बीसीसीआई के मौजूदा अध्यक्ष सौरव गांगुली को भारत के सबसे निडर कप्तानों में से एक माना जाता है। गांगुली की कप्तानी में भारतीय टीम ने ना सिर्फ देश में बल्की विदेशों में भी अपना पड़चम लहराया। यही कारण है कि गांगुली ने नेतृत्व में भारतीय टीम साल 2003 विश्व कप के फाइनल तक का सफर तय किया था जहां उसे ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ हारकर उपविजेता बनकर संतोष करना पड़ा।
साल 2003 विश्व कप में गांगुली से जुड़ी ऐसी ही एक घटना आज ही के दिन हुई थी जिसे याद किए बिना नहीं रहा जा सकता है। दरअसल विश्व कप में यह नॉकआउट मैच था। भारतीय टीम अगर यहां एक भी चूक करती तो उसका फाइनल में पहुंचने का सपना चकनाचूर हो जाता।
यह मैच विश्व कप का दूसरा सेमीफाइनल था जो कि भारत और केन्या के बीच डरबन में खेला जा रहा था। केन्या की टीम ने भी टूर्नामेंट में शानदार प्रदर्शन कर सेमीफाइनल तक पहुंची थी ऐसे में भारतीय टीम उसे हल्का आंकने की भूल नहीं कर सकती थी।
इस मुकाबले में टीम इंडिया ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी का फैसला किया था। भारतीय टीम को वीरेंद्र सहवाग और सचिन तेंदुलकर की जोड़ी ने मजबूत शुरुआत दी और पहले विकेट के लिए 74 रनों की साझेदारी हुई लेकिन इस बीच सहवाग 33 रन बनाकर आउट हो गए।
मैच का यह 19वां ओवर था। इसके बाद बल्लेबाजी के लिए प्रिंस ऑफ कोलकाता कहे जाने वाले खुद कप्तान गांगुली मैदान पर उतरे। यहां से उन्होंने सचिन के साथ मिलकर ना सिर्फ पारी को संभाला बल्कि टीम मजबूत स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया।
हालांकि इस बीच सचिन तेंदुलकर 83 रनों के स्कोर पर आउट हो गए लेकिन दूसरे छोर पर गांगुली आखिर तक डटे रहे पारी की समाप्ति तक 114 गेंद में 111 रन बनाकर नाबाद पवेलियन वापस लौटे।
इस दमदार पारी के साथ ही गांगुली के नाम एक ऐसा रिकॉर्ड दर्ज हो गया जो इससे पहले भारत के किसी भी बल्लेबाज ने नहीं किया था। गांगुली आईसीसी विश्व कप के नॉकआउट मैच में भारत की तरफ से शतक लगाने वाले पहले बल्लेबाज बन गए थे।
गांगुली और सचिन की इस दमदार पारी के दमपर भारत ने केन्या के सामने 4 विकेट के नुकसान पर 270 रनों की चुनौती दी। भारत के द्वारा दिए गए 271 के लक्ष्य के जवाब में केन्या की टीम महज 46.2 ओवर में 179 रन बनाकर ऑलआउट हो गई।
इस तरह से भारतीय टीम ने इस मैच को 91 रनों से जीतकर फाइनल में अपनी जगह बनाई थी।
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