बेंगलुरू। इंडियन सुपर लीग (आईएसएल) के 2014 में अस्तित्व में आने के बाद से भारतीय फुटबाल ने एक नई राह पकड़ी है और सकारात्मक बदलाव की ओर कदम बढ़ाया है। इसने ना सिर्फ घरेलू फुटबाल की दशा को सुधारा है बल्कि इसके आने से दक्षिण भारत में भी फुटबाल को एक नया जीवन मिला है। दक्षिण से भारतीय टीम आईएम विजयन, टी. अब्दुल रहमान और पीटर थंगराज जैसे दिग्गज खिलाड़ी निकले हैं लेकिन 21वीं सदी में इस क्षेत्र में फुटबाल की लोकप्रियता में गिराव देखने को मिला जिसके कारण कई क्लब बंद हो गए।
आईएसएल ने दक्षिण भारत के फुटबाल प्रशंसकों में नई जान फूंकी और इस क्षेत्र की टीमों ने लीग में भी दमदार प्रदर्शन किया है। दक्षिण भारत से एक टीम पिछले चार संस्करणों के फाइनल में पहुंची है और चेन्नईयन एफसी दो बार खिताब जीतने में भी कामयाब रहा है। चेन्नईयन ने 2015 और 2017-18 सीजन में खिताब अपने नाम किया जबकि केरला ब्लास्टर्स को 2014 और 2016 के फाइनल में हार का सामना करना पड़ा।
चेन्नईयन के साथ खिताब जीतने वाले कोच जॉन ग्रेगोरी ने कहा, "हमें मानसिक रूप से मजबूत होना होगा। आप केवल एक बार खिताब नहीं जीतते बल्कि आप वापस जाकर उसे डिफेंड करते हैं। मैं अपनी टीम में यह मानसिकता डालने की कोशिश कर रहा हूं कि चैम्पियंस केवल एक बार ही खिताब नहीं जीतते। वह हर साल उसे डिफेंड करते हैं।"
ब्लास्टर्स के अलावा गोवा और बेंगलुरू भी एक-एक बार फाइनल में अपनी चुनौती पेश कर चुका है।
दो बार फाइनल मुकाबला हारने वाली केरला की टीम के कोच डेविड जेम्स ने कहा, "मैं समझता हूं कि ड्रेसिंग रूम में जो खिलाड़ी मौजूद हैं वह चीजों से जूझ सकते हैं। हमारी टीम बेहतरीन है और दो बार खिताब से महरूम रहने के बाद हमारे पास जीत दर्ज करने का अच्छा मौका है।"