BCCI-Supreme Court: उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि भारतीय क्रिकेट बोर्ड (बीसीसीआई) एक सेल्फ गवर्निंग संस्था है और वह अपने कामकाज का सूक्ष्म प्रबंधन नहीं कर सकता। न्यायालय ने इसके साथ ही बीसीसीआई से पूछा कि क्यों वह ऐसा चाहते हैं कि 70 साल से अधिक उम्र का व्यक्ति अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) में उसका प्रतिनिधित्व करे। शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी बोर्ड की उस याचिका पर सुनवाई के दौरान की जिसमें बीसीसीआई अध्यक्ष सौरव गांगुली और सचिव जय शाह सहित अन्य पदाधिकारियों के कार्यकाल के संबंध में अपने संविधान में संशोधन करने की मांग की गई थी।
इसमें राज्य क्रिकेट संघों और बीसीसीआई के पदाधिकारियों के कार्यकाल के बीच अनिवार्य ‘कूलिंग ऑफ’ पीरियड (तीन साल तक कोई पद नहीं संभालना) को समाप्त करना शामिल है। न्यायालय ने कहा कि पदाधिकारियों के कार्यकाल के बीच कूलिंग ऑफ पीरियड को समाप्त नहीं किया जाएगा, क्योंकि ‘‘कूलिंग ऑफ पीरियड का उद्देश्य यह है कि किसी प्रकार का निहित स्वार्थ न हो।’’ शीर्ष अदालत ने कहा कि वह बुधवार को सुनवाई जारी रखेगी और फिर आदेश पारित करेगी।
क्या कहता है बीसीसीआई का संविधान
बीसीसीआई के संविधान के अनुसार, एक पदाधिकारी को स्टेट बोर्ड या बीसीसीआई या दोनों संस्था का संयुक्त रूप से कार्यकाल संभालने के लिए तीन साल के कूलिंग ऑफ पीरियड से गुजरना पड़ता है। बीसीसीआई की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की बेंच से कहा कि देश में क्रिकेट का खेल काफी व्यवस्थित है। उन्होंने कहा कि बीसीसीआई एक सेल्फ गवर्निंग संस्था है और सभी बदलावों पर क्रिकेट संस्था की वार्षिक आम बैठक में विचार किया जाता है। जब हलफनामा पेश किया जा रहा था तब बेंच ने कहा था कि, ‘‘बीसीसीआई एक सेल्फ गवर्निंग संस्था है। हम इसके कामकाज का सूक्ष्म प्रबंधन नहीं कर सकते।’’ मेहता ने कहा कि,‘‘ वर्तमान संविधान में कूलिंग ऑफ पीरियड का प्रावधान है। अगर मैं एक कार्यकाल के लिए राज्य क्रिकेट बोर्ड और लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए बीसीसीआई का पदाधिकारी हूं, तो मुझे कूलिंग ऑफ पीरियड से गुजरना होगा।’’ उन्होंने कहा कि दोनों निकाय अलग हैं और उनके नियम भी अलग हैं। जमीनी स्तर पर नेतृत्व तैयार करने के लिए पदाधिकारी के लगातार दो कार्यकाल बहुत कम हैं। इससे पहले न्यायमूर्ति आरएम लोढ़ा की अगुवाई वाली समिति ने बीसीसीआई में संशोधनों की सिफारिश की थी जिसे उच्चतम न्यायालय ने स्वीकार किया था।
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