जानिए सीता की कहानी उन्हीं की जुबानी “देश के लिए स्पेशल ओलंपिक में जीता मेडल फिर भी बेचने पड़े गोलगप्पे”
सीता ने अपने मुश्किल दौर को याद करते हुए कहा कि '' 2011 में मेडल जीतने के बाद भी मेरे घर के हालात खराब थे। मुझे गोलगप्पे बेचने पड़े थे। लेकिन 2013 के बाद स्थिति बेहतर हुई है और फिलहाल मैं प्रैक्टिस पर ध्यान दे रही हूं।''
नई दिल्ली: हमारे देश में अगर कोई खिलाड़ी ओलंपिक मेडल जीत जाए तो शोहरत की बुलंदियों के साथ ही उस पर पैसों की बरसात होती है,जबरदस्त मीडिया कवरेज और एड वर्ल्ड में भी उसकी डिमांड होती है लेकिन स्पेशल ओलंपिक में दो दो मेडल जीत जीतने के बावजूद मप्र की सीता साहू की जिंदगी में गुमनामी,संघर्ष की एक ऐसी कहानी आई जो बेहद जुदा और अलग थी। साल 2011 में एथेंस में हुए स्पेशल ओलंपिक में मध्यप्रदेश के रीवा जिले की सीता साहू ने 200 मीटर और 1600 मीटर दौड़ में ब्रॉन्ज मेडल थे। लेकिन सीता की इस कामयाबी के बाद भी उसे सम्मानित करना तो दूर की बात है प्रदेश सरकार ने उसकी सुध लेना भी जरूरी नहीं समझा। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 2011 में घोषणाएं तो बहुत की थी लेकिन अमल कुछ भी नहीं हुआ।
भाई का छलका दर्द, बताया सरकार ने वादा तो किया लेकिन किया कुछ नहीं
इंडिया टीवी से खात बातचीत में सीता साहू के भाई धर्मेन्द्र साहू ने बताया, सीता के स्पेशल ओलंपिक में दो मेडल जीतने के बाद भी सरकरा ने उनकी कोई मदद नहीं की। ना ही सीता को खेल में आगे बढ़ने के लिए सुविधाएं दी गई।''
देश के लिए स्पेशल ओलंपिक में मेडल जीतने के बाद गोलगप्पे बेचने को हुई मजबूर
स्पेशल ओलंपिक में देश के लिए दो दो मेडल जीतने के बाद भी सीता की पारिवारिक हालत ठीक नहीं है और उसके पिता चाट का ठेला लगाकर परिवार का जीवन यापन करते हैं। उसके परिवार की एक दिन की कमाई 150-180 रुपए है। पिता के बीमार होने पर सीता को काम में हाथ बटाना पड़ा। उसे खुद गोलगप्पे बेचने को मजबूर होना पड़ा। आर्थिक स्थिति खराब होने की वजह से सीता स्कूल तक नहीं जा पाई। सीता अपने माता-पिता और 2 भाईयों के साथ 1 कमरे के घर में रहती है।
सीता ने भी अपने मुश्किल दौर को याद करते हुए कहा कि '' 2011 में मेडल जीतने के बाद भी मेरे घर के हालात बेहद खराब थे। मुझे गोलगप्पे बेचने पड़े थे। लेकिन 2013 के बाद स्थिति बेहतर हुई है और फिलहाल मैं प्रैक्टिस पर ध्यान दे रही हैं।''
2013 में जागी सरकार, सीता को दिए 9 लाख रूपए
मेडल जीतने के 3 साल बाद आर्थिक तंगी से जूझती सीता ने अपना हक पाने के लिए राजधानी भोपाल में दस्तक दी तो शिवराज सरकार हरकत में आई। 2013 में राज्य सरकार और NTPC ने मिलकर सीता को 9 लाख रूपए दिए। जिसकी वजह से सीता के परिवार की स्थिति बेहतर हुई उसने फिर से अपनी प्रैक्टिस पर ध्यान देना शुरु किया।
सीता की कहानी बताती है कि हमारे देश में प्रतिभाएं तो है लेकिन देश में खेलों और खिलाडि़यों के लिए जिस माहौल और प्रोत्साहन की जरूरत है उसमें अभी बहुत अधिक सुधार किए जाने की जरुरत है। क्या स्पेशल ओलंपिक में दो दो मेडल जीतने के बाद एक सरकारी नौकरी पाने की हकदार नहीं है सीता ?
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