नई दिल्ली: सौरव गांगुली को जब पहली बार भारतीय टीम में लिया गया तो लोगों ने समझा ये महज़ एक पैसेंजर है जो घूम फिरकर वापस आ जाएगा और फिर गुमनामी के अंधेरे में खो जाएगा। लेकिन दादा उर्फ महाराज का करिअर ऐसा परवान चढ़ा कि उसकी रौशनी में कई लोग धुंधले पड़ गए।
क्रिकेट दरअसल दादा का पहला पसंदीदा खेल नहीं था। कोलकता के लोगों की तरह दादा को भी फुटबॉल पसंद खेल पसंद था।
दरअसल दादा को क्रिकेट की दुनियां में ऊंचाईयों पर पहुंचान में उनके बड़े भाई स्नेहाशीष का बहुत बड़ा हाथ है। वह एक स्थापित क्रिकेटर थे। दादा ने शुरु में उनसे ही क्रिकेट सीखा।
दादा अपने ही तरह के बाएं हाथ के इंग्लैंड के बल्लेबाज़ डेविड गॉवर से बहुत प्रभावित थे और अक़्सर उनके वीडियों देखा करते थे।
चूंकि दादा एक संभ्रांत परिवार से संबंध रखते थे इसलिए शायद महाराज को बारहंवा खिलाड़ी बनकर खेलने वाले खिलाड़ियों की सेवा करना पसंद नहीं था। इस बात को लेकर उनके ख़िलाफ कार्रवाई भी हुई थी।
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