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Hindi News खेल क्रिकेट सुरेश रैना ने याद किया संघर्ष, कैसे कश्मीर से घर छोड़कर उन्होंने अन्तराष्ट्रीय क्रिकेट में बनाया नाम

सुरेश रैना ने याद किया संघर्ष, कैसे कश्मीर से घर छोड़कर उन्होंने अन्तराष्ट्रीय क्रिकेट में बनाया नाम

रैना ने एक इंटरव्यू में अपने क्रिकेट के फर्श से लेकर अर्श तक एक सफर को याद किया है। जिसमें उन्होंने बताया कि कितने संघर्षों के बाद उन्होंने अन्तराष्ट्रीय क्रिकेट में अपनी पहचान बनाई।

Suresh Raina- India TV Hindi Image Source : IPLT20.COM Suresh Raina

कोरोना महामारी के कारण इंडियन प्रीमीयर लीग ( आईपीएल ) का आगाज 19 सितंबर से यूएई में होना है। इसी बीच आईपीएल के 13वें सीजन से पहले चेन्नई सुपर किंग्स को बड़ा झटका लगा है। जहां उसके दो खिलाड़ी दीपक चाहर और ऋतुराज गायकवाड़ कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं वहीं टीम के उपकप्तान व चिन्ना थाला कहे जाने वाले सुरेश रैना अचानक टीम का साथ छोड़कर भारत लौटे आए हैं। जिसके बारे में कई तर्क दिए जा रहे हैं कि रैना डकैतों द्वारा पठानकोट में रिश्तेदारों पर हमला होने के कारण वापस आए तो वहीं चेन्नई सुपर किंग्स के सीईओ का मानना है कि दुबई में अच्छा होटल का कमरा ना मिलने का कारण नाराज होकर रैना आईपीएल से आनन - फानन वापस आ गए हैं। हालांकि इसी बीच रैना ने एक इंटरव्यू में अपने क्रिकेट के फर्श से लेकर अर्श तक एक सफर को याद किया है। जिसमें उन्होंने बताया कि कितने संघर्षों के बाद उन्होंने अन्तराष्ट्रीय क्रिकेट में अपनी पहचान बनाई।  

रैना ने निलेश मिश्र के 'द स्लो इंटरव्यू' में बताया कि उनके परिवार में आठ लोग थे और उस समय दिल्ली में क्रिकेट अकादमियों का मासिक शुल्क पांच से 10 हजार रूपये प्रति महीना था। इस दौरान लखनऊ के गुरू गोविंद सिंह खेल कॉलेज में उनका चयन हुआ और फिर सब कुछ बदलकर एक इतिहास बन गया। रैना ने कहा, ''पापा सेना में थे, मेरे बड़े भाई भी सेना में हैं। पापा अयुध फैक्ट्री में बम बनाने का काम करते थे। उन्हें उस काम में महारत हासिल थी।''

उन्होंने आगे कहा, ''पापा वैसे सैनिकों के परिवारों की देखभाल करते थे, जिनकी मृत्यु हो गई थी। उनका बहुत भावुक काम था। यह कठिन था, लेकिन वह सुनिश्चित करते थे कि ऐसे परिवारों का मनीऑर्डर सही समय पर पहुंचे और वे जिन सुविधाओं के पात्र है वे उन्हें मिले।'' 

गौरतलब है कि रैना एक कश्मीरी पंडित हैं। साल 1990 में कश्पंमीर में पंडितों के खिलाफ अत्याचार होने पर उनके पिता रैनावाड़ी में सबकुछ छोड़कर उत्तर प्रदेश के मुरादनगर आ गए थे। जिसके बारे में रैना ने कहा, "मेरे पिता का मानना था कि जिंदगी का सिद्धांत दूसरों के लिए जीना है। अगर आप केवल अपने लिए जीते हैं तो वह कोई जीवन नहीं है। बचपन में जब मैं खेलता था तब पैसे नहीं थे। पापा 10 हजार रुपये कमाते थे और हम पांच भाई और एक बहन थे। फिर मैंने 1998 में लखनऊ के गुरु गोबिंद सिंह खेल कॉलेज में ट्रायल दिया। हम उस समय 10,000 का प्रबंधन नहीं कर सकते थे।''

रेने ने आगे अपने जीवन के बारे में कहा, ''यहां फीस एक साल के लिए 5000 रुपये थी इसलिए पापा ने कहा कि वह इसका खर्च उठा सकते हैं। मुझे और कुछ नहीं चाहिए था, मैंने कहा मुझे खेलने और पढ़ाई करने दो।''

रैना ने आगे बताया कि वो हमेशा अपने पापा से कश्मीर के बारे में चर्चा करने से बचते थे। क्योंकि इससे उनके पिता और दुखी हो जाते थे। इसलिए वो दो से तीन बार कश्मीर गए लेकिन कभी अपने पिता को इसके बारे में उन्होंने नहीं बताया। रैना ने कहा, "मैं एलओसी पर दो से तीन बार गया हूं। मैं माही भाई (महेन्द्र सिंह धोनी) के साथ भी गया था, हमारे कई दोस्त हैं जो कमांडो हैं।'' 

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क्रिकेट के बारे में बात शुरू होने पर रैना ने महान राहुल द्रविड़ की बल्लेबाजी के लिए तारीफ करते हुए कहा कि भारतीय क्रिकेट में उनका योगदान किसी से कम नहीं है। राहुल द्रविड़ ने 2008 से 2011 तक भारतीय टीम को जीतने में बहुत योगदान दिया। वह एक बहुत मजबूत नेतृत्वकर्ता भी थे और वे बहुत अनुशासित थे।''

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वहीं जब उनके साथी धोनी के बारे में रैना से पूछा गया तो उन्होंने कहा, "वह बहुत बड़े कप्तान हैं। और वह बहुत अच्छा दोस्त है। और उसने खेल में जो हासिल किया है मुझे लगता है कि वह दुनिया का नंबर एक कप्तान है। वह दुनिया के सबसे अच्छे इंसान भी हैं, क्योंकि वह जमीन से जुड़े है।''

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जबकि अंत में विश्वकप 2011 जीत के प्लान के बारे में रैना ने कहा, "धोनी ने इसकी शुरुआत की, सचिन तेंदुलकर ने भी कहा कि किसी को कुछ भी नहीं बताना है, क्योंकि विश्व कप आ रहा था। इसकी शुरुआत 2008-09 में हो गई थी। 2008 में हमने ऑस्ट्रेलिया में ट्राई सीरीज जीती। 2009 में, हमने न्यूजीलैंड में जीत हासिल की। 2010 में हमने श्रीलंका में जीत हासिल की। और फिर विश्व कप।''

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