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Hindi News खेल क्रिकेट डे-नाईट टेस्ट मैच से पहले बीसीसीआई के सामने दोहरा चैलेंज, 'गेंद बचाए' या 'मैच'

डे-नाईट टेस्ट मैच से पहले बीसीसीआई के सामने दोहरा चैलेंज, 'गेंद बचाए' या 'मैच'

दलजीत ने कोलकाता के क्यूरेटरों की तारीफ करते हुए कहा वो दोनों समझदार है, उन्हें सब मालूम है और उनके पास अच्छे संसाधन हैं।

Pink Ball- India TV Hindi Image Source : GETTY IMAGE Pink Ball

भारत और बांग्लादेश के बीच कोलकाता के इडन गार्डन में होने वाले ऐतिहासिक डे-नाईट टेस्ट मैच से पहले आयोजनकर्ता बीसीसीआई के सामने दो बड़ी चुनौती खड़ी हो सकती  है। जिसमें पहला ये है कि इस टेस्ट मैच को कैसे पांच दिनों तक खींचा जाए और दूसरा ये कि क्या पिंक बॉल भारतीय सरजमीं के अनुकूल है? क्या ये गेंद पूरे 80 ओवर तक चमकदार बनी रहेगी? इन सभी बातों का बीसीसीआई को ख्याल रखना होगा। जिसमें गेंद को मिट्टी के जैसे रंग (यानी मट-मैला) होने से बचाना भी बड़ा चैलेंज शामिल है। 

दरअसल, 22 नवंबर हो होने वाले डे-नाईट टेस्ट मैच के लिए कहा जा रहा है कि पिच पर घास होगी। ऐसे में ये बड़ी घास अगर हरी होगी तो मैच जल्दी होगा और भूरी घास रखी जाएगी तो गेंद की चमक जाने के आसार ज्यादा रहेंगे। कुछ ऐसा ही तत्कालीन पिच और ग्राउंड्स कमेटी के चेयरमैन दलजीत सिंह ने अमर उजाला से बातचीत में कहा है। दलजीत सिंह ने पिच और गेंद को लेकर कहा, " गुलाबी गेंद की हरकत से बचने के लिए मैदान पर कम और पिच पर बड़ी घास रखनी होगी। दलजीत के मुताबिक पिच पर घास हरी नहीं बल्कि भूरी होनी चाहिए। वरना मुकाबला जल्द खत्म हो जाएगा।"

गौरतलब है कि भारतीय सरजमीं पर सबसे पहले गुलाबी गेंद से दलीप ट्राफी में मैच खेले गए थे तब दलजीत सिंह, क्यूरेटर तापोस और यूपीसीए के शिवकुमार ने पिच तैयार की थी। इस पिच पर इन लोगों ने हरी घास की जगह भूरी घास छोड़ी थी। जिसके चलते गुलाबी गेंद की चमक जल्दी चली गई थी और बल्लेबाज के साथ मैदान में खड़े फील्डर तक को ये गेंद दिखना बंद हो गई थी। 

इस तरह वनडे क्रिकेट में तो आईसीसी के नियमानुसार दो नई गेंदे इस्तेमाल की जाती है लेकिन गुलाबी गेंद के साथ ऐसा बिल्कुल भी नहीं होने वाला है। यूपीसीए के शिवकुमार ने बताया उस समय पिच बनाने के बाद सबसे बड़ी समस्या गेंद को गंदा होने से बचाना बन गई थी। 

दो दशकों तक बीसीसीआई के चीफ क्यूरेटर रहे दलजीत आगे बताते हैं कि कोलकाता में साढ़े तीन चार बजे के बाद सूरज जल्दी ढल जाता है। वह खुद कोलकाता में 22 साल तक खेले हैं। इस दौरान ओस जल्दी पड़ेगी। ओस का ध्यान रखना पड़ेगा। इसके लिए आउटफील्ड में कम घास रखनी होगी। यही नहीं आउट फील्ड में दो-तीन दिन पहले से पानी डालना बंद करना पड़ेगा, जिससे नमी नहीं रहने पाए। नमी रहेगी तो गेंद जल्द गीला होगा। आउटफील्ड में कम घास होने से ओस का असर कम हो जाएगा। इतना ही नहीं ओस को सुखाना और घास में ओस को नीचे बिठाने वाली दवा भी डालनी होगी। 

मगर बीसीसीआई के सामने अब दोहरी चुनौती है। जिस पर उसे खरा उतरना होगा। कोलकाता के मैदान की पिच पर अगर हरी घास ज्यादा रखेंगे तो तेज गेंदबाजों का गेंद इतना स्विंग होगा कि मैच दो से तीन दिन में खत्म हो सकता है। जो की टेस्ट क्रिकेट के पैमाने पर खरा नहीं उतरेगा और फैंस भी खासा निराश होंगे। वहीं अगर विकेट को थोड़ा भूरा यानी हरी घास की जगह भूरी घास से सजाया जाता है तो गेंद का बार-बार उस पर टिप्पा खाने से उसकी चमक का 80 ओवरों तक बरकरार रहना एक बड़ा चैलेंज होगा। 

हालांकि अंत में दलजीत ने कोलकाता के क्यूरेटरों की तारीफ करते हुए कहा वो दोनों समझदार है, उन्हें सब मालूम है और उनके पास अच्छे संसाधन हैं।

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