युवराज सिंह के टेस्ट क्रिकेट में सफल न हो पाने के ये थे प्रमुख कारण
वनडे क्रिकेट में युवराज सिंह ने अपने 19 साल के करियर में टीम इंडिया के लिए कई मैच जीताऊ पारियां खेली। लेकिन टेस्ट क्रिकेट में सफलता हासिल नहीं कर सके।
पूरी दुनिया में क्रिकेट के यमराज के नाम से जाने वाले भारतीय क्रिकेटर युवराज सिंह ने आज क्रिकेट को अलविदा कह दिया है। पिछले एक दो साल से अन्तराष्ट्रीय क्रिकेट में वापसी के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर करने वाले युवराज ने आखिरकार हार मानकर खुद को क्रिकेट के मैदान से दूर करने का फैसला कर लिया। ऐसे में एक तरफ जहां पूरा देश बीते रात भारतीय टीम की ऑस्ट्रेलिया पर जीत के जश्न में डूबा हुआ था वही अगले दिन अपने स्टार खिलाडी के क्रिकेट को अलविदा कहने के कारण थोडा ग़मगीन है। मुंबई में युवराज यानी टीम इंडिया के युवी ने प्रेस वार्ता में अपने संन्यास का ऐलान किया और इसी के साथ क्रिकेट की रंगारंग टी-20 लीग आईपीएल को भी अलविदा कह दिया। हालांकि विदेशी टी20 लीगों में वो अपने बल्लेबाजी का जलवा दिखाते नजर आ सकते हैं।
ऐसे में रंगीन कपड़ों व सफ़ेद गेंद के क्रिकेट में युवराज सिंह ने अपने 19 साल के करियर में टीम इंडिया के लिए कई मैच जीताऊ पारियां खेली। जिसका सिलसिला उन्होंने 15 साल की उम्र में ही भारत के लिए अंडर 15 वर्ल्ड कप में फिनिशर बनकर पूरा कर दिया था। उसके बाद अंडर 19, नेट वेस्ट सीरीज 2002, टी-20 वर्ल्ड कप 2007 और अंत में भारत को 2011 विश्व क जीताने में भी युवराज ने गेंद और बल्ले से कमाल का प्रदर्शन किया। जिससे भारत इन सभी टूर्नामेंट में ख़िताब जीता। 2011 विश्व कप में भी युवराज को मैन ऑफ द टूर्नामेंट चुना गया। ऐसे में 304 वनडे मैच खेलने वाले पूरी दुनिया के कोने-कोने में छक्के बरसाने वाले युवराज आखिर टेस्ट क्रिकेट में इतने सफल क्यों नहीं हो पाए? जिसका उन्हें आज भी मलाल है।
युवराज से जब प्रेस वार्ता में पूछा गया की आप एक सफल टेस्ट क्रिकेटर नहीं बन पाए, इसके बारे में क्या कहना चाहेंगे। युवराज ने कहा, "मुझे हमेशा इस चीज का मलाल रहेगा कि मैं एक दमदार टेस्ट क्रिकेटर नहीं बन पाया।"
300 से अधिक वनडे खेलने वाले टीम इंडिया के चार्मिंग युवराज लाल गेंद और सफ़ेद कपड़ों के खेल में नाम नहीं बना पाए। उन्होंने अपने करियर के दौरान सिर्फ 40 टेस्ट मैच खेलें। जिसमें 33 के आसपास की औसत से उन्होंने 1900 रन बनाए। जिसमें पाकिस्तान के खिलाफ 169 रनों की उनकी सर्वोच्च टेस्ट पारी है। जबकि सिर्फ 3 टेस्ट शतक और 11 अर्धशतक उनके नाम है। इतना ही नहीं टेस्ट क्रिकेट में युवी 7 बार शून्य पर भी आउट हुए। ऐसे में आखिर क्या कारण था जो युवराज इतने सफल टेस्ट क्रिकेटर नहीं बन पाए। आइये डालते हैं उनके पहलुओं पर एक नजर:-
संयम की कमी
युवराज को टीम इंडिया में हमेशा से एक फिनिशर की भूमिका में देखा गया था। वनडे क्रिकेट में भी वो नम्बर चार या पांच बल्लेबाजी करते थे। हमेशा से वो वनडे क्रिकेट में तेज तर्रार पारियों के लिए जाने जाते थे। जिसके चलते टेस्ट क्रिकेट में जब उन्हें नम्बर छह पर मौका मिला तो लम्बी-लम्बी व संयम भरी पारी खेलने में वो नाकम रहे। 2003 में अपने घरेलू मैदान मोहाली में न्यूजीलैंड के खिलाड़ टेस्ट डेब्यू करने वाले युवराज सिंह पहली पारी में 20 तो दूसरी पारी में 5 रन पर नाबाद रहे और मैच ड्रा हो गया। इस तरह युवी की टेस्ट क्रिकेट में शुरुआत ही कुछ ख़ास नहीं रही थी जबकि अपने वनडे क्रिकेट के डेब्यू मैच में तो उन्हें बल्लेबाजी करने का मौका नहीं मिला। लेकिन उसके बाद ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अपने अन्तराष्ट्रीय करियर में बल्लेबाजी करने उतर युवराज ने तेजी से 84 रनों की पारी खेला बता दिया था कि वो टीम इंडिया के वनडे क्रिकेट में लम्बी रेस के घोड़े हैं। मगर टेस्ट क्रिकेट में थोडा संयम और धैर्य की कमी के कारण वो एक सफल बल्लेबाज बनने में नाकाम रहे।
बैट स्पीड
साल 2000 में टेस्ट डेब्यू और 2003 में टेस्ट डेब्यू करने वाले युवराज की बल्लेबाजी का स्तर काफी अलग था। उनके बल्ले से निकली गेंद सीमा रेखा कब पहुँच जाती थी फैंस को इसकी भनक तक नहीं पड़ पाती थी। युवी की बल्लेबाजी में उनकी बैट स्पीड काफी तेज है। जिसकी क्रिकेट पंडित से लेकर दिग्गज तक सभी तारीफ करते हैं। चूंकि वनडे क्रिकेट की सफ़ेद गेंद इनती ज्यादा स्विंग नहीं होती थी तो युवी के बल्ले पर आसानी से आती थी। मगर क्रिकेट के असली खेल टेस्ट क्रिकेट की लाल गेंद ज्यादा स्विंग होने के कारण अक्सर युवराज के शॉट्स का बाहरी किनारा लेते हुए विकेट कीपर या स्लिप के फिल्डर के पास चली जाती थी। जबकि टेस्ट क्रिकेट में बल्ले की स्पीड कम बल्कि रक्षात्मक और तकीनीकी ज्यादा बल्लेबाजो को आगे लेकर जाती है। युवी की टेस्ट में नाकामी का उनके बल्ले की तेज स्पीड भी एक कारण बनी।
कमज़ोर रक्षात्मक शैली
अपनी आक्रमक शैली के कारण जाने वाले युवराज सिंह की बल्लेबाजी में उनकी सबसे बड़ी विलेन रक्षात्मक शैली बनी। युवराज के डिफेंस पर अक्सर सवाल उठते रहे जिसके कारण उन्हें टेस्ट क्रिकेट में कई बार टीम एक अंदर और बाहर का रास्ता देखना पड़ा। क्रिकेट के पंडितों से लेकर दिग्गज तक हमेशा से युवी के डिफेंस पर सवाल खड़ें करते आए थे। जिसके कारण वो क्रिकेट के खेल जिसमें सफलता पाने के लिए संयम, धैर्य और कौशल की जरूरत होती है। उस पैमाने पर खरे उतरने में युवी नाकाम रहे। युवी के टेस्ट क्रिकेट में घर से बाहर के प्रदर्शन को देखा जाए तो 21 मैचों की 31 पारी में में 848 रनों के साथ उनके नाम 29.24 का औसत रहा। जबकि एशियाई प्रायद्वीप में उनके नाम 38.96 का औसत रहा।
इस तरह युवराज सिंह के 19 साल के करियर में क्रिकेट के वनडे फॉर्मेट में तो उनके नाम सिक्का हमेशा बुलंदियों पर रहा लेकिन 2019 में सन्यास लेने से सात साल पहले (2012) उन्होंने टेस्ट क्रिकेट का आखिरी मैच खेला था। जिससे साफ़ जाहिर होता है कि युवी की बल्लेबाजी टेस्ट क्रिकेट के कोकटेल में कभी फिट नहीं बैठी। युवी भलें ही बड़े टेस्ट क्रिकेटर ना बन पाए हो लेकिन फैन्स के दिलों में भारत को विश्व कप 2011 दिलाने वाले युवराज हमेशा राज करते रहेंगे।