The Great Resignation: दुनिया में क्यों लगी है इस्तीफों की झड़ी? क्या ये नई क्रांति की शुरूआत है
इंडिया में नौकरी खोजने पर नहीं मिल रही और यूरोप में लोग छोटे तो छोटे, बड़े पैकेज की नौकरियों को भी लात मारकर जा रहे हैं।
नौकरी करने का मन किसी का नहीं करता लेकिन नौकरी हर कोई पाना चाहता है। जिंदगी चलाने के लिए नौकरी जरूरी जो है। हमारे देश में एक एक नौकरी के लिए हजारों आवेदन आते हैं और किस्मत वालों को नौकरी मिलती है। लेकिन यूरोप और अमेरिका में इन दिनों उल्टी गंगा बह रही है। इंडिया में नौकरी खोजने पर नहीं मिल रही और यूरोप में लोग छोटे तो छोटे बड़े पैकेज की नौकरियों को भी लात मारकर जा रहे हैं।
जी हां, इस्तीफों के महादौर की ये खबरें विदेशी अखबारों में सुर्खियां बनी हैं और ये खबरें इंडिया में भी सुगबुगाहट फैला चुकी है। इन खबरों के मुताबिक यूरोप और अमेरिका और दुनिया के और कई मुल्कों में कंपनियां इसलिए संकट में आ गई हैं क्योंकि यहां लोग नौकरियों से धड़ाधड़ इस्तीफा दे रहे हैं। आप सोच रहे होंगे कि इस्तीफा नई बात कैसे हो गई, एक इस्तीफा देगा तो कोई दूसरा ज्वाइन करेगा। लेकिन हैरानी इस बात पर है कि इस्तीफा देने के बाद लोग नई नौकरियों पर ज्वाइन ही नहीं कर रहे हैं।
वाशिंगटन पोस्ट की खबर के मुताबिक अकेले अगस्त माह में अमेरिका में लगभग 43 लाख लोगों ने नौकरी को लात मार दी और दूसरी नौकरी भी नहीं पकड़ी। हालात ये हैं कि कोरोना का प्रकोप खत्म होने के बाद अमेरिका की होटल इंडस्ट्री में मैनपावर की भयंकर किल्लत हो गई है। खास बात ये भी है कि नौकरी छोड़ने वालों में ज्यादा तादाद महिलाओं की है।
यूरोप के 63 देशों में भी कमोबेश यही हालात है। इतना ही नहीं पूरी दुनिया में #greatresignation #thegreatquit का ट्रेंड चल रहा है। यहां लोग नौकरी करने के मूड में नहीं है। कुछ नौकरी छोड़ रहे हैं तो कुछ फील्ड ही चेंज कर रहे हैं। कुछ के मन में रिटायरमेंट का प्लान है तो दुनिया की सैर पर निकलने को तैयार हैं। देखा जाए तो इस महापलायन के पीछे का नजरिया कंपनियों से नाखुशी भी हो सकता है, क्योंकि वर्क प्रेशर के दबाव और कोविड के वार से जनता त्रस्त हुई है।
इंडिया में जहां एक नौकरी के लिए हजारों आवेदन आते हैं वहीं दुनिया के बाकी देशों में नौकरी देने के लिए कंपनियों की मारामारी हैरान कर रही है। यूरोप में होटल और मेडिकल इडंस्ट्री खासकर मैनपावर की किल्लत से जूझ रही है। डर है कि ऐसे ही हालात रहे तो दिक्कतें बढ़ सकती है।
क्यों बन गए हैं ऐसे हालात? लोग नौकरी नहीं करेंगे तो क्या करेंगे? कंपनियां कहां से लाएंगी मैनपावर? कैसे चलेगा दुनिया का बिजनेस। ऐसे कई सवाल #greatresignation कही जाने वाली इस क्रांति से उठ खड़े हुए हैं।
चलिए पहले उन पहलुओं की तहकीकात करते हैं जिसके दुनिया भर के लोग नौकरी छोड़कर जा रहे हैं। हालांकि इसके पीछे किसी एक कारण को खड़ा करना सही नहीं होगा लेकिन कोविड के बाद उपजे हालात बड़े तौर पर जिम्मेदार कहे जा सकते हैं।
कोविड ने बदला नजरिया
कोविड ने लोगों की लाइफस्टाइल ही नहीं बदली है, उनकी प्राथमिकताएं, भविष्य को लेकर उनकी योजनाएं और सबसे बड़ी बात, उनका नजरिया बदल दिया है। जिंदगी को क्षणभंगुर मानने वालों की संख्या बढ़ी है और नौकरी में बैल की तरह जुतने से बेहतर लोगों को ये लग रहा है कि जितनी भी है जिंदगी को भरपूर तरीके से जी लिया जाए।
यूरोप अमेरिका में कोविड का भयानक मंजर देखने के बाद यहां जनजीवन पर कोविड का डर ऐसा बैठा है कि लोग भविष्य को दूसरे नजरिए से देखने लगे हैं। लोगो को लगता है कि इस बार कोविड से बच गए तो किसी दूसरी बीमारी से जल्द ही मर जाएंगे। ऐसे में जिंदगी तो एक ही है ना भैया। इसलिए जमकर जी ले। इसी मानसिकता के हावी होने पर लोग नौकरियां छोड़कर अपने परिवार के साथ टाइम आउट कर रहे हैं या दुनिया की सैर पर निकल पड़े हैं।
कोविड ने दुनिया को जिंदगी की कीमत समझा तो दी है लेकिन इस बीमारी ने भविष्य को असुरक्षित बनाया है जिसका खामियाजा हमें कई मोर्चों पर देखने को मिल सकता है।
यूरोप में अधिकतर देश इतने संपन्न और आत्मनिर्भर हैं कि यहां जीवन के भौतिक सुखों को पाने की आपाधापी नहीं दिखती। कल के लिए सारा साजो सामान एकत्र करो, बच्चों की परवरिश शादी ब्याह..जैसे सपने भारत में जरूर देखे जाते हैं लेकिन यूरोप के कई देश बहुत सामान्य जीवन व्यतीत करने वालों से भरे है। सिंपल लिविंग, हाई थिंकिंग यहां के लाइफस्टाइल पर दिखता है, ऐसे में अगर यहां के लोग नौकरी छोड़कर खेती पर भी ध्यान देने लगें तो ज्यादा हैरानी नहीं होनी चाहिए लेकिन अमेरिका में ऐसा कुछ नहीं है।
अपना बिजनेस
कोविड के भयावह दौर से बचकर निकले लोग अब नौकरी की अनिश्चितता पर भरोसा नहीं कर पा रहे। वो अपना बिजनेस खोल रहे हैं जिसके चलते वो नौकरी छोड़ रहे हैं। छोटे मोटे काम जो उनके शौक के भी हों और उनका जीवन यापन भी कर सकें, ऐसे बिजनेस की चाह में युवा अच्छे पैकेज की नौकरियों को लात मार रहे हैं।
घूमने फिरने की आजादी
इंडिया वाले जहां गर्मी की छुट्टियों को ही घूमने फिरने का वक्त मान लेते हैं वहीं यूरोपीय देशों की सोच अलहदा है। वहां लोग साल भर नौकरी करके पैसा जमा करते हैं और फिर नौकरी छोड़कर दुनिया घूमने निकल पड़ते हैं। ये सोच कोविड के बाद ज्यादा पुख्ता हुई है क्योंकि लोग परिवार के साथ ज्यादा समय बिताना चाह रहे हैं।
ज्यादा वर्कप्रेशर और वर्क फ्रॉम होम
कोरोना काल में लगभग दो साल लोग घर से दफ्तर का कामकाज करते रहे। इस दौरान वो घर से काम करने के इतने आदी हो गए कि अब जब कंपनियां फिर से उन्हें दफ्तर बुला रही है तो वो आना नहीं चाहते। वो वर्क फ्रॉम होम का लचीलापन खोना नहीं चाहते औऱ लगातार नौ दस घंटे की जॉब से डरे हैं।
कंपनियों का तानाशाही रवैया
कोविड काल में कंपनियों ने कम प्रॉफिट का हवाला देकर लाखों लोगों की नौकरियां छीनी गई। कइयों को आधी सैलरी पर काम करने के लिए मजबूर किया गया। वर्क फ्रॉम होम में भी लगातार काम का दबाव और प्रेशर डाला गया जिससे नौकरीपेशा लोग उकताए और नौकरियां छोड़ने का मन बनाने को मजबूर हुए।
ऐसा कब तक चलेगा
नौकरियों से इस्तीफों का दौर कब तक चलेगा। हालांकि ये बदलाव का दौर है और ये अस्थाई होगा, इसकी उम्मीद की जा रही है। एक्सपर्ट मान रहे हैं कि काफी वक्त बाद ऐसा दौर आया जब कंपनियां अपने कर्मचारियो को लेकर अपनी पॉलिसी बदलने को मजबूर होंगी। कोविड का खौफ कम होगा तो लोग फिर नौकरियां पर विश्वास कायम कर पाएंगे और दुनिया फिर से रफ्तार से दौड़ने लगेगी।