Shreyas Iyer DRS: वेस्टइंडीज के खिलाफ मौजूदा वनडे सीरीज में भारत के उपकप्तान श्रेयस अय्यर को दूसरे वनडे में एक दुर्भाग्यशाली तरह से आउट दिया गया। वह 63 रनों पर बल्लेबाजी कर रहे थे और शानदार लय में भी दिख रहे थे। लेकिन 33वें ओवर की आखिरी गेंद उनके पैड पर जा लगी और अंपायर ने आउट दे दिया। गेंद साफतौर पर लेग स्टंप के बाहर जा रही थी और उन्होंने डीआरएस भी लिया। लेकिन बॉल ट्रैकिंग में अंपायर्स कॉल आया और वह आउट करार दिए गए।
वह आउट दिए जाने पर काफी निराश दिखे। सोशल मीडिया पर यूजर्स ने तो डीआरएस तकनीक के साथ छेड़छाड़ तक के आरोप लगा दिए। वहीं ट्विटर पर बॉल ट्रैकिंग की कई तस्वीरें भी वायरल हुईं जिसमें साफ दिख रहा था कि गेंद लेग स्टंप के बाहर जा रही थी। ज्यादातर लोगों ने लिखा कि अय्यर को गलत आउट दिया गया और उनके साथ सही नहीं हुआ। एक यूजर ने तो अय्यर के पोस्ट को रिट्वीट करते हुए लिखा कि, आपको गलता आउट दिया गया और वेस्टइंडीज का डीआरएस बॉल ट्रैकर पूरी तरह गलत है।
यह वाकिया हुआ अल्जारी जोसेफ की गेंद पर जो उन्होंने यॉर्कर लेंथ पर फेंकी और अय्यर के जूते की नोंक पर जा लगी। गेंद जब उनके जूतों पर लगी तो तीनों स्टंप नजर आ रहे थे। फिर भी फील्ड अंपायर ने उन्हें आउट करार दिया। डीआरएस में भी गेंद लेग स्टंप पर लगती दिखी और अंपायर्स कॉल से उन्हें आउट करार दिया। वह काफी निराश थे और पहले वनडे में इससे मिलता-जुलता विकेट संजू सैमसन का था। वहां भी फील्ड अंपायर ने आउट दिया था और अंपायर्स कॉल में गेंद लेग स्टंप के काफी बाहर से जाती दिख रही थी।
पहले भी विवादों में रही है तकनीक!
अगर आपको याद हो इससे पहले इस साल की शुरुआत में साउथ अफ्रीका और भारत के बीच हुए केपटाउन टेस्ट में भी डीआरएस तकनीक पर कई सवाल उठे थे। वहां विराट कोहली समेत कई खिलाड़ी काफी नाराज दिखे थे और स्टंप माइक के जरिए सुपर स्पोर्ट के खिलाफ भड़ास निकालते नजर आए थे। टीम इंडिया के कई पूर्व क्रिकेटर वसीम जाफर और गौतम गंभीर ने भी इसको लेकर अपनी प्रतिक्रियाएं दी थीं।
कैसे काम करती है डीआरएस की प्रक्रिया?
साउथ अफ्रीका सीरीज में बवाल के बाद, इन सब पर बोलते हुए बॉडकास्ट डायरेक्टर हेमंत बुच ने जवाब दिया था। उन्होंने पूरी टेक्नोलॉजी के बारे में जानकारी देते हुए बताया था कि इसके पीछे भी इंसान काम करते हैं जिसके बाद गलती (Human Error) की संभावना हमेशा होता है। ऐसे में DRS की इमेज पर सवाल उठाना सही नहीं है। बॉल-ट्रैकिंग हमेशा हॉक-आई के जरिए सप्लाई की जाती है जिसे ICC द्वारा अप्रूव किया जाता है। इसके लिए 6 कैमरों का इस्तेमाल होता है। पांच लोग इसे ब्रॉडकास्ट करने के लिए काम करते हैं। ये सभी लोग कैमरे के एंगल, बॉल की पिच, अल्ट्रा एज(बल्ले का किनारा) आदि देखते हैं।’
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बुच ने आगे बताया था कि,’कंपनी के लिए काम करने वाले लोग अलग-अलग स्किल और अनुभव के होते हैं। कभी-कभी आप देखते होंगे की ट्रैकिंग जल्दी मिल जाती है और कभी देर भी होती है। सबकी क्षमताएं अलग होती हैं। ट्रैकिंग सिस्टम में इंसानों के हस्तक्षेप के कारण मानवीय गलती की संभावना बनी रहती है। लेकिन ऐसा सीरीज में सिर्फ एक या दो बार ही होता है। यह सभी डाटा मैच के बाद आईसीसी को भी दिया जाता है। इसके पीछे बहुत सारी चेकिंग होती है। काफी गौर से इसे देखा जाता है। अगर कोई छेड़छाड़ इसके साथ होती है तो उसे पकड़ा भी तुरंत जा सकता है।’
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