विधि आयोग ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) को RTI (सूचना का अधिकार) के दायरे में लाने की सिफ़ारिश की है. आयोग ने सरकार को एक रिपोर्ट सौंपी है जिसमें बोर्ड की कार्यप्रणाली को और पारदर्शी बनाने की बात की गई है. आयोग का मानना है कि बोर्ड को RTI के दायरे में लाने से उसकी कार्यप्रणाली के बारे में पता चल सकेगा. आयोग का मानना है कि बोर्ड एक सार्वजनिक प्राधिकरण के तहत आता है. इसे RTI के दायरे में लाने के बारे में आयोग की दलील है कि उसे सरकारों से क मं छूट और ज़मीन के रुप "काफी वित्तीय" सहायता मिली हैं.
आयोग ने आज विधि मंत्रालय को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि बीसीसीआई एक सार्वजनिक संस्था है. जब दूसरे सभी राष्ट्रीय खेल आरटीआई के दायरे में रखे गए हैं तो फिर बीसीसीआई क्यों नहीं?" आयोग ने कहा कि देश में क्रिकेट के आयोजन पर बोर्ड का एकाधिकार है और उसकी भूमिका लोगों की नज़रों से दूर रही है. इसकी वजह से अस्पष्टता और ग़ैर-जवाबदेही के माहौल को बढ़ावा मिला है."
जुलाई 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने आयोग से बोर्ड को RTI के दायरे में लाने के बारे उसकी सिफ़ारिश मांगी थी. रिपोर्ट में कहा गया है कि बोर्ड को संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत शासकीय संस्था के रुप में वर्गीकृत किया जाना चाहिए. फिलहाल बोर्ड एक निजी संस्था के रुप में काम करता है और वह तमिलनाडु सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एक्ट के तबत पंजीकृत है. बोर्ड सबसे क्रिकेट की दुनियां में सबसे अमीर संस्था है और ताकतवर भी है. उसे विश्व क्रिकेट से होने वाली कमाई का सबसे बड़ा हिस्सा मिलता है.
सरकार ने अगर विधि आयोग की सिफारिशें मान ली तो बोर्ड की मुसिबतें और बढ़ जाएंगी. अभी उसका कामकाज सु्प्रीम कोर्ट द्वारा गठित प्राशसकों की समिति देख रही है.
RTI के दायरे में आने से कोई भी जन हित याचिका दायर कर बोर्ड के फ़ैसलों पर सवाल कर सकता है. इसमें टीमों के चयन से लेकर कांट्रेक्ट देने-लेने की भी बात शामिल है.
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