Exclusive | 2-3 मीटर की दूरी के लिए देश से हजारों किलोमीटर दूर हैं नीरज चोपड़ा, ओलंपिक पर हैं निगाहें
डायमंड लीग 2018 में कांस्य पदक जीतने के बाद दाहिनी कोहनी में दर्द हुआ और लगभग 2 साल तक वो भाला नहीं फेंक पाए।
सिर्फ ओलंपिक खेलों में क्वालीफाई करना ही नहीं बल्कि एथलीट का लक्ष्य उसमें मेडल जीत का दावा पेश करना होना चाहिए। कुछ ऐसी ही तैयारियों में भारतीय जैवलीन थ्रोअर नीरज चोपड़ा जुटे हुए हैं। जिन्होंने हाल ही में साउथ अफ्रीका में खेली गई एसीएनई लीग में 87.86 मीटर का थ्रो फेंककर टोक्यो ओलंपिक 2020 का टिकट हासिल किया। हलांकि पदक का दावा पेश करना है तो उन्हें 2 से 3 मीटर और लम्बा थ्रो फेंकना होगा। जिसके लिए नीरज ने इंडिया टी.वी. से ख़ास बातचीत में बताया कि कैसे देश से हजारों किलोमीटर दूर रह कर वो 2 से 3 मीटर की दूरी बढाने में लगे हैं।
साल 2016 से लेकर नवंबर 2018 तक नीरज चोपड़ा फॉर्म में थे और लगातार अपने जैवलीन थ्रो ( भाला फेंक ) से पदक ला रहे थे। जिस कड़ी में उन्होंने विश्व एथलेटिक्स चैम्पियनशिप, राष्ट्रमंडल खेल, दक्षिण एशियाई खेल और एशियाई खेलों में पदक जीते। हलांकि इसके बाद डायमंड लीग 2018 में कांस्य पदक जीतने के बाद दाहिनी कोहनी में दर्द हुआ और लगभग 2 साल तक वो भाला नहीं फेंक पाए। ऐसे में अपने रिहैब और वापसी के बारे में नीरज ने कहा, "जर्मन कोच डॉ क्लॉस बार्टोनिएट के सानिध्य में मैंने ट्रेनिंग कि और रिहैब के दौरान भी काफी प्रतियोगिताएं चल रही थी लेकिन मैं भाग नहीं ले पा रहा था। इसलिए काफी संयम भी बरतना पड़ा। जिसके बाद इस तरह का थ्रो किया तो काफी आत्मविश्वास बढ़ा है और अच्छा लग रहा है।"
नीरज ने साउथ अफ्रीका के टूर्नामेंट में 85 मीटर के ओलंपिक क्वालिफिकेशन के मार्क को 87.86 मीटर के थ्रो के साथ पार किया। जिसके चलते उन्हें टोक्यो ओलंपिक 2020 के लिए क्वालीफाई किया। इस तरह नीरज को अगर ओलंपिक में मेडल का दावा पेश करना है तो अभी 2 से 3 मीटर की दूरी को और बढाना होगा। क्योंकि पिछली बार साल 2016 ओलंपिक में जर्मनी के थॉमस रोलर ने 90.30 मीटर का थ्रो करके गोल्ड मेडल हासिल किया था। इस तरह नीरज ने अपनी तैयारी के बारे में कहा, " 88 से 90 मीटर के बीच मेडल होता है। इस दूरी को बढाना इतना आसान काम नहीं है। जिसके लिए मैं कोशिश में लगा हुआ हूँ। इसके अलावा प्रतियोगिता वाले दिन पर भी निर्भर करता है कि उस दिन बाकी एथलीट कैसा करते हैं।"
नीरज ने इस 2 से 3 मीटर के फासले को तय करने के लिए देश से बाहर रहने का मन बनाया है। उन्होंने कहा, " अभी मैं साउथ अफ्रीका में हूँ और ओलंपिक तक बाहर ही रहकर तैयारी करना चाहूँगा। हमारी ज्यादातर प्रतियोगिताएं भी बाहर ही है जिससे तालमेल बिठाने में आसानी रहती है। हालांकि भारत आकर भी प्रतियोगिताओं में हिस्सा लूंगा।"
वहीं नीरज से जब लम्बी दूरी के थ्रो को करने के लिए ट्रेनिंग के दौरान किन-किन चीज़ों पर ज्यादा फोकस करते हैं इसके बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, "गति, ताकत और तकनीकी इन तीन चीज़ों पर अधिक ध्यान देना होता है, जिसके चलते आप किसी भी थ्रो करने को सक्षम रहते हैं।"
ऐसे में हम उम्मीद करते हैं कि लगभग 88 मीटर का थ्रो करके ओलंपिक में क्वालीफाई करने वाले जैवलीन थ्रोअर नीरज आने वाले दिनों में अपनी ट्रेनिंग के दौरान कड़ी मेहनत करके सवा सौर करोड़ देशवासियों के सपने को साकार कर सकेंगे। इसी साल खेले जाने वाले टोक्यो ओलंपिक में नीरज के साथ-साथ निशानेबाजों और बैडमिंटन स्टार पीवी सिन्धु से भी देश को काफी उम्मीदें हैं।