क्या हैं अयोध्या में नवनिर्मित मंदिर की विशेषताएं, जहां 22 जनवरी को विराजेंगे रामलला
मंदिर का निर्माण तीन मंजिला किया जा रहा है। हालांकि प्राण प्रतिष्ठा के दौरान केवल एक मंजिल तक ही निर्माण पूर्ण हो पाएगा। बकाया अन्य दो मंजिल का निर्माण इस साल के अंत तक पूर्ण होने की संभावना है। मंदिर का प्रवेश द्वार पूर्व दिशा की तरफ होगा।
अयोध्या: अयोध्या में रामलला का मंदिर अभी निर्माण की प्रक्रिया में है। मंदिर के गर्भगृह में 22 जनवरी को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी। इसके लिए अयोध्या धाम में 16 जनवरी से ही कार्यक्रम शुरू हो जाएंगे। 22 जनवरी की दोपहर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी। इसके बाद मंदिर आम भक्तों के लिए खोल दिया जाएगा। बता दें कि मंदिर का निर्माण परम्परागत नागर शैली में किया जा रहा है। इसके साथ ही मंदिर की लंबाई (पूर्व से पश्चिम) 380 फीट, चौड़ाई 250 फीट तथा ऊंचाई 161 फीट रहेगी।
तीन मंजिला होगा मंदिर
इसके अलावा मंदिर तीन मंजिला रहेगा। प्रत्येक मंजिल की ऊंचाई 20 फीट रहेगी। मंदिर में कुल 392 खंभे व 44 द्वार होंगे। मुख्य गर्भगृह में प्रभु श्रीराम का बालरूप (श्रीरामलला सरकार का विग्रह), तथा प्रथम तल पर श्रीराम दरबार होगा। इसके साथ ही मंदिर में 5 मंडप होंग। जोकि नृत्य मंडप, रंग मंडप, सभा मंडप, प्रार्थना मंडप व कीर्तन मंडप के नाम से जाने जायेंगे।
खंभों व दीवारों में देवी देवता तथा देवांगनाओं की मूर्तियां
वहीं मंदिर परिसर के खंभों व दीवारों में देवी देवता तथा देवांगनाओं की मूर्तियां उकेरी जा रही हैं। इसके साथ ही मंदिर में प्रवेश पूर्व दिशा से 32 सीढ़ियां चढ़कर सिंहद्वार से होगा। वहीं दिव्यांगजन एवं वृद्धों के लिए मंदिर में रैम्प व लिफ्ट की व्यवस्था रहेगी। मंदिर के चारो ओर आयताकार परकोटा रहेगा। चारों दिशाओं में इसकी कुल लंबाई 732 मीटर तथा चौड़ाई 14 फीट होगी। परकोटा के चारों कोनों पर सूर्यदेव, मां भगवती, गणपति व भगवान शिव को समर्पित चार मंदिरों का निर्माण होगा। उत्तरी भुजा में मां अन्नपूर्णा, व दक्षिणी भुजा में हनुमान जी का मंदिर रहेगा।
इसके साथ ही मंदिर के समीप पौराणिक काल का सीताकूप विद्यमान रहेगा। मंदिर परिसर में प्रस्तावित अन्य मंदिर- महर्षि वाल्मीकि, महर्षि वशिष्ठ, महर्षि विश्वामित्र, महर्षि अगस्त्य, निषादराज, माता शबरी व ऋषिपत्नी देवी अहिल्या को समर्पित होंगे। दक्षिण पश्चिमी भाग में नवरत्न कुबेर टीला पर भगवान शिव के प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया है एवं तथा वहां जटायु प्रतिमा की स्थापना की गई है।
मंदिर निर्माण में नहीं हुआ लोहे का प्रयोग
इसके साथ ही मंदिर में लोहे का प्रयोग नहीं होगा। धरती के ऊपर बिलकुल भी कंक्रीट नहीं है। मंदिर के नीचे 14 मीटर मोटी रोलर कॉम्पेक्टेड कंक्रीट (RCC) बिछाई गई है। इसे कृत्रिम चट्टान का रूप दिया गया है। मंदिर को धरती की नमी से बचाने के लिए 21 फीट ऊंची प्लिंथ ग्रेनाइट से बनाई गई है। मंदिर परिसर में स्वतंत्र रूप से सीवर ट्रीटमेंट प्लांट, वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट, अग्निशमन के लिए जल व्यवस्था तथा स्वतंत्र पॉवर स्टेशन का निर्माण किया गया है, ताकि बाहरी संसाधनों पर न्यूनतम निर्भरता रहे।
70 फीसदी इलाके में रहेगी हरियाली
वहीं मंदिर में 25 हजार क्षमता वाले एक दर्शनार्थी सुविधा केंद्र (Pilgrims Facility Centre) का निर्माण किया जा रहा है, जहां दर्शनार्थियों का सामान रखने के लिए लॉकर व चिकित्सा की सुविधा रहेगी। मंदिर परिसर में स्नानागार, शौचालय, वॉश बेसिन, ओपन टैप्स आदि की सुविधा भी रहेगी। मंदिर का निर्माण पूर्णतया भारतीय परम्परानुसार व स्वदेशी तकनीक से किया जा रहा है। पर्यावरण-जल संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। कुल 70 एकड़ क्षेत्र में 70% क्षेत्र सदा हरित रहेगा।