नितेश कुमार ने पेरिस पैरालंपिक में जीता गोल्ड, ऐसी दर्दभरी रही है उनकी कहानी
नितेश कुमार ने बैडमिंटन के सिंगल्स एसएल 3 फाइनल में ग्रेट ब्रिटेन के डेनियल बेथेल को हरा दिया है और उन्होंने गोल्ड मेडल जीत लिया है।
नितेश कुमार ने बैडमिंटन के सिंगल्स एसएल 3 फाइनल में ग्रेट ब्रिटेन के डेनियल बेथेल को हरा दिया है और उन्होंने गोल्ड मेडल जीत लिया है। उन्होंने फाइनल मुकाबला 21-14, 18-21 और 23-21 से अपने नाम किया है। वह मौजूदा पैरालंपिक में बैडमिंटन में गोल्ड जीतने वाले पहले खिलाड़ी हैं। साल 2009 में ट्रेन दुर्घटना में उन्होंने अपना पैर गंवा दिया। इसके बाद भी उन्होंने हिम्मत ना हारते हुए खेल में वापसी की और आज पैरालंपिक में भारत का डंका बजाया है।
शानदार अंदाज में जीता मुकाबला
पहले गेम में नितेश कुमार ने दमदार प्रदर्शन किया। उन्होंने अपने विरोधी खिलाड़ी को टिकने का मौका नहीं दिया। डेनियल बेथेल भारतीय खिलाड़ी नितेश कुमार के सामने बुरी तरह से फ्लॉप रहे। नितेश ने शानदार खेल का नमूना पेश किया। उन्होंने शुरुआत से ही बढ़त बरकरार रखी है। इसी वजह से उन्होंने गेम 21-14 से अपने नाम कर लिया।
दूसरे गेम में मामला बिल्कुल बदला हुआ नजर आया। इस गेम में ग्रेट ब्रिटेन के डेनियल बेथेल बहुत ही आक्रामक नजर आए। इसी गेम में नितेश ने कई गलतियां कीं। अंत में गेम को बेथेल ने 21-18 से अपने नाम कर लिया। उन्होंने दूसरा गेम जीतते ही मैच में 1-1 से बराबरी भी कर ली। फिर तीसरे गेम में नितेश कुमार ने वापसी की और उन्होंने यह गेम 23-21 से जीत लिया। गेम जीतने के साथ ही उन्होंने स्वर्ण पदक भी अपने नाम कर लिया।
टॉप वरीयता प्राप्त नितेश ने सेमीफाइनल में जापान के डाइसुके फुजिहारा पर सीधे गेम में शानदार जीत से पुरुष एकल एसएल3 वर्ग के फाइनल में प्रवेश किया था। नितेश (29 वर्ष) ने 48 मिनट तक चले सेमीफाइनल में फुजिहारा पर 21-16 21-12 से जीत के साथ अपना दबदबा दिखाया कायम किया था।
ट्रेन दुर्घटना में गंवाया था पैर
भले ही नितेश कुमार अब पैरालंपिक में सफलता हासिल करके शिखर पर खड़े हों लेकिन एक समय ऐसा भी था जब वह महीनों तक बिस्तर पर पड़े रहे थे और उनका हौसला टूटा हुआ था। नितेश जब 15 साल के थे तब उनकी जिंदगी में दुखद मोड़ आया और 2009 में विशाखापत्तनम में एक ट्रेन दुर्घटना में उन्होंने अपना पैर खो दिया। बिस्तर पर पड़े रहने के कारण वह काफी निराशा हो चुके थे।
उन्होंने याद करते हुए कहा कि मेरा बचपन थोड़ा अलग रहा है। मैं फुटबॉल खेलता था और फिर यह दुर्घटना हो गई। मुझे हमेशा के लिए खेल छोड़ना पड़ा और पढ़ाई में लग गया। लेकिन खेल फिर मेरी जिंदगी में वापस आ गए। नितेश को आईआईटी-मंडी में पढ़ाई के दौरान उन्हें बैडमिंटन की जानकारी मिली और फिर यह खेल उनकी ताकत का स्रोत बन गया। उन्होन कहा कि प्रमोद भैया (प्रमोद भगत) मेरे प्रेरणास्रोत रहे हैं। इसलिए नहीं कि वे कितने कुशल और अनुभवी हैं बल्कि इसलिए भी कि वे एक इंसान के तौर पर कितने विनम्र हैं। विराट कोहली ने जिस तरह से खुद को एक फिट एथलीट में बदला है, मैं इसलिए उनकी तारीफ करता हूं। अब वह इतने फिट और अनुशासित हैं।
वर्दी पहनने की थी कोशिश
नौसेना अधिकारी के बेटे नितेश ने कभी वर्दी पहनने की ख्वाहिश की थी। उन्होंने कहा कि मैं वर्दी का दीवाना था। मैं अपने पिता को उनकी वर्दी में देखता था और मैं या तो खेल में या सेना या नौसेना जैसी नौकरी में रहना चाहता था। लेकिन दुर्घटना ने उन सपनों को चकनाचूर कर दिया। पर पुणे में कृत्रिम अंग केंद्र की यात्रा ने नितेश का नजरिया बदल दिया।
(Input: PTI)
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