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Hindi News उत्तर प्रदेश UP में बसपा क्यों नहीं जीत पाई एक भी सीट? हार के रहे ये कारण

UP में बसपा क्यों नहीं जीत पाई एक भी सीट? हार के रहे ये कारण

Lok Sabha Election Results 2024: उत्तर प्रदेश में हुए लोकसभा चुनाव में बसपा का प्रदर्शन काफी खराब रहा। पार्टी यूपी की 80 में से एक भी सीट जीत नहीं पाई।

बीएसपी प्रमुख मायावती- India TV Hindi Image Source : PTI बीएसपी प्रमुख मायावती

Lok Sabha Election Results 2024: 2024 के लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी (BSP) को अपने इतिहास की सबसे करारी हार का सामना करना पड़ा। अकेले चुनाव लड़ने की बसपा की रणनीति उल्टा पड़ गया। बसपा को उत्तर प्रदेश की 80 में से एक भी सीट पर जीत नहीं मिली। 2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में बसपा को 10 सीटें मिली थीं। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि बसपा से इस चुनाव में ऐसे ही नतीजों की उम्मीद जताई जा रही थी, क्योंकि उनके पास पहले जैसा संगठन नहीं बचा है। इसके अलावा वह लगातार चुनाव हार रही है।

ज्यादातर प्रत्याशी तीसरे नंबर पर रहे  

अकेले चुनाव लड़ने की बसपा की रणनीति का उल्टा असर रहा। बसपा का परंपरागत वोटर्स जाटव समाज भी इस चुनाव में उनसे दूर हो गया। 79 सीटों पर इनके ज्यादातर उम्मीदवार तीसरे नंबर पर रहे हैं। सुरक्षित सीट पर कांग्रेस और सपा का जीतना भी बड़ा उदाहरण है। मायावती की उदासीनता के कारण उनके समाज के शिक्षित और युवा सदस्य उनसे नाराज दिख रहे हैं और एक विकल्प की तलाश कर रहे हैं। कुछ जगहों पर उन्हें समाजवादी पार्टी या चंद्रशेखर आजाद और कांग्रेस में उन्हें अपनी उम्मीद नजर आती दिखी है। 

"गठबंधन नहीं कर की बड़ी गलती"

बसपा के एक बड़े नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि बसपा ने इस बार गठबंधन नहीं करके सबसे बड़ी गलती की है। इसके बाद दूसरी बड़ी गलती आकाश आनंद को पद और प्रचार से हटाकर की है। इससे एक संदेश गया कि हम इस चुनाव में भाजपा की टीम के रूप में काम कर रहे हैं, जबकि ऐसा था नहीं। भाजपा के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर और संविधान बदलने वाला प्रचार तेजी से काम कर रहा था। इसका भी नुकसान बसपा को हुआ, जिससे दलित वोट बिखर गया। उसका फायदा विपक्षी दलों को हुआ। जितनी भी सीट सपा और कांग्रेस ने जीती हैं, उनमें बसपा के वोट बैंक ने बहुत काम किया है। इस पर समीक्षा करने की जरूरत है।

"बसपा भी अब सीजनल हो गई है" 

वरिष्ठ पत्रकार वीरेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि मायावती की जिद ने पार्टी को इस कगार पर लाकर खड़ा किया है। बसपा भी अब सीजनल हो गई है। सिर्फ चुनाव के समय ही निकलती है। कार्यकर्ताओं से दूर होती जा रही है। विपक्ष के साथ न मिलकर चुनाव लड़ना इनके लिए खतरा बन गया। पार्टी की सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले पूरी तरह फेल रहे। इनकी जगह सपा ने इस फार्मूले का ढंग से इस्तेमाल किया और उसे सफलता भी मिली। 2019 में जीते हुए ज्यादातर सांसदों को बसपा ने टिकट नहीं दिया। उसका खामियाजा भुगतना पड़ा। (IANS)

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