विशेष: दरिद्रता और दर्द के बीच सफलता की इबारत लिख गईं स्वप्ना बर्मन
एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली भारत की पहली हेप्टाथलीट स्वप्ना बर्मन दर्द और दरिद्रता के बीच रहते हुए सफलता की इबारत लिखने में कामयाब हुईं।
कोलकाता। एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली भारत की पहली हेप्टाथलीट स्वप्ना बर्मन दर्द और दरिद्रता के बीच रहते हुए सफलता की इबारत लिखने में कामयाब हुईं। गरीबी और शारीरिक विकृति ने इस चैम्पियन खिलाड़ी की राह में जीवन के हर मोड़ पर बाधा डालने की कोशिश की लेकिन अपने साहस और समर्पण के दम पर स्वप्ना ने हर एक बाधा को पार करते हुए इतिहास में अपना नाम दर्ज किया।
स्वप्ना ने हालांकि एशियाई खेलों में इतिहास रचने के बाद यह स्वीकार किया था कि उनकी प्राथमिकता सोने का तमगा हासिल करने से कहीं ज्यादा सरकारी नौकरी हासिल करना था क्योंकि इससे न सिर्फ उनका बल्कि उनके परिवार की माली हालत सुधर सकती थी। इसकी पीछे कारण यह था कि स्वप्ना ने अपनी अब की जिंदगी गरीबी में बिताई है लेकिन इसके बावजूद उन्होंने इसे अपनी सफलता की राह की बाधा नहीं बनने दिया। स्वप्ना ने आईएएनएस से बातचीत में कहा, "मैं जब अपने मोहल्ले में ऊंची कूद का अभ्यास करती थी और स्थानीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेती थी, तब मेरा एक ही लक्ष्य था। मैं किसी तरह कोई सरकारी नौकरी पाना चाहती थी। उस समय वही मेरा सपना था।"
स्वप्ना अपने माता-पिता की चार संतानों में सबसे छोटी है। उनके माता-पिता को अभी तक अपनी जरूरतों की पूर्ति के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। उत्तर बंगाल में राजबोंशी जनजाति से ताल्लुक रखने वाली स्वप्ना की मां घरों में काम करने के अलावा अतिरिक्त आमदनी के लिए चाय बगानों में भी काम करती थी। सात साल पहले लकवाग्रस्त होकर बिस्तर पकड़ने से पहले स्वप्ना के पिता पंचानन बर्मन वैन रिक्शा चलाते थे। स्वप्ना ने बताया, "आजीविका चलाने के लिए मेरे अन्य तीन भाई-बहन संघर्ष करते थे। मैं सबसे छोटी हूं इसलिए मेरे पिता ने सोचा कि मैं खेलों से अगर कुछ कमा लूं तो इससे परिवार को मदद मिलेगी।"
अगस्त में हुए एशियाई खेलों में दो दिन के कार्यक्रम में सात दौर के कड़े मुकाबले में कुल 6,026 अंक हासिल कर अपने कैरियर का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाली स्वप्ना ने न सिर्फ वित्तीय बाधाओं को पार किया बल्कि अपने दोनों पैरों की छह-छह अंगुलियों की परेशानियों को भी मात दी। उसने कहा, "मेरी बस एक ही ख्वाहिश थी की कोई नौकरी मिले।" स्वप्ना ने कहा, "मेरा सपना अब अपने देश को आगे ले जाना और आप सबको गौरवान्वित करना है।" उन्होंने कहा कि उनके साथ अब अलग तरह से बर्ताव नहीं होना चाहिए क्योंकि अभी तो सफर की शुरुआत ही हुई है।
स्वप्ना ने जकार्ता में दांत के संक्रमण के बावजूद पहला स्थान हासिल किया। दांत के दर्द को कम करने के लिए उन्होंने पूरी स्पर्धा के दौरान दर्दनिवारक टेप का इस्तेमाल किया। उन्होंने बताया, "अपनी स्पर्धा से पहले मैं कुछ नहीं खा पाई थी। मैं इतनी बीमार थी कि आपको बता नहीं सकती। मैं सिर्फ यह जानती थी कि मुझे जीतना है, क्योंकि मेरे वर्षो का संघर्ष इसी पर निर्भर था।" स्वप्ना के इस सफर की शुरुआत घोशपारा गांव जाने वाली धान के खेतों की पगडंडी से हुई, जहां उन्होंने पहली बार दौड़ लगाई थी।
ट्रैक व फील्ड एथलीट हरिशंकर रॉय को भी प्रशिक्षण देने वाले सुभाष सरकार लंबे समय तक स्वप्ना के कोच रहे। उन्होंने अपनी यादों को ताजा करते हुए कहा, "मैंने सबसे पहले 2011 में जलपाईगुड़ी में स्वप्ना को एक झलक देखा था। वहां मेरे कुछ विद्यार्थी थे, जिन्होंने मुझसे कहा कि सर, इसे अपने साथ कोलकाता ले जाइए। वह बहुत अच्छी है।" सरकार 1992 से भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) के प्रशिक्षिक रहे हैं। उन्होंने कहा कि छोटी और गठीली कद-काठी की स्वप्ना से शुरुआत में वह प्रभावित नहीं हुए, लेकिन रायकोटपारा स्पोíटंग एसोसिएशन के सचिव समीर दास ने उनसे स्वप्ना को अपने साथ ले जाने का आग्रह किया। साई के पूर्वी केंद्र में 2012 में आने से पहले वह प्रशिक्षण लेती रहीं।
सरकार बताया कि समीर का इसी साल जून में निधन हो गया, लेकिन उन्होंने चेतावनी दी थी कि स्वप्ना को अगर उचित मार्गदर्शन व प्रोत्साहन नहीं मिलेगा तो वह अपनी मां के साथ चाय बगान में काम करने लगेगी। वर्ष 2011 में लुधियाना में स्कूल स्तर की स्पर्धा में स्वप्ना को ऊंची कूद में स्वर्ण पदक मिला। कोच सरकार फिर भी प्रभावित नहीं थे, लेकिन अगले कुछ साल में स्वप्ना ने आकर्षक प्रदर्शन किया। सरकार ने कहा, "मैं उसकी प्रतिभा को देखकर हैरान था। वर्ष 2012 में उसने ऊंची कूद में 57,61,63,67 और 71 अंक हासिल किए। उसने ऊंची कूद में जूनियर स्तर की राष्ट्रीय स्पर्धा में दो-तीन बार रिकॉर्ड कायम की। वह औसत से बेहतर थी।" सरकार उसके बाद स्वप्ना को ऊंची कूद से हेप्टाथलॉन में ले आए।
उन्होंने कहा, "उसके कद को लेकर ऊंची कूद में थोड़ी चिंता थी, लेकिन उसमें संभावना देखकर मुझे पक्का विश्वास था कि वह इसमें एशियाई खेलों में पदक जीतेगी। इसलिए मैंने उसे हेप्टाथलॉन में स्थानांतरित कर दिया।" वर्ष 2013 में स्वप्ना ने अपनी पहली ही स्पर्धा में गुंटूर में रजत पदक हासिल किया। सरकार ने बताया कि उसके बाद उसने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। स्वप्ना 17 साल की उम्र में 17वीं फेडरेशन कप सीनियर एथलेटिक्स चैंपियनशिप में शामिल हुईं और उसने 5,400 अंक हासिल कर दक्षिण कोरिया में आयोजित होने वाले एशियाई खेल के लिए क्वालीफाई किया। वर्ष 2014 के एशियाई खेल वह पांचवें स्थान पर रहीं।
सामाजिक समस्याओं और पीठ की चोट के कारण 2015 से 2016 के बीच वह खेल से बाहर रहीं। वह वापस घर लौट चुकी थी और दोबारा मैदान में नहीं उतरने का मन बना चुकी थीं। लेकिन कोच सरकार उसे दोबारा खेल में लेकर आए और वह 2017 में एशियाई एथलेटिक्स चैंपियनयशीप में सोना जीतने में कामयाब रहीं। एशियाई खेलों से पहले सब कुछ योजनाबद्ध तरीके से चल रहा था और स्वप्ना 6,200 अंक के दायरे को पार करने को लेकर आश्वस्त थी लेकिन पटियाला में राष्ट्रीय शिविर के दौरान टखने की चोट, घुटने की नस में खिंचाव और पेट के निचले हिस्से में तकलीफ के कारण उसके अभियान पर एक बार फिर खतरे का बादल छा गया।
सरकार ने हालांकि कहा कि इस बार वह हार नहीं मानने वाली थी, जबकि एथलेटिक्स फेडरेशन के अधिकारी भी उसकी फिटनेस को लेकर आश्वस्त नहीं थे। स्वप्ना का अगला लक्ष्य 2020 में टोक्यो में होने वाला ओलंपिक है। 2019 में वह हालांकि किसी बड़ी प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं ले पाएंगी, क्योंकि उन्हें जल्द स्वस्थ होने की आवश्यकता है। स्वप्ना ने कहा, "अगर मैं दांत में भयानक दर्द के बीच पदक जीत सकती हूं तो मुझे यकीन है कि मैं पूरी तरह फिट होने के बाद भविष्य में और बेहतर प्रदर्शन कर सकती हूं।"