Exclusive: उत्तराखंड के कर्णवीर 2 साल पहले तक क्रिकेट छोड़ने को थे मजबूर, अब विजय हजारे में दोहरा शतक जड़कर रच दिया इतिहास
27 साल के कौशल ने मौका मिलते ही घरेलू क्रिकेट में अपने जलवे बिखरने शुरू कर दिए हैं। कौशल विजय हजारे टूर्नामेंट में विकेटों की 'हैट्रिक' लगा चुके हैं।
उत्तराखंड के कर्णवीर कौशल विजय हजारे ट्रॉफी क्रिकेट टूर्नामेंट में दोहरा शतक बनाने वाले पहले बल्लेबाज बन गए हैं। 27 साल के कौशल ने प्लेट ग्रुप मैच में शनिवार को सिक्किम के खिलाफ ये खास उपलब्धि हासिल की। कौशल ने सिर्फ 135 गेंदों पर 202 रनों की पारी खेली। कौशल ने अपनी रिकॉर्ड पारी में 18 चौके और 9 छक्के जड़े। उन्होंने 38 गेंदों पर 50 रन, 71 गेंदों पर शतक, 101 गेंदों पर 150 रन और 132 गेंदों पर अपना दोहरा शतक बनाया।
एक पारी से अपने नाम कर लिए 4 बड़े रिकॉर्ड
कौशल का ये स्कोर विजय हजारे ट्रॉफी में किसी भी बल्लेबाज का व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ स्कोर भी है। इससे पहले, अजिंक्य रहाणे ने 2007-08 में पुणे में मुंबई की ओर से खेलते हुए महाराष्ट्र के खिलाफ 187 रन की पारी खेली थी। कौशल ने विनीत सक्सेना (100) के साथ पहले विकेट के लिए 296 रन की रिकॉर्ड साझेदारी की जो भारत में लिस्ट-ए क्रिकेट के इतिहास में यह सबसे बड़ी साझेदारी है। इससे पहले, शिखर धवन और आकाश चोपड़ा ने 2007-08 में दिल्ली के लिए खेलते हुए पंजाब के खिलाफ 277 रन की नाबाद साझेदारी की थी।
'नहीं पता था कि कोई बड़ा रिकॉर्ड अपने नाम किया है'
अपनी इस जबरदस्त पारी के बारे में इंडिया टीवी से खास बातचीत में कौशल ने बताया कि उन्होंने खुद नहीं सोचा था कि वो दोहरा शतक जड़ देंगे। कौशल ने कहा, मैंने नहीं सोचा था कि मैं दोहरा शतक मार दूंगा, मैं सिर्फ अपना नेचुरल गेम खेल रहा था। जब मैं 170 रन पर बल्लेबाजी कर रहा था तब मैंने सोचा कि दोहरे शतक के लिए 30 रन और बनाने हैं मुझे इसके लिए कोशिश करनी चाहिए। दोहरा शतक बनाने पर मैं बहुत खुश था लेकिन मुझे बारे में कोई जानकारी नहीं थी कि मैंने एक रिकॉर्डतोड़ पारी खेली है। जब मैं आउट होने के बाद ड्रेसिंग रूम में गया तब मुझे अपने कोच और साथी खिलाड़ियों से इस रिकॉर्ड के बारे में पता चला।
कौशल की इस ऐतिहासिक दोहरी शतकीय पारी की बदौलत उत्तराखंड ने 50 ओवर में दो विकेट पर 366 रन का मजबूत स्कोर बनाया और फिर सिक्किम को 50 ओवर में छह विकेट पर 167 रन पर रोककर 199 रन से मैच जीत लिया।
उत्तरप्रदेश क्रिकेट में चयन ना होने की वजह से बना चुके थे क्रिकेट छोड़ने का मन
27 साल के कौशल ने मौका मिलते ही घरेलू क्रिकेट में अपने जलवे बिखरने शुरू कर दिए हैं। कौशल विजय हजारे टूर्नामेंट में विकेटों की हैट्रिक लगा चुके हैं। उन्होंने सिक्किम के खिलाफ दोहरे शतक से पुड्डुचेरी के खिलाफ 101 और मिजोरम के खिलाफ 118 रन बनाए थे। उनके 7 मैचो में अब 467 रन हो गए हैं। लेकिन इसके बार में कम ही लोग जानते हैं 2 साल पहले तक यही धाकड़ बल्लेबाज क्रिकेट छोड़ने को मजबूर हो गया था। दरअसल इसकी सबसे बड़ी वजह थी उत्तराखंड के पास क्रिकेट एसोसिएशन का ना होना। जिसकी से खिलाड़ियों को दूसरे राज्यों की टीमों से खेलना पड़ता है।
कौशल ने अपने संघर्ष के बार में बात करते हुए बताया कि वो पिछले 8 से 10 साल से उत्तरप्रदेश की टीम में जगह बनाने की कोशिश कर रहे थे लेकिन हर बार उन्हें नाकामी हाथ लगी। उन्होंने कहा, ''काफी मेहनत और कोशिशों के बावजूद भी मुझे उत्तरप्रदेश की टीम में जगह नहीं मिली। मैंने उत्तरप्रदेश में टी-20 और विजय हजारे कैंप में भी हिस्सा लिया लेकिन कभी टीम में सलेक्शन नहीं हुआ। 2 साल पहले तक तो मैंने क्रिकेट छोड़ने का मन भी बना लिया था। लेकिन अकरम सैफी भैय्या ने मेरा काफी सपोर्ट किया। उन्होंने मुझे हौसला दिया अगर मैं ऐसे ही मेहनत करता रहा तो एक दिन जरूर मुझे इसका फल मिलेगा। इस साल मैंने उत्तप्रदेश के लिए ट्रायल्स नहीं दिए क्योंकि उत्तराखंड को एसोसिएशन मिल गई थी और मैं देहरादून से हूं यहां पर लोग मेरा गेम जानते हैं। इन्होंने मुझे खेलते हुए देखा है। मुझे पता था कि यहां मुझे पूरा सपोर्ट मिलेगा।"
परिवार वालों ने दिया साथ
कर्ण के दोहरे शतक के बाद उनसे फोन पर बात करते हुए उनके पिता को अपने बेटे पर गर्व महसूस हो रहा था और वो काफी इमोशन हो गए थे और हो भी क्यों ना उत्तराखंड की टीम पहली बार घरेलू क्रिकेट में विजय हजारे जैसे बड़े टूर्नामेंट में हिस्सा ले रही है जहां उनके बेट शानदार प्रदर्शन के दमपर टीम लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रही है। हालांकि कर्ण ने वो समय भी देखा है टीम सलेक्शन ना होने बाद कर्ण के पिता उनसे कहा करते थे कि अगर क्रिकेट छोड़कर पढ़ाई में ध्यान दिया होता तो आज कोई सरकारी ऑफिसर होते। अपने माता-पिता के बारे में बात करते हुए कर्ण ने बताया, ''मेरे माता-पिता दोनों पुलिस में हैं। मां उत्तराखंड पुलिस में हैं और पिता उत्तरप्रदेश पुलिस में। दोनों क्रिकेट को लेकर मेरा सपोर्ट किया। लेकिन उत्तराखंड के पास एसोसिएशन ना होने की वजह से मैं उत्तरप्रदेश से ट्रायल देता था। जब वहां पर सलेक्शन नहीं होता था तो कई बार पिता जी कहते थे पढ़ाई लिखा में अच्छा था अगर उसपर ध्यान हुआ तो आज आईपीएस ऑफिसर होता।''
टेबल टेनिस में खेल चुके हैं नेशनल्स
क्रिकेट में हाथ आजमाने से पहले कर्ण एक टेबल टेनिस खिलाड़ी थी। उन्होंने 16 साल की उम्र तक टेबल टेनिस खेला और नेशनल लेवल पर भी हिस्सा लिया। लेकिन इसके बाद उन्होंने टेबल टेनिस छोड़ क्रिकेट को कैसे चुना इसके पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है। देहरादून के जसवंत मॉडल स्कूल से पढ़ाई करने वाले कर्ण स्कूल बंक करके घूम रहे थे तभी उन्हें क्रिकेट ट्रायल्स के बारे में पता चला। उन्होंने मौके का फायदा उठाते ट्रायल दिया और उनका सलेक्शन भी हो गया। बस फिर क्या था यहीं से शुरू हो गई कर्ण के क्रिकेटर बनने की कहानी। जिसके बाद तमाम संघर्षों से लड़ते हुए उन्होंने ये मुकाम हासिल किया।