हैदराबाद: माओवादियों से कथित संबंध के मामले में बरी किए गए डीयू के पूर्व प्रोफेसर जी. एन. साईबाबा ने नागपुर सेंट्रल जेल प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने शुक्रवार को कहा कि नागपुर सेंट्रल जेल में उनके शरीर के बाएं हिस्से के लकवाग्रस्त हो जाने बावजूद प्राधिकारी उन्हें 9 महीने तक अस्पताल नहीं ले गए और उन्हें केवल दर्द निवारक दवा देते रहे। अंग्रेजी के पूर्व प्रोफेसर ने दावा किया कि उनकी आवाज दबाने के लिए पुलिस ने उनका अपहरण कर उन्हें गिरफ्तार किया था।
इसी साल हुई जेल से रिहाई
बता दें कि साईबाबा को माओवादियों के साथ कथित संबंधों के कारण मई 2014 में महाराष्ट्र पुलिस ने दिल्ली से गिरफ्तार किया था। इसी साल मार्च में बॉम्बे हाई कोर्ट ने साईबाबा की आजीवन कारावास की सजा को खारिज कर दिया था, क्योंकि अभियोजन पक्ष आरोपों को पूरी तरह से साबित नहीं कर पाया। इसके बाद साईबाबा को नागपुर सेंट्रल जेल से रिहा कर दिया गया। महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले की एक अधीनस्थ अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने के बाद साईबाबा 2017 से नागपुर सेंट्रल जेल में बंद थे। इससे पहले वह 2014 से 2016 तक जेल में रहे और बाद में उन्हें जमानत मिल गई थी।
झूठे मामले के किया गिरफ्तार
अपने अनुभव बताते हुए डीयू के पूर्व प्रोफेसर ने कहा कि अधिकारियों ने उन्हें चेतावनी दी थी कि अगर उन्होंने बोलना बंद नहीं किया तो उन्हें किसी झूठे मामले में गिरफ्तार कर लिया जाएगा, लेकिन वह नहीं झुके। उन्होंने कहा कि उनके खिलाफ मामला दर्ज किया गया और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि उनका दिल्ली से अपहरण किया गया और महाराष्ट्र पुलिस ने उन्हें गिरफ़्तार कर लिया। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी एक जांच अधिकारी के साथ उनके घर गए और उन्हें एवं उनके परिवार को धमकाया। महाराष्ट्र पुलिस के साथ अन्य एजेंसी के अधिकारी भी थे, हालांकि उन्होंने उनके नाम नहीं बताए।
पुलिस ने व्हीलचेयर से घसीटा
साईबाबा आरोप लगाया कि गिरफ्तारी के दौरान महाराष्ट्र पुलिस ने उन्हें व्हीलचेयर से घसीट लिया, जिसके परिणामस्वरूप उनके हाथ में गंभीर चोट आई और तंत्रिका तंत्र पर भी असर पड़ा। उन्होंने कहा कि व्हीलचेयर भी टूट गई थी। उन्होंने बताया, "नागपुर मेडिकल कॉलेज के चिकित्सकों ने उन्हें लगी चोट की जांच की और इस संबंध में उच्च न्यायालय को रिपोर्ट सौंपी।"
9 महीने तक नहीं ले गए अस्पताल
साईबाबा ने नागपुर जेल में अपने कारावास को याद करते हुए कहा, "मैं पोलियो के कारण चलने में असमर्थ था। मुझे एक टूटी हुई व्हीलचेयर पर डाल दिया गया और (गिरफ्तारी के बाद) जेल में बंद कर दिया गया। जेल में भी उन्होंने (मेरी स्वास्थ्य स्थिति के बारे में) कुछ नहीं किया। मेरे शरीर का बायां हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया था, लेकिन इसके बावजूद भी मुझे नौ महीने तक अस्पताल नहीं ले जाया गया। उन्होंने मुझे सिर्फ दर्द निवारक दवाएं दीं। कोई चिकित्सक मुझे देखने नही आया।" (इनपुट- एजेंसी)
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