भरपेट भोजन की खातिर एक विकेट पर लेता था दस रूपये, अब देवधर ट्राफी में रहाणे की टीम से खेलेंगे पप्पू
सफलता की भूख तो आम बात है लेकिन बाएं हाथ के स्पिनर पापू राय के लिये सफलता के दूसरे मायने थे।
गुवाहाटी। सफलता की भूख तो आम बात है लेकिन बाएं हाथ के स्पिनर पप्पू राय के लिये सफलता के दूसरे मायने थे। इससे यह सुनिश्चित होता था कि उन्हें भूखे पेट नहीं सोना पड़ेगा। इस 23 वर्षीय गेंदबाज को देवधर ट्राफी के लिये अंजिक्या रहाणे की अगुवाई वाली भारत सी टीम में चुना गया है लेकिन कोलकाता के इस लड़के की कहानी मार्मिक है।
पप्पू ने जब ‘मम्मी-पापा’ कहना भी शुरू नहीं किया था तब उन्होंने अपने माता पिता गंवा दिये थे। अपने नये राज्य ओड़िशा की तरफ से विजय हजारे ट्राफी में अच्छा प्रदर्शन करने के बाद देवधर ट्राफी के लिये चुने गये पप्पू ने अपने पुराने दिनों को याद किया जब प्रत्येक विकेट का मतलब होता था कि उन्हें दोपहर और रात का पर्याप्त खाना मिलेगा। पप्पू ने अपने मुश्किल भरे दिनों को याद करते हुए पीटीआई से कहा, ‘‘भैया लोग बुलाते थे और बोलते थे कि बॉल डालेगा तो खाना खिलाऊंगा। और हर विकेट का दस रुपये देते थे।’’
उनके माता पिता बिहार के रहने वाले थे जो कमाई करने के लिये बंगाल आ गये थे। पप्पू ने अपने पिता जमादार राय और पार्वती देवी को तभी गंवा दिया था जबकि वह नवजात थे। उनके पिता ट्रक ड्राइवर थे और दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हुआ जबकि उनकी मां लंबी बीमारी के बाद चल बसी थी।
पप्पू के माता पिता बिहार के सारण जिले में छपरा से 41 किमी दूर स्थित खजूरी गांव के रहने वाले थे तथा काम के लिये कोलकाता आ गये थे। वह अपने माता पिता के बारे में केवल इतनी ही जानकार रखते हैं।
कोलकाता के पिकनिक गार्डन में किराये पर रहने वाले पप्पू ने कहा, ‘‘उनको कभी देखा नहीं। कभी गांव नहीं गया। मैंने उनके बारे में केवल सुना है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘काश कि वे आज मुझे भारत सी की तरफ से खेलते हुए देखने के लिये जीवित होते। मैं कल पूरी रात नहीं सो पाया और रोता रहा। मुझे लगता है कि पिछले कई वर्षों की मेरी कड़ी मेहनत का अब मुझे फल मिल रहा है।’’
माता - पिता की मौत के बाद पप्पू के चाचा और चाची उनकी देखभाल करने लगे लेकिन जल्द ही उनके मजदूर चाचा भी चल बसे। इसके बाद इस 15 वर्षीय किशोर के लिये एक समय का भोजन जुटाना भी मुश्किल हो गया। लेकिन क्रिकेट से उन्हें नया जीवन मिला। उन्होंने पहले तेज गेंदबाज के रूप में शुरुआत की लेकिन हावड़ा क्रिकेट अकादमी के कोच सुजीत साहा ने उन्हें बायें हाथ से स्पिन गेंदबाजी करने की सलाह दी।
वह 2011 में बंगाल क्रिकेट संघ की सेकेंड डिवीजन लीग में सर्वाधिक विकेट लेने वाले गेंदबाज थे। उन्होंने तब डलहौजी की तरफ से 50 विकेट लिये थे। लेकिन तब इरेश सक्सेना बंगाल की तरफ से खेला करते थे और बाद में प्रज्ञान ओझा के आने से उन्हें बंगाल टीम में जगह नहीं मिली।
भोजन की आवास की तलाश में पप्पू भुवनेश्वर से 100 किमी उत्तर पूर्व में स्थित जाजपुर आ गये। पप्पू ने कहा, ‘‘मेरे दोस्त (मुजाकिर अली खान और आसिफ इकबाल खान) जिनसे मैं यहां मिला, उन्होंने मुझसे कहा कि वे मुझे भोजन और छत मुहैया कराएंगे। इस तरह से ओड़िशा मेरा घर बन गया।’’
उन्हें 2015 में ओड़िशा अंडर-15 टीम में जगह मिली। तीन साल बाद पप्पू सीनियर टीम में पहुंच गये और उन्होंने ओड़िशा की तरफ से लिस्ट ए के आठ मैचों में 14 विकेट लिये। अब वह देवधर ट्राफी में खेलने के लिये उत्साहित हैं। उन्होंने कहा, ‘‘उम्मीद है कि मुझे मौका मिलेगा और मैं अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करूंगा। इससे मुझे काफी कुछ सीखने को मिलेगा।’’