Azadi Ka Amrit Mahotsav: साइना नेहवाल ने 2012 में बैडमिंटन में देश को दिलाया था पहला ओलंपिक मेडल, नाटकीय अंदाज में मिला था ब्रॉन्ज
Azadi Ka Amrit Mahotsav: साइना नेहवाल ने बैडिमिंटन में भारत को दिलाया पहला ओलंपिक पदक।
Highlights
- साइना ने अपने दूसरे ओलंपिक में जीता था मेडल
- बैडमिंटन में ओलंपिक पदक जीतने वाली पहली भारतीय बनी थीं
- ओलंपिक से पहले पड़ गई थीं बीमार
Azadi Ka Amrit Mahotsav: देश अपने 75वें स्वतंत्रता दिवस का जश्न मनाने की तैयारियों में लगा हुआ है। भारत की आजादी को इस साल 75 वर्ष पूरे हो रहे हैं और ऐसे में इस खास मौके को 'आजादी का अमृत महोत्सव' के रूप में मनाया जा रहा है। भारत के लिए ये 75 साल बदलाव, निरंतर प्रगति और विश्व पटल पर अपनी छाप छोड़ने वाले रहे हैं। इस दौरान भारतीय खेलों ने भी एक लंबा सफर तय किया है और देश को कई खास पलों का गवाह बनाया है और हम उन्हीं पलों को याद कर रहे हैं। इस रिपोर्ट में हम बात कर रहे हैं भारतीय स्टार शटलर साइना नेहवाल के ओलंपिक पदक की, जिसने देश में बैडमिंटन को एक नया आयाम दिया।
साइना ने बैडमिंटन को दिया नया आयाम
साइना नेहवाल ने 10 साल पहले यानी 2012 में लंदन ओलंपिक में बैडमिंटन की महिलाओं की एकल स्पर्धा में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रच दिया था। वह तब ओलंपिक खेलों में बैडमिंटन में मेडल जीतने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी बनी थी। उनसे पहले कोई भी बैडमिंटन खिलाड़ी इस मुकाम को हासिल नहीं कर पाया था।
लंदन ओलंपिक से जबरदस्त फॉर्म में थी साइना
लंदन ओलंपिक्स से पहले साइना नेहवाल जबरदस्त फॉर्म में थीं। उन्होंने टूर्नामेंट में जाने से पहले 2010 में कॉमनवेल्थ खेलों में गोल्ड, पांच सुपर सीरीज टूर्नामेंट समेत कई बड़े टूर्नामेंट जीते थे। ऐसे में उनकी गिनती ओलंपिक के लिए मेडल के दावेदारों में की जा रही थी।
ओलंपिक से पहले हुआ था मौसमी बुखार
साइना 2008 बीजिंग ओलंपिक की क्वॉर्टरफाइनल की हार को भूलकर लंदन में एक नई शुरुआत करने के लिए तैयार थीं। हालांकि ओलंपिक शुरू होने के हफ्ते भर पहले वह मौसमी बुखार (viral fever) की चपेट में आ गई थीं। बावजूद इसके उन्होंने जीत से शुरुआत करते हुए अपने पहले मुकाबले में स्विटजरलैंड की खिलाड़ी सबरीना जैकेट को सीधे गेम में 21-9, 21-4 से आसानी से हरा दिया। इसके बाद बेल्जियम की लियान टैन के खिलाफ भी साइना ने 21-4, 21-14 की एकतरफा जीत हासिल की।
साइना बिना कोई गेम गंवाए सेमीफाइनल में पहुंचीं
नेहवाल ने हालांकि अगले मुकाबले चुनौतिपूर्ण होने वाले थे और राउंड ऑफ 16 (प्री क्वॉर्टरफाइनल) में चीनी मूल की डच खिलाड़ी याओ जि से उनका सामना हुआ। लेकिन भारतीय खिलाड़ी को कुछ खास फर्क नहीं पड़ा और उन्होंने अपना विजय अभियान जारी रखते हुए बिना कोई गेम गंवाए 21-14, 21-16 से मैच जीत लिया और क्वॉर्टरफाइनल में पहुंच गईं। क्वॉर्टरफाइनल में साइना का सामना तीन बार की ऑल इंग्लैंड चैंपियन टीने बाउन से हुआ। यहां साइना को शुरुआती मुकाबलों की तुलना में थोड़ा संघर्ष करना पड़ा लेकिन उन्होंने 21-15, 22-20 से जीत दर्ज करते हुए पहली बार ओलंपिक के सेमीफाइनल में अपना जगह बना ली।
फाइनल में पहुंचने से चूकीं
साइना का प्रदर्शन देखते हुए उन्हें मेडल का दावेदार माना जाने लगा था, लेकिन सेमीफाइनल में उनका सामना गोल्ड मेडल की दावेदार चीन की वांग यिहान से हुआ। चीनी खिलाड़ी ने भी अपनी छवि के अनुरूप शानदार खेल दिखाते हुए भारतीय प्रतिद्वंदी को सीधे गेम में 21-13, 21-13 से परास्त कर दिया। इसके साथ ही साइना का फाइनल में पहुंचने का सपना अधूरा रह गया। हालांकि साइना के पास अभी भी ओलंपिक मेडल जीतने का मौका था और उन्हें कांस्य पदक के लिए चीन की एक अन्य खिलाड़ी वांग जिन से भिड़ना था।
भाग्य ने दिया साइना का साथ
साइना को पहले गेम में 21-18 से हार का सामना करना पड़ा। जबकि दूसरे गेम के पहले ही कुछ मिनटों में जिन को चोट लग गयी और उन्हें दर्द के कारण मैच छोड़ना पड़ा। साइना के भाग्य ने यहां उनका साथ दिया और उन्होंने ओलंपिक में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रच दिया