पश्चिम बंगाल में ज्यादातर सीटें क्यों हार गई बीजेपी? सीनियर नेता दिलीप घोष ने बता दी वजह
दिलीप घोष ने कहा कि उन्हें मेदिनीपुर से उम्मीदवार नहीं बनाया गया, जहां अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) समुदायों की अच्छी खासी आबादी है और ऐसा करने के पीछे तर्क दिया गया कि उन्हें कुर्मी वोट नहीं मिल रहे थे।
कोलकाता: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता दिलीप घोष ने सार्वजनिक तौर पर यह कहने के एक दिन बाद कि उन्हें मेदिनीपुर लोकसभा क्षेत्र के बजाय बर्धमान-दुर्गापुर से टिकट दिया जाना पार्टी नेतृत्व की एक गलती थी, उनके जैसे स्थापित नेताओं को जीतने योग्य निर्वाचन क्षेत्रों से चुनौतीपूर्ण चुनावी मैदानों में स्थानांतरित करने के पीछे की तर्कसंगतता पर सवाल उठाया। मेदिनीपुर से 2019 का लोकसभा चुनाव जीतने वाले पूर्व भाजपा प्रदेश अध्यक्ष घोष को 2024 के चुनाव में बर्धमान-दुर्गापुर सीट पर करारी हार का सामना करना पड़ा। घोष टीएमसी के कीर्ति आजाद से लगभग 1.38 लाख वोट से हार गए।
दिलीप घोष ने कही ये बात
दिलीप घोष ने कहा, "मेरे और (पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री) देबाश्री चौधरी जैसे उम्मीदवार, जो मेदिनीपुर और रायगंज जैसे निर्वाचन क्षेत्रों से परिचित हैं और जिन्होंने वर्षों तक जमीनी स्तर पर काम किया है, उन्हें इस बार अन्य सीट पर भेजा गया। इस पर गौर किया जाना चाहिए। हालांकि हमने रायगंज को बरकरार रखा, लेकिन यह समझ से परे है कि चौधरी को कोलकाता दक्षिण क्यों भेजा गया?" घोष ने इन निर्णयों पर आश्चर्य व्यक्त किया, कमजोर सीट पर जीत के महत्व पर जोर दिया और रणनीति में स्पष्ट उलटफेर पर दुख जताया।
दिलीप घोष ने बताई अंदर की बात
उन्होंने कहा, "यह बहुत ही हैरान करने वाला है कि कमजोर सीट पर जीत की योजना बनाने के बजाय, जाहिर तौर पर हम कुछ और कर रहे हैं और कुछ जीतने योग्य सीट हार रहे हैं। यह तर्क से परे है।" उन्होंने एक सांसद, नेता और जमीनी कार्यकर्ता के रूप में मेदिनीपुर में अपने वर्षों के समर्पित काम को उजागर किया और दूसरी जगह भेजे पर आश्चर्य व्यक्त किया। उन्होंने पार्टी के महत्वपूर्ण निर्णयों के बारे में प्रदेश नेतृत्व से बातचीत और परामर्श की कमी की भी आलोचना की।
घोष को बर्धमान-दुर्गापुर भेजा गया, जिसे टीएमसी के खिलाफ लड़ाई में चुनौतीपूर्ण माना जाता है, जहां उन्होंने निवर्तमान सांसद एस एस अहलूवालिया की जगह ली। बदले में, अहलूवालिया को आसनसोल स्थानांतरित कर दिया गया। आसनसोल दक्षिण से पार्टी की मौजूदा विधायक अग्निमित्र पॉल ने मेदिनीपुर में घोष की जगह चुनाव लड़ा। हालांकि, चुनावों में तीनों भाजपा उम्मीदवार अपने टीएमसी प्रतिद्वंद्वियों से हार गए।
मेदिनीपुर से इसलिए नहीं लड़ाया गया चुनाव
उन्होंने कहा, ‘‘हमारी पार्टी के कुछ लोगों ने तर्क दिया कि मेरे नामांकन से मेदिनीपुर में हार होगी, क्योंकि पिछड़ी जाति माने जाने वाले कुर्मी वोट बैंक मेरे खिलाफ हो जाएंगे। हालांकि, यह तर्क पुरुलिया पर लागू नहीं हुआ, जहां भाजपा उम्मीदवार को फिर से टिकट दिया गया, जबकि इस क्षेत्र में भी कुर्मी आबादी काफी है।’’ इन शिकायतों के बावजूद, घोष ने आम पार्टी कार्यकर्ताओं और आम लोगों से जुड़े रहने की अपनी प्रतिबद्धता दोहरायी। अपनी निराशा व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि यदि आवश्यक हुआ तो वे अपना रास्ता चुनने के लिए तैयार हैं।
घोष ने कहा, "पिछले चार वर्षों में, मैंने भाजपा के कई राज्य स्तरीय महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में भाग नहीं लिया, क्योंकि मुझे इसकी जानकारी नहीं दी गई थी।" चार जून को अपनी हार के बाद, घोष ने बृहस्पतिवार को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा पार्टी के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को महत्व दिए जाने पर जोर दिए जाने का हवाला देकर विवाद खड़ा कर दिया था।
इनपुट-भाषा