कन्नौजः कन्नौज और हरदोई को जोड़ने वाला पुल धंस गया है। इसकी वजह से यातायात पर असर पड़ा है। जानकारी के अनुसार कन्नौज जिले के महादेवी घाट पर बना पुल हरदोई जनपद को जोड़ता हैं जोकि गुरुवार की रात में अचानक धंस गया। इसकी जानकारी सुबह होते ही स्थानीय लोगों ने दी। यातायात पुलिस ने धंसे हुए स्थान को बैरिकेडिंग के माध्यम से पूरा सील कर दिया है। इसके साथ कन्नौज से हरदोई जाने वाले तिराहे पर बड़े वाहनों की एंट्री बंद कर रूट डायवर्जन लागू कर दिया है। ऐसा ही हरदोई जनपद से कन्नौज आने वाले वाहनों के लिए भी रूट डायवर्जन कर दिया हैं।
कैसे बना था महादेवी घाट का गंगा पुल
कन्नौज से हरदोई जाने वाले मार्ग पर स्थित गंगा घाट का नाम महादेवी घाट है। ऐतिहासिक शहर में न तो यह घाट प्राचीन है और न ही कोई खास विशेषता। इसके बावजूद इसकी ख्याति आसपास जनपदों में फैल गई। इस घाट को फर्रुखाबाद की रहने वाली सर्वाधिक लोकप्रिय कवियत्री महादेवी वर्मा के नाम से जाना जाता है।
कैसे पड़ा महादेवी घाट
इस घाट महादेवी का नाम कैसे मिला? आज की युवा पीढ़ी को शायद इस बात की जानकारी नहीं होगी, लेकिन वरिष्ठ बुद्धिजीवियों से बात की गई तो जो कहानी सामने आई तो उससे यह साफ हो गया कि कन्नौज की गंगा के प्रति साहित्यकारों का भी बेहद लगाव था। बताया जाता है कि 39 वर्ष पहले 1985 में मेंहदीपुर गांव के पास गंगा पर पुल बनाया गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उसका उद्घाटन किया था। कन्नौज को हरदोई से जोड़ने वाले इस पुल के पास जाने का सुगम और सुलभ मार्ग होने के कारण यह लोकप्रिय होने लगा। अक्टूबर, 1987 में यहां पर उत्तर प्रदेश स्वर्ण जयंती हिन्दी साहित्य अधिवेशन का आयोजन किया गया था।
यही विसर्जित की गई थी महादेवी वर्मा की अस्थियां
इस अधिवेशन में हिंदी जगत के 87 मूर्धन्य विद्वान जिसमें पं. श्रीनारायण चतुर्वेदी, डा. वेद प्रताप वैदिक आदि लोगों को शामिल होना था। इस अधिवेशन का उद्घाटन अपने ही जिले की (तब कन्नौज फर्रुखाबाद जिले में ही था) सर्वाधिक प्रतिभावान कवियत्री महादेवी वर्मा के हाथों होना था। यह सम्मेलन अक्टूबर में था, लेकिन महादेवी वर्मा का देहांत 11 सितंबर 1987 में ही हो गया। इसकी जानकारी हुई तो पं. श्रीनारायण चतुर्वेदी, डा. वेद प्रताप वैदिक, डा. लाल चंद्र शर्मा आदि विद्वान इलाहाबाद स्थित उनके आवास पर पहुंचे। उनके दाह संस्कार के बाद महादेवी वर्मा की अस्थियां कन्नौज में लाई गई। अस्थि कलश को वाहन में सजाकर शहर में शोभायात्रा निकाली गई। उसके बाद मेंहदी घाट पर महादेवी वर्मा की अस्थियां विसर्जित की गई। उसके बाद से इस घाट को महादेवी वर्मा का नाम दे दिया गया और तभी से इसे महादेवी घाट कहा जाने लगा।
रिपोर्ट- सुरजीत कुशवाहा, कन्नौज