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अपनी परफॉर्मेंस से जुझ रहे विश्वनाथन आनंद ने कहा, मैं अपना सबसे बड़ा दुश्मन बन रहा हूं

खेल में निरंतररता बनाये रखने के लिए जुझ रहे पांच बार के शतरंज विश्व चैम्पियन विश्वनाथन आनंद ने मंगलवार को यहां कहा कि वह खुद ही ‘अपना सबसे बड़ा दुश्मन बनते जा रहे।’

Viswanathan Anand,Tata Steel Chess,Magnus Carlsen,Grand Chess Tour,chess,Anish Giri- India TV Hindi Image Source : TWITTER खेल में निरंतररता बनाये रखने के लिए जुझ रहे पांच बार के शतरंज विश्व चैम्पियन विश्वनाथन आनंद ने मंगलवार को यहां कहा कि वह खुद ही ‘अपना सबसे बड़ा दुश्मन बनते जा रहे।’

कोलकाता। खेल में निरंतररता बनाये रखने के लिए जुझ रहे पांच बार के शतरंज विश्व चैम्पियन विश्वनाथन आनंद ने मंगलवार को यहां कहा कि वह खुद ही ‘अपना सबसे बड़ा दुश्मन बनते जा रहे।’ आनंद मंगलवार को टाटा स्टील रैपिड एवं ब्लिट्ज टूर्नामेंट की आखिरी पांच बाजियों में केवल एक अंक हासिल कर पाये और इस तरह से ग्रैंड शतरंज टूर से बाहर हो गये। उन्होंने टूर्नामेंट के बाद कहा, ‘‘ मेरे पास इसके बारे में बताने के लिए शब्द नहीं है। मैं खुद को मौका देता हूं और फिर खुद ही अपना दुश्मन बन जाता हूं। यह मुझे परेशान करता है। मेरे लिए अगर मौका नहीं होगा तो यह ज्यादा अच्छा होगा।’’

आनंद के लिए सबसे मुश्किल क्षण तब आया जब ब्लिट्ज में बादशाह माने जाने वाले इस खिलाड़ी ने 15वें दौर में नीदरलैंड के अनीश गिरि से जीतने की स्थिति में पहुंच कर मैच गंवा दिया। आनंद इससे इतने निराश थे कि उन्हें ब्रिटिश अभिनेता जान क्लीसे की 1986 में रिलीज हुई फिल्म क्लाकवाइज का एक संवाद ‘‘मुझे निराशा से परेशानी नहीं लौरा, मैं निराशा झेल सकता हूं।

मैं उस उम्मीद का सामना नहीं कर पा रहा हूं’’ याद आ गया। उन्होंने कहा, ‘‘ मुझे असफलता से कोई परेशानी नहीं लेकिन मैं उम्मीदों के बोझ के तले दबता जा रहा हूं। मैं आज यही कर रहा था। मैं खुद को लगातार मौके दे रहा था और फिर खुद को बर्बाद कर लिया।’’

उन्होंने कहा, ‘‘ यह (अनीश के खिलाफ मुकाबला) ताबूत में आखिरी कील साबित हुआ। मैं जीत रहा था लेकिन समय के बारे में भूल गया। अगर मैं यह मुकाबला जीत जाता तो दौड़ में बना रहता। मैं अपना खुद का सबसे बड़ा दुश्मन हूं।’’