A
Hindi News उत्तर प्रदेश ससुराल में रहना जरूरी नहीं, माता-पिता के साथ रहकर भी ससुर से गुजारा भत्ता ले सकती है विधवा, इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला

ससुराल में रहना जरूरी नहीं, माता-पिता के साथ रहकर भी ससुर से गुजारा भत्ता ले सकती है विधवा, इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला

हाई कोर्ट ने कहा कि विधवा महिला के लिए शादी के बाद ससुराल में रहना जरूरी नहीं है। वह अपने माता-पिता के साथ रहकर भी गुजारा भत्ता पाने की हकदार है।

Allahabad High Court- India TV Hindi Image Source : FILE PHOTO इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आगरा के एक परिवार से जुड़े मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि गुजारा भत्ता लेने के लिए किसी विधवा को ससुराल में रहना जरूरी नहीं है। एक महिला विधवा होने पर अपने माता-पिता के साथ रह सकती है और इस स्थिति में भी वह अपने ससुर से गुजारा भत्ता पाने की हकदार होगी। उच्च न्यायालय ने कहा कि हिंदू दत्तक ग्रहण एवं भरण-पोषण अधिनियम, 1956 के तहत विधवा पुत्रवधू के लिए अपने ससुर से भरण-पोषण पाने के लिए अपने ससुराल में रहना अनिवार्य नहीं है।

हाई कोर्ट में विधवा के ससुर ने अपील दायर कर कहा था कि उसकी बहु ने साथ रहने से इंकार कर दिया है। इसलिए वह गुजारा भत्ता पाने की हकदार नहीं है। हालांकि, उच्च न्यायालय ने इसके उलट फैसला सुनाया।

क्या था मामला?

आगरा की भूरी देवी के पति की हत्या 1999 में कर दी गई थी। महिला ने अपने खर्च के लिए गुजारा भत्ता की मांग की। उसने अपनी अपील में कहा कि उसके पास आय का कोई स्रोत नहीं था। आगरा फैमिली कोर्ट ने तय किया कि विधवा का ससुर उसे हर महीने 3000 रुपये देगा। महिला के ससुर ने यह कहते हुए आपत्ति जताई कि बहु अपने माता-पिता के साथ रहती है। इसलिए उसे गुजारा भत्ता नहीं मिलना चाहिए। विधवा ने अपने सास-ससुर के साथ रहने से इंकार कर दिया है। उसे गुजारा भत्ता पाने का अधिकार नहीं है।

अदालत का फैसला

जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस डोनाडी रमेश की पीठ ने कहा कि समाज और सांस्कृति विधवा के माता-पिता या सास-ससुर के साथ रहने के फैसले को प्रभावित करते हैं। कोर्ट ने कहा "केवल इसलिए कि महिला ने वह विकल्प चुना है, हम इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकते कि वह बिना किसी उचित कारण के अपने वैवाहिक घर से अलग हो गई है और न ही यह कि उसके पास अपने दम पर जीने के लिए पर्याप्त साधन होंगे।" अदालत ने यह भी कहा कि विधवा बहू का भरण-पोषण पाने का अधिकार उसके वैवाहिक घर में रहने पर निर्भर नहीं है, क्योंकि विधवाओं का अपने माता-पिता के साथ रहना सामाजिक संदर्भ में आम बात है और उन्हें दंडित नहीं किया जाना चाहिए। फैसले में कहा गया कि कई महिलाएं पति की मौत के बाद ससुराल में सहजता के साथ नहीं रह पाती हैं। इसलिए काननू को संवेदनशीलता के साथ लागू किया जाना चाहिए।