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Hindi News उत्तर प्रदेश देवी लक्ष्मी पर विवादित बयान के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य ने दी सफाई, "वो मेरा नहीं, महिलाओं के सम्मान का विरोध कर रहे"

देवी लक्ष्मी पर विवादित बयान के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य ने दी सफाई, "वो मेरा नहीं, महिलाओं के सम्मान का विरोध कर रहे"

समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य एक बार फिर अपने विवादित बयान को लेकर सुर्खियों में हैं। देवी लक्ष्मी पर तंज को लेकर मार्य का चौतरफा विरोध हो रहा है। बाद में उन्होंने इस पर सफाई देते हुए कहा कि उनका इरादा सभी महिलाओं को सम्मान देना था।

सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य- India TV Hindi Image Source : FILE PHOTO सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य

समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य अक्सर अपने बयानों को लेकर सुर्खियों में रहते हैं। सपा नेता श्रीरामचरित मानस और बद्रीनाथ के बाद अब देवी लक्ष्मी पर तंज करके विवाद से घिर गए हैं। सपा के विधान परिषद सदस्य स्वामी प्रसाद मौर्य के इस बयान का चौतरफा विरोध हो रहा है। अब उन्होंने इस पर सफाई देते हुए कहा कि उनका इरादा किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का नहीं था, बल्कि वैज्ञानिक सोच विकसित करने और सभी महिलाओं को सम्मान देना था।

"मेरे बयान को विवादित बताकर निंदा कर रहे" 

स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा, "मैंने मुख्य रूप से दो चीजों के बारे में बात की, एक वैज्ञानिक सोच विकसित करने के बारे में और दूसरा महिलाओं को सम्मान देने की। जो इसकी निंदा कर रहे हैं वो स्वामी प्रसाद मौर्य का विरोध नहीं कर रहे हैं, बल्कि महिलाओं के सम्मान का विरोध कर रहे हैं। बीजेपी के लोग दिखा रहे हैं कि वो नारी सशक्तिकरण योजना और नारी वंदन योजना चला रहे हैं और फिर मेरे बयान को विवादित बताकर इसकी निंदा कर रहे हैं।"

स्वामी प्रसाद मौर्य ने क्या कहा था?

दरअसल, मौर्य ने रविवार को दीपावली के मौके पर अपनी पत्नी की पूजा की और सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर उसकी तस्वीरें डालीं। उन्होंने पोस्ट में लिखा, ‘‘दीपोत्सव के अवसर पर अपनी पत्नी का पूजा व सम्मान करते हुए कहा कि पूरे विश्व के प्रत्येक धर्म, जाति, नस्ल, रंग व देश में पैदा होने वाले बच्चे के दो हाथ, दो पैर, दो कान, दो आंख, दो छिद्रों वाली नाक के साथ एक सिर, पेट व पीठ ही होती है, चार हाथ, आठ हाथ, दस हाथ, बीस हाथ व हजार हाथ वाला बच्चा आज तक पैदा ही नहीं हुआ तो चार हाथ वाली लक्ष्मी कैसे पैदा हो सकती है?’’ उन्होंने कहा, ‘‘अगर आप लक्ष्मी देवी की पूजा करना ही चाहते हैं तो अपनी घरवाली की पूजा व सम्मान करें जो सही मायने में देवी है, जो आपके घर परिवार का पालन-पोषण, सुख-समृद्धि, खान-पान व देखभाल की जिम्मेदारी बहुत ही निष्ठा के साथ निभाती है।’’ 

"हर किसी को त्योहार का जश्न मनाने की आजादी है"

मौर्य ने कहा, ‘‘मैंने पिछली दीपावली के दौरान भी यही काम किया था और इस बार भी मैंने वही किया। मेरा मानना है कि हर किसी को त्योहार का जश्न मनाने की आजादी है। मेरा मानना है कि सही मायने में गृहिणी ही घर की लक्ष्मी होती है। हमारी संस्कृति भी कहती है कि जहां नारी का सम्मान होता है, वहां सुख-समृद्धि होती है, वह घर स्वर्ग होता है, वहीं महान लोग निवास करते हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘अगर घर की लक्ष्मी गृहिणी है तो उसकी पूजा करो, उसका सम्मान करो, उसे महत्व दो। इससे न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में महिलाओं का सम्मान बढ़ेगा। सभी महिलाएं गौरव महसूस करेंगी और उनका महत्व भी बढ़ेगा। इसलिए, मैंने अपनी पत्नी की पूजा करके यह परंपरा शुरू की है।’’ 

मैं सनातन धर्म का सम्मान करता हूं-  मौर्य

मौर्य ने कहा, ‘‘मेरा किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का कोई इरादा नहीं है, बल्कि मैंने यह सभी गृहिणियों को सम्मान और प्रतिष्ठा देने के लिए किया था। मेरी समझ यह है कि आने वाले दिनों में हर कोई अपने-अपने घर में देवी लक्ष्मी की पूजा करना शुरू कर देगा।’’ ‘एक्स’ पर अपने पोस्ट का बचाव करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘मैंने केवल वही किया है जो व्यावहारिक, सत्य, वैज्ञानिक और शाश्वत है। मैं सनातन धर्म का सम्मान करता हूं। मैंने ‘एक्स’ पर पोस्ट में जो लिखा है, उस पर मैं कायम हूं। मैंने इसे सोच-समझकर लिखा है।’’ 

विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सपा में हुए थे शामिल

उत्तर प्रदेश में अन्य पिछड़े वर्गों के अहम नेता माने जाने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बीजेपी से सपा में शामिल हो गए थे। वह रामचरितमानस और हिंदू मंदिरों पर अपनी टिप्पणियों को लेकर पहले भी विवादों में रह चुके हैं। इस साल के शुरू में उन्होंने यह दावा करके एक और विवाद पैदा कर दिया था कि हिंदू महाकाव्य श्रीरामचरित मानस के कुछ श्लोक जाति के आधार पर समाज के एक बड़े वर्ग का ‘‘अपमान’’ करते हैं। उन्होंने इन श्लोकों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी। सपा नेता ने पहले भी दावा किया था कि आठवीं शताब्दी में हिंदू तीर्थ स्थल बनने से पहले, बद्रीनाथ एक बौद्ध मठ हुआ करता था।