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Hindi News खेल अन्य खेल पैरालंपिक: सिंहराज अडाना का सपना पूरा करने के लिए उनकी पत्नी को बेचने पड़े थे अपने गहने

पैरालंपिक: सिंहराज अडाना का सपना पूरा करने के लिए उनकी पत्नी को बेचने पड़े थे अपने गहने

सिंहराज ने कहा, ‘‘मैं जब अभ्यास नहीं कर पा रहा था तो मैं सोचने लगा था कि पदक जीतने का मेरा सपना खत्म हो चुका है। तब मेरे कोचों ने मुझे घर में रेंज तैयार करने की सलाह दी।’’ 

Paralympics: To fulfill the dream of Singhraj Adhana, his wife had to sell her jewelry- India TV Hindi Image Source : TWITTER/@PIYUSHGOYAL Paralympics: To fulfill the dream of Singhraj Adhana, his wife had to sell her jewelry

टोक्यो। सिंहराज अडाना कोविड-19 के कारण टोक्यो पैरालंपिक की तैयारी के लिये निशानेबाजी रेंज पर नहीं जा पाये लेकिन यह भारतीय निशानेबाज निराश नहीं हुआ और उन्होंने केवल एक रात में खाका तैयार करके अपने घर पर ही रेंज का निर्माण कर दिया। सिंहराज ने असाका शूटिंग रेंज पर मंगलवार को पी1 पुरुष 10 मीटर एयर पिस्टल एसएच1 में कांस्य पदक जीता। यह इस 39 वर्षीय खिलाड़ी का निशानेबाजी से जुड़ने के बाद चार साल की कड़ी मेहनत का परिणाम है। लेकिन इस बीच वह दौर भी आया जब निशानेबाजी के उनके सपने को पूरा करने के लिये उनकी पत्नी को अपने गहने बेचने पड़े थे। वह जानते थे कि यह बहुत बड़ा जुआ है और उनकी मां का भी ऐसा ही मानना था। 

पोलियो से ग्रस्त यह निशानेबाज लॉकडाउन के दौरान अभ्यास शुरू करने को लेकर बेताब था। इससे उनकी रातों की नींद भी गायब हो गयी थी। सिंहराज ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘मैं जब अभ्यास नहीं कर पा रहा था तो मैं सोचने लगा था कि पदक जीतने का मेरा सपना खत्म हो चुका है। तब मेरे कोचों ने मुझे घर में रेंज तैयार करने की सलाह दी।’’ 

उन्होंने कहा,‘‘मैं बेताब हो रहा था और अभ्यास नहीं कर पाने के कारण मेरी नींद उड़ गयी थी। इसलिए मैंने रेंज तैयार करने के लिये अपने परिवार वालों से बात की तो वे सकते में आ गये क्योंकि इसमें लाखों रुपये का खर्च आना था।’’ 

सिंहराज ने कहा,‘‘मेरी मां ने मुझसे केवल इतना कहा कि इतना सुनिश्चित कर लो कि यदि कुछ गड़बड़ होती है तो हमें दो जून की रोटी मिलती रहे। लेकिन मेरे परिवार और प्रशिक्षकों के समर्थन, भारतीय पैरालंपिक समिति और एनआरएआई (भारतीय राष्ट्रीय राइफल संघ) से मंजूरी और मदद के कारण हम अपने मिशन में कामयाब रहे और जल्द ही रेंज बनकर तैयार हो गया।’’ 

उन्होंने इस रेंज का खाका स्वयं तैयार किया था। सिंहराज ने कहा, ‘‘मैंने एक रात में खाका तैयार किया और मेरे प्रशिक्षकों ने मुझसे कहा कि यदि हम रेंज तैयार कर रहे हैं तो यह अंतरराष्ट्रीय स्तर का होना चाहिए क्योंकि इससे मुझे न सिर्फ टोक्यो बल्कि पेरिस खेलों में भी मदद मिलेगी।’’ 

सिंहराज का इस खेल से पहला परिचय उनके भतीजे ने कराया था जिनके साथ वह पहली बार निशानेबाजी रेंज पर गये थे। उन्होंने कहा, ‘‘मेरा भतीजा गौरव अडाना निशानेबाज है। जब वे अभ्यास कर रहे थे तो मैं मुस्करा रहा था तो कोच ने मुझसे इसका कारण पूछा। उस दिन मैंने निशानेबाजी में अपना हाथ आजमाया तथा पांच में से चार सही निशाने लगाये। इनमें परफेक्ट 10 भी शामिल था।’’ 

उन्होंने कहा, ‘‘कोच भी हैरान था और उन्होंने मुझसे इस खेल पर ध्यान देने के लिये कहा। उन्होंने तब मुझसे कहा था कि मैं देश का नाम रोशन कर सकता हूं और ऐसा मैं शुरू से चाहता था। मैं इससे पहले सामाजिक सेवा के कार्यों से भी जुड़ा रहा था।’’ 

पदक तक पहुंचने की राह में अपने संघर्षों के बारे में बात करते हुए सिंहराज भावुक हो गये और इस बारे में अपनी भावनाओं को बहुत अधिक व्यक्त नहीं कर पाये। 

उन्होंने कहा, ‘‘मैं इस पर बाद में बात करूंगा। पैरा खिलाड़ियों की जिंदगी बहुत मुश्किल होती है। मेरे दोनों पांवों में पोलियो है और मैं बैसाखी के सहारे चलता था लेकिन मेरी मां और परिवार के अन्य सदस्यों ने मुझे बिना सहारे के पांवों पर खड़ा होने के लिये प्रेरित किया।’’ 

क्वालीफिकेशन में शीर्ष पर रहने वाले मनीष नरवाल फाइनल्स में जल्द ही बाहर हो गये जिससे सिंहराज भी निराश थे। क्वालीफिकेशन और फाइनल के बीच ध्यान लगाने वाले सिंहराज ने कहा, ‘‘जब मनीष नरवाल बाहर हुआ तो मैं दुखी था लेकिन मुझे जल्द ही अहसास हो गया कि मुझे अपना मुकाबला जारी रखना है।’’