Exclusive | साल 2013 के बाद टीम इंडिया के लिए ना खेल पाना मेरे करियर का सबसे बड़ा मलाल- प्रज्ञान ओझा
अपने करियर के अंतिम मैच में 10 विकेट लेने के बाद प्रज्ञान को दोबारा टीम इंडिया के लिए गेंदबाजी करने का सौभाग्य कभी प्राप्त नहीं हुआ।
साल 2013 में सचिन तेंदुलकर के करियर के अंतिम मैच में प्रज्ञान ओझा ने अपनी शानदार स्पिन गेंदबाजी से 10 विकेट चटकाते हुए सभी का दिल जीत लिया था, मगर उसके बाद से फिर कभी टीम इंडिया के लिए टेस्ट टीम में जगह ना बना पाने के कारण प्रज्ञान ओझा ने अब अंतराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास का ऐलान कर दिया है। जिसके चलते उन्होंने बीते 6 सालों में टीम इंडिया के लिए कभी दुबारा ना खेल पाने को इंडिया टी. वी. से बातचीत में करियर का सबसे बड़ा मलाल बताया।
प्रज्ञान ओझा ने साल 2013 में वेस्टइंडीज के खिलाफ मुंबई के मैदान पर सचिन तेंदुलकर के अंतिम और 200वें टेस्ट मैच में पहली पारी में 40 रन देकर पांच विकेट लिए जबकि दूसरी पारी में 49 रन देकर पांच विकेट हासिल किए। इस तरह मैच में 10 विकेट लेने के बाद प्रज्ञान को दोबारा टीम इंडिया के लिए गेंदबाजी करने का सौभाग्य कभी प्राप्त नहीं हुआ। जिस पर उन्होंने कहा, "मेरे करियर में मुझे मलाल है कि 2013 के बाद मैं कभी भारत के लिए नहीं खेल पाया लेकिन काफी प्रयास करने बाद कुछ चीजे आपके हाथ में नहीं होती हैं। इस तरह मुझे अफ़सोस नहीं बल्कि इस बात का गर्व भी है कि मैं जितना भी भारत के लिए खेला उसके लिए मैं काफी शुक्रगुजार हूँ।"
साल 2013 के बाद प्रज्ञान ने टीम में आने के काफी प्रयास किये मगर वो सफलता उनके हाथ नहीं लगी। इस दौरान उनके मन में कई प्रयासों के बाद पिछले साल संन्यास लेने का सबसे पहले विचार आया। जिस पर उन्होंने कहा, "साल 2013 के बाद मैंने टीम में आने लिए मैंने काफी मेहनत की और हैदराबाद के लिए कई साल घरेलू क्रिकेट खेला लेकिन एक समय के बाद आपको अपने जीवन में आगे बढना होता है। फिर पिछले साल मुझे ये अहसास हुआ की नहीं अब युवाओं को मौका दिया जाना चाहिए और उनके लिए जगह बनानी चाहिए। जिसके बाद मैंने सोच लिया था कि अब संन्यास लेना है।"
प्रज्ञान के करियर की बात करें तो उसमें महेंद्र सिंह धोनी का अहम रोल रहा है। उन्होंने खुद इस बात को स्वीकार है कि धोनी के कारण ही वो टीम इंडिया तक का रास्ता तय कर पाए। ऐसे में धोनी की कप्तानी में खेलने वाले प्रज्ञान ने खुद को खुशकिस्मत बताते हुए कहा, "निश्चित तौर पर मुझे टीम में लाने का श्रेय धोनी को जाता है और बतौर गेंदबाज ये बहुत जरुरी है कि आपके पास धोनी जैसा कप्तान होना चाहिए। धोनी हमेशा विकटों के पीछे से सलाह देते रहते थे। आपकी मजबूती और कमजोरी के बारे में अच्छे से जानते थे और सबसे अच्छी बात खिलाड़ी को बैक करते थे। जिसके चलते मैं काफी भाग्यशाली हूँ कि मैंने धोनी जैसे कप्तान के सानिध्य में क्रिकेट खेला।"
प्रज्ञान ओझा एक शानदार लेफ्ट आर्म आर्थोडोक्स ( फिंगर स्पिनर ) गेंदबाज रहे हैं। उन्होंने अपने करियर में 100 से अधिक टेस्ट विकेट हासिल किए। ऐसे में टीम इंडिया में इन दिनों कलाई के स्पिन गेंदबाजों ( कुलदीप और युजवेंद्र ) के धमाल के बारे में जब पूछा गया तो उनका मानना है कि स्पिनर कलाई ( रिस्ट ) या ऊँगली ( फिंगर ) हो इससे कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। प्रज्ञान ने ऑस्ट्रेलिया के नाथन लियोन का उदाहरण देते हुए कहा, "जब परिस्थियां स्पिन गेंदबाजी के अनुकूल नहीं होती है वहाँ पर भी कलाई के स्पिनर गेंद घुमा सकते हैं हलांकि मैं ये कहना चाहूँगा आप फिंगर स्पिनर हो या कलाई के इससे फर्क इतना नहीं पड़ता है। फर्क इस बात से पड़ता है कि अगर आपको विकेट से मदद नहीं मिलती है तो आप गेंद को ड्रिफ्ट कैसे कराते हैं। ऑस्ट्रेलिया के नाथन लियोन को देखेंगे तो वो एशिया और एशिया से बाहर भी अपनी गेंदों से विकेट को निकालते हैं। वो काफी क्वालिटी स्पिन गेंदबाज हैं। जिससे आप सीख कर सफलता हासिल कर सकते हैं और आगामी टी20 विश्वकप में शानदार प्रदर्शन कर सकते हैं।"
भुवनेश्वर में जन्मे प्रज्ञान ओझा ने टीम इंडिया के लिए 24 टेस्ट, 18 वनडे और 6 टी20 मुकाबले खेले। उन्होंने टेस्ट में 113, वनडे में 21 और टी20 में 10 विकेट अपने नाम किए। इस तरह अपने क्रिकेट के सफर के बारे में बताते हुए प्रज्ञान ने कहा, "भारत के लिये इस स्तर पर खेलना हमेशा से मेरा सपना था। मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकता कि कितना खुशकिस्मत हूं कि मेरा सपना पूरा हुआ। मुझे देशवासियों का इतना प्यार और सम्मान मिला।"
वहीं संन्यास लेने के बाद अंत में अपनी करियर की दूसरी पारी के बारे में बताते हुए प्रज्ञान ने कहा, "वो अब पूरी तरह से कमेंट्री में हाथ आजमाएंगे।"