A
Hindi News पश्चिम बंगाल 'इस बार कोई समझौता नहीं होगा', दार्जिलिंग में सुलग रही है गोरखालैंड के लिए नये आंदोलन की आग

'इस बार कोई समझौता नहीं होगा', दार्जिलिंग में सुलग रही है गोरखालैंड के लिए नये आंदोलन की आग

GJM और हमरो पार्टी ने पश्चिम बंगाल को बांटने के प्रयासों के विरोध में राज्य विधानसभा में पारित एक प्रस्ताव के खिलाफ गुरुवार को इन पहाड़ियों में बंद का आह्वान किया था, लेकिन कक्षा-10 की बोर्ड परीक्षा के मद्देनजर इसे वापस ले लिया।

Gorkhaland Movement, Gorkha Janmukti Morcha, Gorkhaland Darjeeling- India TV Hindi Image Source : FILE गोरखा जनमुक्ति मोर्चा द्वारा बुलाए गए एक बंद के दौरान बाजारों में पसरा सन्नाटा।

दार्जिलिंग/कोलकाता: गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (GJM) और हमरो पार्टी सहित दार्जिलिंग हिल्स में गोरखालैंड समर्थक संगठनों ने संकेत दिया है कि 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले अलग राज्य के गठन को लेकर दबाव बनाने के लिए एक नया आंदोलन शुरू किया जाएगा। GJM प्रमुख और अपने पूर्व संरक्षक बिमल गुरुंग से हाथ मिलाने के लिए तृणमूल कांग्रेस (TMC) छोड़ने वाले बिनय तमांग ने जोर देकर कहा कि इस बार आंदोलन किसी दबाव में नहीं झुकेगा।

‘न कोई समझौता होगा, न हम दबाव में झुकेंगे’
GJM और हमरो पार्टी ने पश्चिम बंगाल को बांटने के प्रयासों के विरोध में राज्य विधानसभा में पारित एक प्रस्ताव के खिलाफ गुरुवार को इन पहाड़ियों में बंद का आह्वान किया था, लेकिन कक्षा-10 की बोर्ड परीक्षा के मद्देनजर इसे वापस ले लिया। तमांग ने बताया, ‘आने वाले महीनों में हम बड़े पैमाने पर आंदोलन शुरू करेंगे, जो गोरखालैंड हासिल करने के बाद ही थमेगा। इस बार न कोई समझौता होगा, न हम दबाव में झुकेंगे। यह गोरखाओं की पहचान स्थापित करने की लड़ाई होगी।’

‘दार्जिलिंग के लोगों की आकांक्षाएं पूरी नहीं हुईं’
गोरखालैंड प्रादेशिक प्रशासन (GTA) के लिए 2011 में हुए समझौते से GJM के बाहर निकलने के कुछ दिनों बाद यह घटनाक्रम सामने आया है। GJM ने दावा किया कि दार्जिलिंग के लोगों की आकांक्षाओं को पूरा नहीं किया गया। अलग राज्य के लिए 2017 में हुए आंदोलन के 6 साल बाद व्यापक आंदोलन का आह्वान किया गया है। वर्ष 2017 में हुए आंदोलन के दौरान इन पर्वतीय क्षेत्रों में 104 दिनों तक बंद रखा गया था।

‘हमने पहले से ही भूख हड़ताल शुरू कर दी है’
हमरो पार्टी के प्रमुख अजॉय एडवर्ड्स ने बताया, ‘इन पर्वतीय क्षेत्रों के लोगों की महत्वाकांक्षाओं की परवाह किए बिना प्रस्ताव पारित करने के तरीके का हम विरोध करते हैं। परीक्षाओं के कारण बंद का आह्वान वापस ले लिया गया था, लेकिन, यह आने वाले दिनों में बड़े जन आंदोलनों की शुरुआत है। हमने पहले से ही भूख हड़ताल शुरू कर दी है।’ हाल के महीनों में दार्जिलिंग में एक नया राजनीतिक पुनर्गठन हुआ है तथा एडवर्ड्स, गुरुंग और तमांग ने गोरखालैंड की मांग को जिंदा करने के लिए हाथ मिलाया है।

अपने मतभेदों को दूर करने को मजबूर हुए नेता
दार्जिलिंग में हाल के सालों में कई आंदोलन हुए हैं तथा राजनीतिक दलों ने लोगों को अलग गोरखालैंड राज्य देने और छठी अनुसूची के कार्यान्वयन का वादा किया है। इसके कार्यान्वयन से उन क्षेत्रों को स्वायत्तता मिलेगी, जहां आदिवासी-बसे हुए हैं। भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोर्चा (BGPM) के प्रमुख और GTA के अध्यक्ष अनित थापा के TMC सरकार के समर्थन से दार्जिलिंग में नंबर एक राजनीतिक ताकत के रूप में उभरने के मद्देनजर इस क्षेत्र के तीन प्रमुख नेताओं को अपने मतभेदों को दूर करने के लिए मजबूर होना पड़ा।

‘GJM का वह प्रभाव अब इस पर्वतीय क्षेत्र में नहीं’
इस बीच, GJMचीफ ने पर्वतीय क्षेत्रों की समस्याओं के ‘स्थायी राजनीतिक समाधान’ के BJP के वादे का समर्थन करते हुए बयान दिए हैं। एक राजनीतिक विश्लेषक और भारतीय गोरखा परिसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुनीश तमांग ने कहा, ‘GJM का वह प्रभाव अब इस पर्वतीय क्षेत्र में नहीं है जो पहले कभी था। हमरो पार्टी भी एक प्रमुख खिलाड़ी नहीं है। इस बारे में बोलना जल्दबाजी होगी कि क्या यह एक बड़े आंदोलन की शुरुआत है।’ हालांकि इस क्षेत्र को बंगाल से अलग करने की मांग एक सदी से अधिक पुरानी है, और आंदोलन को 1986 में गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट के नेता सुभाष घीसिंग ने आगे बढ़ाया था। (भाषा)