World T20: क्या टीम इंडिया अपने ग़ुरुर में ग़र्क हुई...?
मंगलवार को भारतीय क्रिकेट के लिए सबसे बड़ी और 'अप्रत्याशित' अमंगलकारी घटना हो गई। वो प्रतियोगिता के पहले मैच में न्यूज़ीलैंड से हार गई और इसके साथ ही भारतीय क्रिकेट प्रेमियों की उमंग, आशा और अपेक्षाएं भी हताशा में तब्दील हो गईं।
नई दिल्ली: विश्व कप में मंगलवार को भारतीय क्रिकेट के लिए सबसे बड़ी और 'अप्रत्याशित' अमंगलकारी घटना हो गई। वो प्रतियोगिता के पहले मैच में न्यूज़ीलैंड से हार गई और इसके साथ ही भारतीय क्रिकेट प्रेमियों की उमंग, आशा और अपेक्षाएं भी हताशा में तब्दील हो गईं।
क्रिकेट खेल का शायद ही कोई ऐसा जानकार होगा जो इस बात से इत्तफ़ाक न रखता हो कि टीम इंडिया खेल के सबसे छोटे फ़ॉर्मेट की सबसे बेहतरीन टीम है। उसके तरकश में वे तमाम तीर हैं जिनकी टी20 में जीत के लिए दरकार होती है यानी रन बनाने वाले बल्लेबाज़ और विकेट लेने या रन रोकने वाले गेंदबाज़। तो फिर वो हार कैसे गई...? क्या वजह थी..? कहां चूक हुई...? क्या न्यूज़ीलैंड के फिरकी गेंदबाज़ों को धीमे विकेट पर खेलना वाक़ई मुश्किल था...?
विकेट कैसा भी हो 127 का लक्ष्य कभी मुश्किल नहीं हो सकता बशर्ते कोई टीम हाराकिरी (जापानी में अर्थ आत्महत्या) पर आमादा हो जाए। ऐसा ही कुछ टीम इंडिया के साथ हुआ। दरअसल ग़ुरुर अच्छे से अच्छे योद्धा को भी रणभूमि में धूल चटा देता है। टीम इंडिया को उसका अति आत्मविश्वास ले डूबा वर्ना क्या वजह है कि उसे खेल का एक मामूली सा सिद्धांत ही याद नहीं रहा।
पिच किस तरह की है और इस पर कैसे खेला जाना है ये टीम इंडिया को तभी पता चल गया था जब न्यूज़ीलैंड बैटिंग कर रही थी। 126 पर उसे समेटने के बाद भले ही खेल की बारीकियों से बेख़बर लोग ख़ुश हो रहे हों लेकिन टीम इंडिया को मालूम था कि इस विकेट पर 127 रन बनाना उतना भी आसान नहीं होगा जितना लोग समझ रहे हैं।
चूंकि इस विकेट पर शॉट खेलना आसान नहीं था इसलिये अक़्लमंदी इसी में थी कि बल्लेबाज़ एक-दो रन पर ध्यान देते लेकिन ज़्यादातर बल्लेबाज़ों का शॉट सिलैक्शन समझ के परे था। खुद धोनी ने भी यही बात की है।
अब शिखर धवन को ही लीजिये। धवन ने सिर्फ तीन बॉलें खेली थी और स्पिनर को स्पिन के विरुद्ध स्वीप करने लगे। नतीजा विकेट के सामने प्लंब। रोहित भी स्पिनर को मारने के लिए क्रीज़ के बाहर निकले और स्टंप हो गए हालंकि उन्होंने भी अभी सात बॉलें ही खेली थी। ऐसा ही कुछ रैना, पंड्या, युवराज और जडेजा के साथ हुआ।
अगर इनमे से एक बल्लेबाज़ ने भी धोनी का अक़्लमंदी से साथ दिया होता और अपने बल्लेबाज़ी की धाक जमाने की कोशिश नहीं की होती तो नतीजा कुछ और ही होता। लेकिन कहते हैं कि अपने दुश्मन को कभी कमज़ोर नहीं समझना चाहिये जो इन्होंने समझा।
ये कोई मामूली हार नहीं है। धोनी एम्ड कंपनी के सामने अब बड़ी चुनौती है, उसे अब बाक़ी तीन मैच जीतने होंगे जिसमें एक पाकिस्तान और एक ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ है। एक चूक भी टीम इंडिया की टी20 की अगर बादशहत भले ख़त्म न कर सके लेकिन ताज तो हिला ही सकती है।
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