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Hindi News पश्चिम बंगाल अफगानिस्तान में बिगड़ते हालात को लेकर चिंतित कोलकाता में रह रहे काबुलीवाले

अफगानिस्तान में बिगड़ते हालात को लेकर चिंतित कोलकाता में रह रहे काबुलीवाले

मसूद ने कहा, ''जुलाई में मैंने आखिरी बार अपने छोटे भाई और परिवार से बात की थी। मई के बाद से, मैं उन्हें अफगानिस्तान छोड़कर भारत या किसी अन्य देश में जाने के लिए कह रहा हूं। मुझे अब उनके ठिकाने के बारे में कोई जानकारी नहीं है।'' 

Taliban fighters in Afghanistan- India TV Hindi Image Source : AP FILE PHOTO Taliban fighters in Afghanistan

कोलकाता। अफगानिस्तान पर तालिबान के नियंत्रण और राजधानी काबुल पर उसके कब्जे के बाद कोलकाता में रह रहे काबुलीवाले (काबुल के लोग) वहां रह रहे अपने परिवार के सदस्यों को लेकर बेहद चिंतित हैं। कोलकाता में रहने वाले अफगानिस्तानियों को आमतौर पर काबुलीवाला कहा जाता है। ये लोग अपने देश से लाए गए मुख्य रूप से सूखे मेवे, कालीन और इत्र घर-घर बेचते हैं। साथ ही ये पैसे उधार देने का भी काम करते हैं। बीते कई दशकों से शहर में रह रहे 58 वर्षीय उमर मसूद उधार पर पैसा देते हैं। वह कहते हैं कि बीते दो सप्ताह से वह कुंदूज में रह रहे अपने परिवार और मित्रों से संपर्क नहीं कर पाए हैं।

मसूद ने कहा, ''जुलाई में मैंने आखिरी बार अपने छोटे भाई और परिवार से बात की थी। मई के बाद से, मैं उन्हें अफगानिस्तान छोड़कर भारत या किसी अन्य देश में जाने के लिए कह रहा हूं। मुझे अब उनके ठिकाने के बारे में कोई जानकारी नहीं है।'' अमेरिका के नेतृत्व वाली सेनाओं ने 2001 में तालिबान को अफगानिस्तान में सत्ता से हटा दिया गया था, लेकिन तालिबान लड़ाकों ने काबुल सहित प्रमुख शहरों पर कब्जे के बाद एक बार फिर अफगानिस्तान पर नियंत्रण कर लिया है।

अफगानिस्तान की मौजूदा सरकार गिर गई है और राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़कर चले गए हैं। करीब दो दशक से जारी संघर्ष में हजारों लोग मारे जा चुके हैं और लाखों लोग विस्थापित हुए हैं। पिछले साल काबुल से कोलकाता आए मोहम्मद खान (49) ने कहा कि देश में हालात एक बाहर फिर बदतर हो गए हैं।

उन्होंने बताया, ''90 के दशक में जब तालिबान ने पहली बार अफगानिस्तान पर नियंत्रण किया था, तो मैंने देश छोड़ दिया था। लेकिन 2017 में जब देश में सबकुछ ठीक लगा तो मैं वापस लौट गया। मैं वहां दुकान भी खोली, लेकिन जब अमेरिका ने देश से अपनी सेना को वापस बुलाने का फैसला किया तो चीजें फिर से बदतर होने लगीं। मेरे पास अपने बीवी-बच्चों को लेकर कोलकाता लौटने के अलावा कोई चारा नहीं बचा।''

खान ने कहा कि वह काबुल के बाहरी इलाके में रहने वाले अपने परिवार से कोई खबर नहीं मिलने के कारण रात को सो नहीं पा रहे हैं। वह कहते हैं, ''90 के दशक में तालिबान ने मेरे परिवार के कई सदस्यों को जान से मार दिया क्योंकि वे उनके शासन के खिलाफ थे। मैं नहीं जानता कि वहां मेरे परिवार का क्या भविष्य है।''

शहर में रहने वाले कई अफगानियों ने उम्मीद जताई कि भारत सरकार उन शरणार्थियों को यहां लेकर आएगी, जो वहां से भाग गए हैं। साठ वर्षीय उमर फारूकी कहते हैं, ''हम भारतीय अधिकारियों से अफगान शरणार्थियों की मदद का अनुरोध करेंगे क्योंकि उनके पास कहीं और जाने की कोई जगह नहीं है।''