रामलला की प्राण प्रतिष्ठा पर शंकराचार्यों की क्या है राय, यहां जानिए पूरी डिटेल
सनातन परम्परा और हिंदू धर्म के प्रचार-प्रसार में आदि शंकराचार्य की अहम भूमिका मानी जाती है। इसी को ध्यान में रखकर देश के चारों कोनों में चार शंकराचार्य मठ स्थापित किए गए हैं। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा में न जाने को लेकर जब विवाद बढ़ा तो श्रृंगेरी शारदा पीठ और द्वारकाशारदा पीठ की तरफ से बयान सामने आया है।
राम मंदिर के उद्घाटन समारोह का बहिष्कार करने के बाद कांग्रेस ने नया विवाद छेड़ दिया है। कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि शंकराचार्यों को प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम में न बुलाकर बीजेपी हिन्दुओं को बांटने की साजिश कर रही है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह आरोप लगाते हुए कहा, ''बीजेपी ने रामलला को हाईजैक कर अयोध्या में भव्य राम मंदिर के उद्घाटन को सियासी अखाड़ा बना दिया है। उन्होंने कहा कि शंकारचार्यों का अपमान किया जा रहा है और यही वजह है कि शंकराचार्यों ने इस कार्यक्रम में आने से इनकार कर दिया है। हमारे धर्म के धर्मगुरु कौन-कौन हैं। शंकराचार्य हमारे गुरु हैं कि नहीं इस देश में। शंकराचार्य की बात क्यों नहीं मानते हैं... क्या चंपत राय को धर्मगुरु मान लें या नरेंद्र मोदी को अपना धर्मगुरु मान लें हमलोग? शंकराचार्य जी ने साफ मना कर दिया कि जो हमारे पारंपरिक तरीके से मंदिर का काम होना चाहिए...उसको आप हमारी जो वैदिक पंरपरा है उसको नहीं मानते। जिस प्रकार से आप कर रहे हैं इसलिए आपके मंदिर में आने को हम तैयार नहीं।''
देश में कितने शंकराचार्य हैं, उनका क्या महत्व है?
सनातन परम्परा और हिंदू धर्म के प्रचार-प्रसार में आदि शंकराचार्य की अहम भूमिका मानी जाती है। इसी को ध्यान में रखकर देश के चारों कोनों में चार शंकराचार्य मठ स्थापित किए गए हैं।
- ओडिशा के पुरी में गोवर्धन मठ जिसके शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती हैं।
- गुजरात में द्वारकाधाम में शारदा मठ जिसके शंकराचार्य सदानंद सरस्वती हैं।
- उत्तराखण्ड के बद्रिकाश्रम में ज्योतिर्मठ जिसके शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद हैं।
- और दक्षिण भारत के रामेश्वरम् में श्रृंगेरी मठ जिसके शंकराचार्य जगद्गुरु भारती तीर्थ हैं।
नाराजगी की खबरों का खंडन
प्राण प्रतिष्ठा में न जाने को लेकर जब विवाद बढ़ा तो श्रृंगेरी शारदा पीठ और द्वारकाशारदा पीठ की तरफ से बयान सामने आया जिसमें प्राण प्रतिष्ठा के विरोध का साफ-साफ खंडन किया गया। श्रृंगेरी शारदा पीठ की तरफ से जारी पत्र में ऐसे प्रचार को धर्मविरोधियों का गलत प्रचार बताया गया और कहा गया है कि 500 साल बाद रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का महोत्सव वैभव के साथ होने वाला है। श्रृंगेरी पीठ के शंकराचार्य ने अपील की कि सभी आस्तिक इस अतिपावन और दुर्लभ प्राण प्रतिष्ठा में शामिल होकर प्रभु श्रीराम का कृपा पात्र बनें।
'विरोध नहीं, लेकिन जाऊंगा नहीं'
इसी तरह शारदापीठ की तरफ से भी संदेश देकर कहा गया कि रामजन्मभूमि के बारे में कोई बयान नहीं दिया गया है। बयान में शारदापीठ ने कहा कि करीब 500 सालों बाद ये विवाद खत्म हुआ है। ये सनातनियों के लिए खुशी का मौका है। शारदापीठ रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के विधिवत संपन्न होने की कामना करता है। इसके बाद पुरी की गोवर्धन मठ के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने भी कहा कि वो अयोध्या में होने वाले समारोह में नहीं जाएंगे। लेकिन साथ ही ये भी कहा कि उन्हें रामलला की प्राण प्रतिष्ठा से कोई दिकक्त नहीं है ये तो हिंदू धर्म का एक बड़ा कार्य हो रहा है। वो तो बस ये चाहते हैं कि पूजा-पाठ विधि विधान से हो, शास्त्रों के अनुसार हो।
जोशीमठ के ज्योतिर्मठ पीठ के शंकराचार्य ने क्या कहा?
बता दें कि दिग्विजय सिंह ने जो बात कही जोशीमठ के ज्योतिर्मठ पीठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने भी वही बात कही। उन्होंने भी कहा कि अयोध्या में होने वाला पूरा प्रोग्राम सियासी है क्योंकि आधे अधूरे मंदिर का उद्घाटन कर चुनावी फ़ायदा उठाने की कोशिश हो रही है। इसके साथ ही अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि अयोध्या में नया मंदिर नहीं बन रहा ये पहले से मौजूद मंदिर का जीर्णोद्धार हो रहा है। अब ऐसे में सवाल ये है कि क्या वाकई में चारों शंकराचार्य रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह से नाराज हैं, क्या वो वाकई में अयोध्या नहीं आ रहे हैं? इन सवालों के जवाब जानने से पहले ये जान लें कि देश में कितने शंकराचार्य हैं, उनका महत्व क्या है।
'शंकराचार्यों के बहाने कांग्रेस खड़ा कर रही विवाद'
शंकराचार्यों के बयानों से साफ है कि अयोध्या प्राण प्रतिष्ठा में नही आने की वजह मंदिर नहीं है क्योंकि मंदिर निर्माण से उन्हें कोई दिक्कत नहीं है। VHP के वर्किंग प्रेसिडेंट आलोक कुमार ने भी कहा कि किसी भी शंकराचार्य ने राम मंदिर बनने का विरोध नहीं किया इसलिए, शंकराचार्यों के बहाने कांग्रेस जो विवाद खड़ा कर रही है वो बेमानी है। कांग्रेस के बड़े नेता भले ही शंकराचार्यों के अयोध्या ना जाने को बहाना बनाकर मंदिर उद्घाटन का बहिष्कार कर रहे हैं लेकिन उसी कांग्रेस के अंदर इस फैसले का विरोध भी हो रहा है। कई नेता हाईकमान के इस फैसले पर सवाल उठा रहे हैं यही वजह है कि बीजेपी बीजेपी के तमाम नेता कांग्रेस को हिन्दुत्व विरोधी और सनातन विरोधी बता रहे हैं।
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