चांद को मामा ही क्यों कहते हैं, चाचा, ताऊ या फूफा क्यों नहीं
क्या आपने कभी सोचा है कि चांद को मामा ही क्यों कहा जाता है। इसके एलावा कुछ और क्यों नहीं कहा जाता है।
हम सबने अपने बचपन में चांद को मामा कहा होगा। जब हम छोटे थे तब इस पर एक कविता भी बहुत मशहूर थी। "चंदा मामा दूर के..." यह कविता बच्चे-बच्चे की जुबां पर थी। आज भी गांव में बच्चों को यह सिखाया जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस चांद को चंदा मामा ही क्यों कहते है कुछ और क्यों नहीं कहते। है न सोचने वाली बात। आपको बता दें कि भारत ही एक ऐसा देश है जहां चांद को मामा का दर्जा दिया गया है। हिंदी के कई कवियों ने भी अपनी कविताओं में चांद को मामा ही कहा है। तो चलिए जानते हैं इसके पीछे की असली वजह।
तो इसलिए चांद को मामा कहते हैं
दरअसल, चांद को मामा कहने का राज पौराणिक कथाओं से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि जब समुद्र मंथन चल रहा था तब समुद्र से कई तत्व बाहर निकले थे उनमें से एक चांद भी था। जो भी तत्व बाहर निकल रहे थे वह सभी मां लक्ष्मी के छोटे भाई या बहन कहला रहे थे। अब हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार देखें तो हम लक्ष्मी देवी को मां कहते हैं इसलिए उनके भाई चंद्रमा हमारे मामा हुए। अब इसके पीछे के वैज्ञानिक पहलु को भी समझ लीजिए। चंद्रमा पृथ्वी के चारो ओर चक्कर लगाता है एक भाई की तरह वह पृथ्वी की रक्षा करता है और पृथ्वी को हम माता मानते हैं इसलिए चांद हमारा मामा हुआ। इन आधारों पर ही चांद को मामा का दर्जा दिया गया है। देश में इसके अलावा और भी कई मान्यताएं है जो चांद को मामा बताती हैं।
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