धोनी, हारने के लिए शुक्रिया : आईपीएस अमिताभ ठाकुर
नई दिल्ली: विश्व कप 2015 के सेमिफाइनल में मिली हार के बाद भारतीय क्रिकेट टीम को कड़ी आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है और ऐसे ही आलोचकों की सूची में आईपीएस अफसर अमिताभ ठाकुर
नई दिल्ली: विश्व कप 2015 के सेमिफाइनल में मिली हार के बाद भारतीय क्रिकेट टीम को कड़ी आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है और ऐसे ही आलोचकों की सूची में आईपीएस अफसर अमिताभ ठाकुर का नाम भी जुड़ गया है। आईजी सिविल डिफेंस आईपीएस अफसर अमिताभ ठाकुर ने भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान एम एस धोनी को एक हजार रुपए का चेक उनके रांची स्थित घर के पते पर भेजा है।
आईपीएस ठाकुर ने कहा कि 26 मार्च को ऑस्ट्रेलिया के साथ सेमीफाइनल मैच के दौरान तमाम सरकारी दफ्तरों में कर्मचारियों ने अपना काम छोड़कर इस विकास विरोधी खेल से चिपके रहे, जो देश हित में नहीं था। ऐसे में यह मैच हार जाने के बाद देश के कामकाज का एक और दिन बर्बाद होने से बच गया। यही वजह है कि उन्होंने धोनी को धन्यवाद स्वरूप यह राशि भेजी है।
जहां एक तरफ भारतीय टीम को आलोचनाएँ मिल रही है वहीं उनके समर्थकों की कमी भी नहीं है। दुनिया भर में भारत को विश्व कप 2015 में शानदार प्रदर्शन के लिए सराहना भी मिल रही है। खासकर, धोनी की कप्तानी को खूब वाह-वाही मिली।
1992 बैच के आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर ने धोनी को एक चिट्ठी भी लिखी है जिसमें, कामकाज के दौरान क्रिकेट न देखने की अपील है। इसमें उन्होंने धोनी से कहा है कि आप एक सेलिब्रिटी हैं और तमाम क्रिकेट प्रेमियों पर आपकी पकड़ है। ऐसे में आप सरकारी, व्यावसायिक और निजी संस्थानों में काम कर रहे लोगों से अपील करें कि वे काम छोड़कर छोड़कर मैच देखने की आदत न डालें।
आईजी अमिताभ ठाकुर का महेंद्र सिंह धोनी को लिखा पत्र-‘कृपया निवेदन है कि गुरुवार को आपके अधीन सिडनी में खेला गया क्रिकेट वर्ल्ड का सेमीफाइल मैच में भारतीय टीम की हार हुई। खेलों में हार-जीत होती रहती है। मैं समझता हूं इसे इसी रूप में देखा जाना चाहिए। हालांकि, बहुत बड़ी संख्या में लोग आपके अधीन खेलने वाली टीम को भारत देश की आधिकारिक राष्ट्रीय टीम मानते हैं। वहीं, दूसरी टीम को एक-दूसरे देश की आधिकारिक टीम समझते हुए इस हार-जीत को राष्ट्र-गौरव और संपूर्ण देश और उसके देशवासियों की प्रतिष्ठा से जोड़कर देखते हैं।’
उन्होंने कहा, ‘उनके मन में आपकी टीम की हार से भारी विक्षोभ है, जो एक सहज मानवीय अनुभूति है। क्योंकि, जब किसी बात को राष्ट्रीयता से जोड़कर देखा जाता है तो इस प्रकार की भावना आना स्वाभाविक होता है। मैं व्यक्तिगत रूप से क्रिकेट का दूर-दूर तक प्रेमी नहीं हूं और मुझे ख़ासकर इस खेल के लिए घंटों समय बर्बाद करना बहुत ही अजीब लगता है। हालांकि, यदि किसी को यह अच्छा लगता है तो उस पर टिप्पणी करने का भी मुझे अधिकार नहीं है।'