी इसलिए प्रशांत किशोर ने इन लोगों के बीच पैठ बनाने के लिए विशेषतौर से रणनीति तैयार की। इन इलाकों में लोगों से जुड़ने के लिए तृणमूल कांग्रेस ने छोटे-छोटे कार्यक्रम किए। ममता बनर्जी की अहम योजना 'द्वारे सरकार' के तहत अनुसूचित जाति/जनजाति के लोगों को करीब 10 लाख जाति प्रमाणपत्र जारी किए गए।
पार्टी में जान फूंकने के लिए स्थानीय नेताओं से जनसम्पर्क अभियान में लगने को कहा गया और 'दीदी को बोलो' जनसंपर्क अभियान शुरू किया गया। इस क्षेत्र में विकास कार्यों की गति तेज कर दी गई ताकि विधानसभा चुनाव में तृणमूल की वापसी सुनिश्चित हो सके। गोरखा नेता बिमल गुरुंग को जोड़ा गया लेकिन केंद्रीय मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल की सटीक रणनीति के सामने सब धरा रह गया।
उत्तर बंगाल में मन्त्री जी के प्रभार वाली 42 सीटों में से बीजेपी ने 25 विधानसभा पर भारी मतों से जीत हासिल की। दार्जिलिंग और अलीपुरद्वार में तो तृणमूल खाता तक नहीं खोल पाई। यह कहना गलत न होगा कि बंगाल में बीजेपी के 3 से 77 तक के सफर में इन 25 सीटों का बहुत अहम योगदान है। बेशक बीजेपी सत्ता से दूर रह गई हो लेकिन एक मजबूत और लोकतांत्रिक विपक्ष देने में सफल साबित हुई है।
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